भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का ‘महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय’ के लोकार्पण समारोह के अवसर पर सम्बोधन (HINDI)
गोरखपुर : 01.07.2025

महायोगी गुरु गोरखनाथ की इस पवित्र धरती को मैं सादर नमन करती हूं। गुरु गोरखनाथ के बारे में कहा गया है कि आदिगुरु शंकराचार्य के बाद इतना प्रभावशाली और महिमापूर्ण महापुरुष भारतवर्ष में दूसरा नहीं हुआ।
गोरखपुर योगभूमि है। गुरु गोरखनाथ ने तो इस क्षेत्र को अक्षय आध्यात्मिक ऊर्जा से समृद्ध किया ही है, यह परमहंस योगानन्द की जन्मभूमि भी है। आप सभी भाई-बहन ऐसी महान स्थानीय परम्पराओं से जुड़े हुए हैं जिनका राष्ट्रीय महत्व है, जिनका पूरी मानवता पर प्रभाव है। यह प्रसन्नता की बात है कि श्री आदिनाथ, श्री मत्स्येंद्रनाथ और गुरु गोरखनाथ की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए गोरखपुर से प्रसारित हुआ नाथ- पंथ भारत के कोने-कोने में तथा अन्य देशों में भी मानवता के कल्याण में सक्रिय है।
तपस्या, साधना और अध्यात्म की यह धरती आत्म-गौरव तथा राष्ट्र-प्रेम की आधारभूमि भी है। अठारहवीं सदी के सन्यासी विद्रोह से लेकर 1857 के स्वाधीनता संग्राम तक, गोरखपुर के नाथ-पंथ के योगी जन-जागरण और स्वाधीनता संग्राम के सूत्रधार रहे हैं। इस धरती से बाबू बंधु सिंह और रामप्रसाद बिस्मिल जैसे बलिदानियों की गाथाएं जुड़ी हैं। गोरखपुर से जुड़ी ऐसी महान विभूतियों को मैं प्रणाम करती हूं।
लगभग सौ वर्षों से गीता प्रेस गोरखपुर ने भारत के जनमानस को धर्म और संस्कृति से जोड़े रखने का महान कार्य किया है। संस्कृत और हिन्दी के अलावा अन्य अनेक भारतीय भाषाओं में गीता प्रेस के प्रकाशन उपलब्ध हैं। ओड़िआ भागवत के नाम से विख्यात, अति-बड़ी जगन्नाथ दास द्वारा रचित भागवत महापुराण को ओडिशा के लोग बड़े सम्मान से पढ़ते हैं। ओड़िआ भागवत का प्रकाशन और प्रसार भी गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा किया गया है। कल शाम को मुझे श्री गोरखनाथ मंदिर में दर्शन एवं पूजन करने का सौभाग्य मिला। वहां मुझे ओड़िआ भाषा में गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित शिव पुराण और भागवत की प्रतियां भेंट की गई। वे पुस्तकें मेरे पास गोरखपुर की अमूल्य सौगात और स्मृति के रूप में सदैव संरक्षित रहेगी।
मुझे यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई है कि विगत कुछ वर्षों में गोरखपुर में infrastructure का बहुत तेज गति से विकास हुआ है। Gorakhpur Industrial Development Authority यानी GIDA की गतिविधियों में बड़े पैमाने पर विस्तार हुआ है। यहां के Terracotta के कलात्मक उत्पाद देश-विदेश में निरंतर और अधिक लोकप्रिय हो रहे हैं। ऐसी अनेक उपलब्धियों से यहां के निवासियों में निश्चय ही नई ऊर्जा और आकांक्षाओं का संचार हो रहा होगा।
देवियो और सज्जनो,
महायोगी गुरु गोरखनाथ जैसी विलक्षण विभूति के पवित्र नाम से जुड़े इस विश्वविद्यालय में आकर उनके प्रति श्रद्धा का और अधिक प्रबल संचार मुझमें हो रहा है। मैं महायोगी गुरु गोरखनाथ जी की पावन स्मृति को सादर नमन करती हूं।
यह विश्वविद्यालय हमारी समृद्ध प्राचीन परंपराओं का नवनिर्मित तथा प्रभावशाली आधुनिक केंद्र है। इस विश्वविद्यालय का लोकार्पण करके मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है। यह लोकार्पण, उत्तर प्रदेश ही नहीं अपितु पूरे देश में medical education और चिकित्सा-सेवा के विकास में एक मील का पत्थर है।
मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि यहां उच्च-स्तरीय सुविधाओं का निर्माण किया गया है। इन सुविधाओं का लाभ बड़ी संख्या में जन-सामान्य को सुलभ होने लगा है। मुझे बताया गया है कि इस विश्वविद्यालय से सम्बद्ध लगभग एक सौ आयुष कॉलेज यहां की उत्कृष्टता से लाभान्वित हो रहे हैं। यहां आयुष पद्धतियों में स्नातक से लेकर उच्चतम उपाधियों के स्तर पर शिक्षण एवं शोध कार्य किया जाएगा। आयुष पद्धतियों से जुड़े रोजगारपरक पाठ्यक्रमों की शिक्षा भी यहां दी जाएगी। मुझे यह भी बताया गया है कि पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को अंतर-राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप विश्वसनीय और स्वीकार्य बनाने के लिए यहां शोध कार्यों पर विशेष बल दिया जाएगा। उत्तर प्रदेश के इस प्रथम आयुष विश्वविद्यालय की उत्कृष्ट परिकल्पना और निर्माण को दिशा एवं गति प्रदान करने के लिए मैं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी की विशेष सराहना करती हूं।
उत्तर प्रदेश राज्य सरकार के अंतर्गत संचालित सभी विश्वविद्यालयों का यह सौभाग्य है कि उन्हें कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल महोदया, श्रीमती आनंदीबेन पटेल जी का मार्गदर्शन मिल रहा है।
देवियो और सज्जनो,
आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा तथा सिद्ध जैसी भारत की पुरातन प्रणालियों में समग्र और सार्थक जीवन जीने की वैज्ञानिक पद्धतियां बताई गई हैं। सौ वर्ष से भी अधिक आयु तक सभी इंद्रियों को समर्थ बनाए रखने तथा स्वावलंबी बने रहने की प्राचीन प्रार्थना यह प्रमाणित करती है कि आयुर्वेद, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा पर आधारित हमारी पारंपरिक जीवन-शैली बहुत अच्छी थी।
आयुर्वेद पर आधारित हमारी प्राचीन जीवन-शैली में दिनचर्या, रात्रिचर्या और ऋतुचर्या पर बहुत ध्यान दिया जाता था। संतुलित आहार, विहार और विचार को महत्व दिया जाता था। हमारे यहां आरोग्य को धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की उत्तम आधारशिला माना गया है।
आयुर्वेद हमारी धरती से जुड़ा हुआ है। हमारे खेतों में, हमारे जंगलों में, औषधीय वनस्पतियों और जड़ी-बूटियों का खजाना आज भी मौजूद है। इन पर आधारित आसव और अरिष्ट औषधियों की कोई expiry date नहीं होती है। इससे आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की आश्चर्यजनक वैज्ञानिकता का प्रमाण मिलता है।
देवियो और सज्जनो,
‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की सर्व-समावेशी एवं उपयोगी दृष्टि के आधार पर हमने विदेश में उत्पन्न हुई चिकित्सा पद्धतियों को भी आयुष पद्धतियों में शामिल किया है। आज यूनान तथा मध्य एशिया के देशों में यूनानी चिकित्सा पद्धति का उतना उपयोग नहीं होता है जितना भारत में होता है। जर्मनी में विकसित हुई होम्योपैथी चिकित्सा को हमारे देश ने पूरी तरह अपना लिया है। वर्ष 2014 से केंद्र सरकार ने तथा वर्ष 2017 से उत्तर प्रदेश सरकार ने आयुष विभागों की स्थापना करके देश-विदेश की इन सभी उपयोगी पद्धतियों को नई ऊर्जा के साथ प्रोत्साहित किया है। यह प्रोत्साहन निरंतर आगे बढ़ रहा है। इस विश्वविद्यालय का यह लोकार्पण समारोह आयुष पद्धतियों के पुनर्जागरण का एक महत्वपूर्ण उत्सव है।
आयुष में समाहित आयुर्वेद, योग और सिद्ध पद्धतियां विश्व समुदाय को भारत की अनमोल सौगात हैं। आयुर्वेद का जनक भगवान धन्वन्तरि को माना जाता है। चरक को काय-चिकित्सा का एवं सुश्रुत को शल्य- चिकित्सा का प्रवर्तक माना जाता है। वाग्भट जैसे आयुर्वेदाचार्यों ने मानव कल्याण के लिए प्रचुर ज्ञानराशि का सृजन किया है।
विद्वानों की मान्यता है कि नाथ परंपरा के योगियों ने चिकित्सा के लिए खनिजों और धातुओं पर आधारित भस्मों के प्रभावी और सर्वथा सुरक्षित प्रयोग किए थे।
‘हठ योग’ की प्रतिष्ठा करके महायोगी गोरखनाथ ने राष्ट्र के समग्र पुनर्जागरण का जो कार्य किया है उसका प्रभाव अद्वितीय है। योग के क्षेत्र में गुरु गोरखनाथ की महानता को समझाने के लिए गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा था - ‘गोरख जगायो जोग’। अर्थात गुरु गोरखनाथ ने योग की परंपरा को फिर से जगाया था। उन्होंने जनभाषा के माध्यम से, साधकों में ही नहीं, बल्कि जन-साधारण में भी हठ-योग का व्यापक प्रचार-प्रसार किया था।
देवियो और सज्जनो,
विगत 21 जून को विश्व के अनेक देशों में उत्साहपूर्वक ‘अंतर-राष्ट्रीय योग दिवस’ मनाया गया। पिछले कुछ वर्षों के दौरान अपने-अपने देश में योग पद्धति का प्रचार-प्रसार करने वाले विदेशी नागरिकों को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।
मुझे बताया गया है कि आयुष पद्धतियों पर आधारित चिकित्सा की लोकप्रियता बढ़ रही है। यह विश्वविद्यालय आयुष पद्धतियों की लोकप्रियता को और अधिक बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभा सकता है। इन पद्धतियों की वैज्ञानिक स्वीकार्यता को बढ़ाने में भी ऐसे विश्वविद्यालयों का निर्णायक योगदान रहेगा।
मुझे विश्वास है कि महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय, परंपरा और आधुनिकता के संगम के नए प्रतिमान स्थापित करेगा तथा भविष्य में एक महान संस्थान के रूप में अपनी पहचान बनाएगा। इस दृढ़ विश्वास के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं।
धन्यवाद!
जय हिन्द!
जय भारत!