भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का विश्व होम्योपैथी दिवस समारोह में संबोधन

नई दिल्ली : 10.04.2024

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भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का विश्व होम्योपैथी दिवस समारोह में संबोधन

Homoeopathy से जुड़े सभी लोगों को आज मैं World Homoeopathy Day की हार्दिक शुभकामनाएं देती हूं। चिकित्सकों, अनुसंधान-कर्ताओं, औषधि निर्माताओं, शिक्षकों, विद्यार्थियों तथा Homoeopathy में रुचि रखने वाले अन्य लोगों का इतनी बड़ी संख्या में यहां उपस्थित होना इस चिकित्सा पद्धति के व्यापक प्रभाव का प्रमाण है। साथ ही, यह Homoeopathy के उज्ज्वल भविष्य का संकेत भी है।

अपने अनुभव के आधार पर मैं यह बात कहा करती हूं कि हमारे देश के लोग चिकित्सकों को भगवान का दर्जा देते हैं। चरक और सुश्रुत जैसे प्राचीन काल के महान चिकित्सकों से लेकर आधुनिक भारत में डॉक्टर बिधान चन्द्र राय तक, चिकित्सकों को विशेष आदर देना हमारी संस्कृति का हिस्सा है। अच्छे डॉक्टरों द्वारा चमत्कार जैसा इलाज करने की कहानियां लोग साझा करते हैं। लाइलाज बीमारी का उपचार करने के ऐसे अनेक संस्मरण Homoeopathy के डॉक्टरों के बारे में हुआ करते हैं।

देवियो और सज्जनो,

आज हम Homoeopathy के जनक, जर्मनी के चिकित्सक Samuel Hahnemann की जयंती मनाने और उनके चिकित्सा अभियान को आगे बढ़ाने के उद्देश्य के साथ एकत्र हुए हैं। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि वर्ष 2016 से प्रति वर्ष उनका जयंती समारोह केंद्रीय आयुष मंत्रालय के मार्गदर्शन में मनाया जाता है।

अठारहवीं सदी के मध्य में जन्मे डॉक्टर हानीमन ने उस सदी के अंत तक Homoeopathy चिकित्सा पद्धति की शुरुआत कर दी थी। उन्नीसवीं सदी में यह पद्धति तेजी से लोकप्रिय हुई। उन्नीसवीं शताब्दी में ही भारत में भी Homoeopathy का उपयोग शुरू हुआ।

एक सरल और सुलभ उपचार पद्धति के रूप में Homoeopathy को अनेक देशों में अपनाया गया है। मुझे बताया गया है कि लगभग 80 देशों में इस पद्धति का प्रयोग किया जाता है। पूरे विश्व में, अंतर-राष्ट्रीय, राष्ट्रीय तथा स्थानीय स्तर पर अनेक संस्थान Homoeopathy के उपयोग तथा प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देते रहे हैं।

देवियो और सज्जनो,

अनेक पद्धतियों से इलाज करके निराश हुआ व्यक्ति Homoeopathy के चमत्कार से लाभान्वित हुआ, ऐसे अनेक अनुभव लोग साझा करते हैं। लेकिन, वैज्ञानिक समुदाय में ऐसे अनुभवों को तभी मान्यता मिल सकती है जब पर्याप्त संख्या में ऐसे अनुभवों को तथ्य और विश्लेषण के साथ प्रस्तुत किया जाए। व्यापक स्तर पर किए गए ऐसे तथ्यपरक विश्लेषण को ही Authentic Medical Research कहा जाता है। Scientific rigour को प्रोत्साहन देने से इस चिकित्सा पद्धति के प्रति लोगों में विश्वास और अधिक बढ़ेगा।

वैज्ञानिकता ही प्रामाणिकता का आधार है। प्रामाणिकता से स्वीकृति और लोकप्रियता बढ़ती है। इसलिए, Research को शक्ति प्रदान करने तथा Proficiency बढ़ाने का आपका यह प्रयास Homoeopathy के प्रचार-प्रसार में उपयोगी सिद्ध होगा। इससे चिकित्सकों और मरीजों, औषधि-निर्माताओं और अनुसंधान-कर्ताओं सहित, Homoeopathy से जुड़े सभी लोगों को लाभ होगा।

हमारे देश में अनेक Homoeopathic Colleges में Bachelor of Homoeopathic Medicine and Surgery तथा Post Graduate स्तर की शिक्षा प्रदान की जा रही है। Homoeopathy की शिक्षण प्रणाली में निरंतर सुधार करने से यह पद्धति युवा विद्यार्थियों के लिए और अधिक आकर्षक बनेगी। युवा पीढ़ी का बड़ी संख्या में जुड़ना, Homoeopathy के उज्ज्वल भविष्य के लिए अनिवार्य है।

आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थ-साधनम्

अर्थात

अच्छा स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा सौभाग्य है। सभी लक्ष्य स्वास्थ्य के द्वारा ही सिद्ध हो सकते हैं।

इस कहावत में स्वास्थ्य के प्रति समग्र दृष्टिकोण व्यक्त होता है। सही अर्थों में स्वस्थ व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक, सभी स्तरों पर स्वस्थ रहता है। Holistic Wellness का यही दृष्टिकोण भारत की परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों तथा Homoeopathy में देखने को मिलता है। वस्तुतः सभी चिकित्सा पद्धतियों में मानसिक और शारीरिक दोनों पक्षों पर ध्यान दिया जाता है।

स्वस्थ व्यक्ति ही स्वस्थ समाज का निर्माण करते हैं। स्वस्थ समाज के आधार पर स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण होता है। इन आयामों पर, हमारे देश में, निरंतर प्रगति हो रही है। स्वस्थ और समृद्ध भारत के निर्माण में Healthcare से जुड़े आप सभी लोगों का महत्वपूर्ण योगदान रहेगा। मुझे पूरा विश्वास है कि स्वस्थ, समृद्ध तथा विकसित भारत के निर्माण में आप सब अमूल्य योगदान देंगे। एक बार फिर मैं आप सब को World Homoeopathy Day की शुभकामनाएं देती हूं। इस समारोह के आयोजकों को मैं साधुवाद देती हूं। मैं आप सबके स्वर्णिम भविष्य की मंगल-कामना करती हूं।

धन्यवाद! 
जय हिन्द! 
जय भारत!

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