भारत की राष्‍ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का महात्मा गांधी सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रथम दीक्षांत समारोह में संबोधन

मोतिहारी : 19.10.2023

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भारत की राष्‍ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का महात्मा गांधी सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रथम दीक्षांत समारोह में संबोधन

पूर्वी चंपारन में स्थित महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के प्रथम दीक्षांत समारोह के अवसर पर यहां आप सब के बीच आकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है।

मैं उपाधि प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थियों को बधाई देती हूं। आज मानद उपाधियों से सम्मानित किए गए विशिष्ट लोगों को भी मैं बधाई देती हूं। पदक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की मैं विशेष सराहना करती हूं। मुझे बताया गया है कि विश्वविद्यालय के विभिन्न शिक्षण कार्यक्रमों में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों में छात्राओं की संख्या लगभग 60 प्रतिशत है। इस शानदार उपलब्धि के लिए मैं सभी छात्राओं को साधुवाद देती हूं। ऐसी होनहार छात्राओं के उत्कृष्ट प्रदर्शन और बढ़ते हुए आत्म-विश्वास में मुझे भविष्य के विकसित भारत का स्वरूप दिखाई देता है।

महात्मा गांधी यह मानते थे कि छात्राओं और छात्रों को शिक्षा के समान अवसर मिलने चाहिए। वे कहते थे कि यदि आवश्यकता पड़े तो छात्राओं की शिक्षा हेतु विशेष सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए। गांधीजी के इस विचार को, इस विश्वविद्यालय से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति को सदैव ध्यान में रखना चाहिए। बापू ने यह भी कहा था कि विश्वविद्यालय की शिक्षा का उद्देश्य ऐसे सच्चे जन-सेवकों को तैयार करना है जो देश के लिए जिएं। गांधीजी ने अहिंसा, करुणा, नैतिकता और निस्वार्थ सेवा के आदर्शों में लोगों की आस्था बढ़ाई। उन्होंने भारतीय समाज, राजनीति और अध्यात्म को बहुत गहराई के साथ भारत की भाव-भूमि से जोड़ा। विश्व समुदाय के अनेक लोग गांधीजी में भारत का मूर्तिमान स्वरूप देखते हैं।

प्यारे विद्यार्थियो,

आप सब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा भारत-भूमि में किए गए पहले सत्याग्रह की स्मृति में स्थापित विश्वविद्यालय के विद्यार्थी हैं। यहां के विद्यार्थी होने के नाते आप सब एक ऐसी अनमोल विरासत से जुड़े हुए हैं जिसका पूरे विश्व में सम्मान किया जाता है। ऐतिहासिक चंपारन सत्याग्रह के दौरान, इस क्षेत्र में गांधीजी बहुत लंबे समय तक रहे थे। उनके साथ माँ कस्तूरबा, डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, ब्रज किशोर प्रसाद, बाबू अनुग्रह नारायण सिंह, आचार्य कृपलानी तथा अनेक महत्वपूर्ण लोग चंपारन सत्याग्रह से जुड़े रहे। उस दौरान दीनबंधु एंडरूज भी यहां आए थे।

चंपारन के गरीब और शोषित किसानों की सत्याग्रही सेना के बल पर महात्मा गांधी ने एक अनोखा आंदोलन चलाया और विश्व इतिहास के सबसे मजबूत और विशाल साम्राज्य को झुकने पर मजबूर कर दिया।

भारत के प्रथम राष्ट्रपति और मेरे परम यशस्वी पूर्ववर्ती डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी आत्मकथा में महात्मा गांधी के चंपारन प्रवास के बारे में लिखा है कि “उनके चंपारन पहुंचने के पहले ही लोगों में एक अजीब जागृति पैदा हो गई थी। ... गांधीजी के चंपारन पहुंचते ही रैयतों के दिल से डर न मालूम कहां भाग गया। ... उन लोगों के सीधे-सादे हृदय पर न मालूम कहां से यह अमिट छाप पड़ गई कि उनका उद्धारक आ गया, अब उनका दुख दूर हो जाएगा। ... चंपारन में हमने सत्याग्रह का वही रूप देखा जो गांधीजी ने, थोड़े ही दिनों के बाद, देशव्यापी रूप में, बहुत बड़े पैमाने पर जारी किया।”

इतिहास साक्षी है कि चंपारन के उन किसानों का दुख कम हुआ। ब्रिटिश हुकूमत को अपनी अनेक अन्यायपूर्ण व्यवस्थाओं को हटाना पड़ा, रोकना पड़ा। मुख्यत: गांधीजी के सत्याग्रह तथा स्वाधीनता संग्राम की अन्य धाराओं के प्रबल आवेग के सम्मुख अंग्रेज नहीं टिक सके और उन्हें भारत छोड़ना पड़ा।

चंपारन के ऐतिहासिक सत्याग्रह का समाज के ताने-बाने पर भी बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था। डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने लिखा है “चंपारन में हमारे जीवन पर भी बहुत बड़ा असर पड़ा। वहीं हम लोगों ने जाति-पांति का भेद छोड़ा। ... गांधीजी ने कहा था कि ... जो लोग एक काम में लगे हैं मान लो कि वे सब एक जाति के हैं।” चंपारन सत्याग्रह के दौरान सब लोग जाति-भेद छोड़कर एक-दूसरे के साथ भोजन बनाने-खाने लगे। आज से लगभग 106 वर्ष पहले चंपारन में गांधीजी के कहने पर लोगों ने सामाजिक समानता और एकता का रास्ता अपनाया और ब्रिटिश हुकूमत को झुकने पर मजबूर कर दिया। आज भी सामाजिक समानता और एकता का वही रास्ता देशवासियों को आधुनिक विकास के रास्ते पर आगे ले जाएगा और भारत एक विकसित देश के रूप में प्रतिष्ठित होगा।

प्यारे विद्यार्थियो,

इस क्षेत्र में गांधीजी से जुड़े अनेक स्मरणीय स्थल और संग्रहालय मौजूद हैं। यहां आना ही मैं अपना सौभाग्य मानती हूं। आप सब को तो यहां अध्ययन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। गांधीजी की विरासत को समझने और आत्मसात करने के लिए आप सब को सादगी और सच्चाई के अच्छे परिणामों को समझना होगा। मैं अनुभव पर आधारित दृढ़ विश्वास से कहती हूं कि सादगी और सच्चाई का रास्ता ही वास्तविक सुख, शांति और प्रसिद्धि का मार्ग है।

महात्मा गांधी, जनजातीय समाज पर शोध करने वाले लोगों को प्रोत्साहित करते थे। विश्व प्रसिद्ध anthropologist, Verrier Elwin और महात्मा गांधी की निकटता के बारे में सभी जानते हैं। इस विश्वविद्यालय द्वारा थारु जनजाति पर शोध कार्यों को प्रोत्साहित करने के प्रयासों की मैं सराहना करती हूं।

प्यारे विद्यार्थियो,

आपके विश्वविद्यालय का ध्येय-वाक्य ‘मयि श्री: श्रयतां यश:’ ऋग्वेद के श्रीसूक्त के एक मंत्र से लिया गया है। इसका अर्थ है – यश यानी कीर्ति के रूप में श्री अर्थात लक्ष्मी या शोभा हमारे यहां विराजमान रहें। इस ध्येय-वाक्य में यश की कामना की गई है जो कि बहुत अच्छी बात है। लेकिन, श्रीसूक्त के उसी मंत्र में एक और कामना की गई है जो महात्मा गांधी विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के लिए और भी अधिक सार्थक है। उस मंत्र में यह भी कहा गया है कि ‘मनस: कामम् आकूतिम्, वाच: सत्यम् अशीमहि’। इस पंक्ति का अर्थ है - मन की कामनाओं और संकल्प की सिद्धि एवं वाणी का सत्य मुझे प्राप्त हो। श्रीसूक्त की यह शिक्षा महात्मा गांधी के आचरण और संदेश में सदैव दिखाई देती थी। इस दीक्षांत समारोह के पावन अवसर पर मेरी आप सबसे यही अपेक्षा है कि बापू की शिक्षा के अनुसार, आप सब मन से, वाणी से और कर्म से सदैव सत्य पर आधारित आचरण करने का संकल्प लें।

यह क्षेत्र भगवान बुद्ध के अवशेषों से समृद्ध है। इस क्षेत्र में सम्राट अशोक के समय के स्तम्भ मौजूद हैं। पश्चिमी चंपारन में सम्राट अशोक द्वारा स्थापित एक स्तम्भ का सबसे ऊपर का हिस्सा यानी capital, राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल के प्रवेश द्वार पर स्थापित है। रामपुरवा bull के नाम से प्रसिद्ध वह ऐतिहासिक कलाकृति राष्ट्रपति भवन में आगंतुकों को चंपारन क्षेत्र से परिचित कराती है। पश्चिमी चंपारन में ही बिहार का एक मात्र tiger reserve भी है जो Valmiki Tiger Reserve के नाम से जाना जाता है। इतिहास और वन संपदा से समृद्ध इस क्षेत्र में पर्यटन की प्रचुर संभावनाएं हैं। मुझे बताया गया है कि इस क्षेत्र की स्वादिष्ट लीची का निर्यात बड़े पैमाने पर होता है। मैं इन बातों का उल्लेख इसलिए कर रही हूं कि ऐसी क्षेत्रीय विशेषताओं पर आधारित रोजगार और स्व-रोजगार के अवसरों का युवा पीढ़ी द्वारा उपयोग किया जा सकता है। इससे युवाओं की व्यक्तिगत उन्नति होगी और इस क्षेत्र का विकास भी होगा।

देवियो और सज्जनो,

मुझे बताया गया है कि इस विश्वविद्यालय द्वारा राष्ट्रीय और अंतर-राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों के सहयोग से शोध और अध्ययन की गतिविधियां संचालित की जा रही हैं। यहां नई ऊर्जा के साथ कई क्षेत्रों में पहल की जा रही है। ऐसे प्रयासों के लिए मैं कुलपति तथा उनकी टीम की सराहना करती हूं। मैं चाहूंगी कि यह विश्वविद्यालय अध्यापन और अनुसंधान दोनों क्षेत्रों में अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज कराए।

प्यारे विद्यार्थियो,

भगवान बुद्ध और महात्मा गांधी से जुड़ी इस पावन धरती पर शिक्षा प्राप्त करके आप सभी विद्यार्थी-गण सफलता और नैतिकता के नए प्रतिमान स्थापित करें, यह मेरी शुभकामना भी है और आशीर्वाद भी। मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई देती हूं और आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगलकामना करती हूं।

धन्यवाद!  
जय हिन्द!  
जय भारत!

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