भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का ब्रह्माकुमारी संस्थान के ओम शांति रिट्रीट सेंटर, गुरुग्राम द्वारा आयोजित National Convention on 'women as Foundation of a Value-based Society' (मूल्यनिष्ठ समाज की नींव - महिलाएं) के उद्घाटन के अवसर पर सम्बोधन

गुरुग्राम, हरियाणा : 09.02.2023

डाउनलोड : भाषण भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का ब्रह्माकुमारी संस्थान के ओम शांति रिट्रीट सेंटर, गुरुग्राम द्वारा आयोजित National Convention on 'women as Foundation of a Value-based Society' (मूल्यनिष्ठ समाज की नींव - महिलाएं) के उद्घाटन के अवसर पर सम्बोधन (हिन्दी, 200.6 किलोबाइट)

भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का ब्रह्माकुमारी संस्थान के ओम शांति रिट्रीट सेंटर, गुरुग्राम द्वारा आयोजित National Convention on 'women as Foundation of a Value-based Society' (मूल्यनिष्ठ समाज की नींव - महिलाएं) के उद्घाटन के अवसर पर सम्बोधन

आप सबको मेरा नमस्कार! आज आप सबके बीच यहां उपस्थित होकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। ओम शान्ति रिट्रीट सेन्टर के इस सुन्दर प्रांगण का आध्यात्मिक वातावरण मन को एक नई ऊर्जा प्रदान कर रहा है।

मैंने ब्रह्माकुमारी संस्थान को बहुत करीब से देखा है। इस साल की शुरुआत में ही मुझे माउंट आबू में ब्रह्माकुमारी के अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय जाने का अवसर मिला था। वहां जाकर मुझे असीम आनंद और शांति की अनुभूति हुई।

देवियो और सज्जनो,

आज के इस राष्ट्रीय सम्मलेन का विषय 'मूल्यनिष्ठ समाज की नींव - महिलाएं'(Women as Foundation of a Value-based Society) अत्यंत प्रासंगिक है। महिला-शक्ति ने भारतीय समाज में मूल्यों और नैतिकता को स्वरुप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत में महिलाओंको यथोचित सम्मान और स्थान दिया गया है।

हमारे वेदों,उपनिषदों, पुराणों और महाकाव्यों में महिलाओं की स्तुति शक्ति,करुणा औरज्ञान के स्रोत के रूप में की गई है। हमारी संस्कृति में माता पार्वती,मां दुर्गा तथा काली, मां लक्ष्मी और मां सरस्वती का जीवन की पोषक और नैतिकता की संरक्षक के रूप में देखा गया है। इसी तरह अंदाल, मीराबाई और माधवी दासी को निस्वार्थ भक्ति-भाव तथा आध्यात्मिकता के सर्वोच्च रूप में सम्मानित किया जाता है।

गार्गी प्राचीन भारत की महान दार्शनिक और विदुषी थी।उन्होंने विद्वानों और संतों के साथ अपने दार्शनिक वाद-विवाद से समाज में सम्मान अर्जित किया था। एक अन्य महान विदुषी भारती ने शंकराचार्य को दार्शनिक शास्त्रार्थ में पराजित किया था।गार्गी और भारती बौद्धिक तथा आध्यात्मिक उत्कृष्टता की प्रतीक हैं। ज्ञान के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता, महिलाओं की असीम क्षमता को प्रदर्शित करता है। ऐसे अनेकों उदाहरण मौजूद हैं जहां महिलाओं ने अपनी बुद्धि,विवेक और ज्ञान के बल पर ख्याति अर्जित कर सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है।

महिलाएं एक प्रेरणा शक्ति के रूप में कैसे अपना सकारात्मक प्रभाव छोड़ सकती हैं इसका एक उदाहरण राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन में दिखाई देता है। गांधीजी की प्रेरणा स्रोत उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी थी। गांधीजी से असहमत होने पर कस्तूरबा जी असहयोग करती थी। जिसका गांधीजी जी ने कई बार उल्लेख किया है। गांधीजी ने लिखा है कि उन्होंने अहिंसा का पाठ अपनी पत्नी से तब सीखा,जब उन्होंने कस्तूरबा को अपनी इच्छा के आगे झुकाने की कोशिश की। इस हठधर्मिता का कस्तूरबा ने दृढ़ प्रतिरोध किया, वही दूसरी ओर उनका शांत समर्पण का भाव भी बना रहा।इस प्रकार अहिंसा, असहयोग तथा सत्याग्रह का पाठ गांधीजी ने कस्तूरबा जी से ही सीखा।

मुझे प्रसन्नता है कि ब्रह्माकुमारी संस्थान ने, नारी-शक्ति को केन्द्र में रखकर, भारतीय मूल्यों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है।'ब्रह्माकुमारी' संस्थान आज नारी-शक्ति द्वारा संचालित विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक संस्थान है। ब्रह्मा बाबा ने लगभग 90 वर्ष पहले ही नारी शक्ति के सामर्थ्य और नेतृत्व को उचित स्थान दिया था। संस्थान की46 हजार से भी अधिक बहनें, दुनिया के140 देशों में, आध्यात्म और भारतीय संस्कृति की परम्परा को आगे बढ़ा रही हैं।

देवियो और सज्जनो,

इन दिनों हमारे सामाजिक जीवन में प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही है। आज का आदमी धन,शक्ति, प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा के पीछे भाग रहा है। आर्थिक रूप से मजबूत होने में कोई बुराई नहीं है,लेकिन केवल पैसे के लिए जीने से, ऐसा जीवन व्यर्थ हो जाता है। धनवान होने में कोई बुराई नहीं है,लेकिन धन के पीछे सदैव भागते रहना निरर्थक है।

इन्द्रियों का सुख और आंतरिक आनंद एक समान नहीं होते है। आर्थिक प्रगति और भौतिक सम्पन्नता हमें सुख दे सकते हैं,लेकिन आनंद नहीं। आध्यात्मिक जीवन से दिव्य आनंद के द्वार खुलते हैं। हमारी माताओं के मार्गदर्शन में इस दिव्य आनंद की खोज हर परिवार में शुरू होनी चाहिए।

देवियो और सज्जनो,

महिलाओं को जब भी समान अवसर मिला है, उन्होंने सिद्ध किया है कि वे हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर और कभी-कभी उनसे बेहतर प्रदर्शन कर सकती हैं। विज्ञान,खेल, कला, राजनीतिक नेतृत्व,रक्षा,चिकित्सा तथा इंजीनियरिंग आदि सभी क्षेत्रों में महिलाओं ने कई कीर्तिमान स्थापित किये हैं।

गांधीवादी इलाबेन भट्ट ने अपनी संस्थान ‘सेवा’ और जसवंती बेन ने ‘लिज्जत पापड़’ नामक उद्यम की सहायता से अनगिनत महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान कर उन्हें स्वावलंबी बनाने में मदद की। केरल की कार्तियानी अम्मा ने 98 वर्ष की उम्र में साक्षरता प्राप्त कर महिलाओं के धैर्य और संकल्प की एक नई परिभाषा दी है। इसी तरह कर्नाटक में पर्यावरण की रक्षा में सक्रिय वयोवृद्धा सालुमरदा तिमक्का ने हजारों वृक्ष लगाकर वन-संरक्षण में अद्भुत योगदान दिया है। ‘चिपको आन्दोलन’ में ग्रामीण महिलाओं के नेतृत्व से पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण सामने आया है। यह सब उदाहरण विपरीत परिस्थितियों में भी भारतीय महिलाओं की संकल्प शक्ति, दृढ़ निश्चय और लगन की जीती-जागती तस्वीर है। देश में असंख्य महिलाएं है जो बिना किसी डिग्री या formal education के विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान दे रही हैं।

मैं प्राय: कहती हूं कि महिला सशक्तीकरण के सामाजिक और आर्थिक दोनों पहलू है। आज भारत विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। भारत एक और बड़ी आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरे,उसके लिए यह अत्यंतमहत्वपूर्ण है किwork-force में और अधिक महिलाएं भागीदारी करें।

अनेक क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। लेकिन क्या वे अपने क्षेत्र में सर्वोच्च स्थान पर पहुंच पा रही हैं? एक आंकड़े के अनुसार, भारतीय कंपनियों के बोर्ड्स में केवल सात प्रतिशत महिलाएं executive positions पर है। Private sector मेंmiddle level management में भी women participation में एक स्तर के ऊपर कमी देखी गयी है। इसका मुख्य कारण है पारिवारिक दायित्व। मैं देखती हूं कि कामकाजी महिलाओं को ऑफिसके साथ-साथ घर की ज़िम्मेदारी भी उठानी पड़ती है। हमें यह सवाल पूछना होगा कि क्या बच्चों और घर की जिम्मेदारी केवल महिलाओं की है? हमें इस सोच को बदलने की जरुरत है। उन्हें परिवार से और अधिक सहयोग की जरुरत है जिससे वे बिना किसी बाधा के अपने करियर में सर्वोच्च शिखर तक पहुंच सकें।

देवियो और सज्जनो,

भारत इस वर्ष G-20समूह की अध्यक्षता कर रहा है। भारत के G-20 agenda मेंwomen led development पर प्राथमिकता बनाए रखना शामिल है। मुझे विश्वास है किभारत द्वारा, G-20forum का उपयोग महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देने तथा विश्व समुदाय के समावेशी विकास में महिलाओं की भूमिका को रेखांकित करने के लिए किया जाएगा।

देवियो और सज्जनो

आज मुझे ‘Empowering the Family’अभियान का शुभारम्भ करकेप्रसन्नता हुई है। एक मां का स्वभाव हमेशा समावेशी यानिinclusive होता है। एक मां कभी अपने बच्चों में भेदभाव नहीं करती है। इसीलिए प्रकृति को भी "Mother Nature"कहा जाता है।भारतीय परंपरा में परिवार को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है। स्वस्थ परिवारों का योग आदर्श गांव है। आदर्श ग्रामों के संयोजन से आदर्श जनपद, और आदर्श जनपदों के संयोजन से आदर्श राष्ट्र बनता है। इसका तात्पर्य यह है कि परिवार ही आदर्श जीवन का आधार है। जैसा कि हम सभी जानते हैं, परिवार में पहली शिक्षक हमारी मां होती है। मां न केवल बच्चे को परिवार,पड़ोसियों और पर्यावरण से परिचित कराती है, बल्कि प्रचलित मूल्यों की भी बात करती है। हमारी माताएं, हमें हमारे शास्त्रों और पुराणों से परिचित कराती हैं और हमें कई प्रेरणादायक कहानियां बताती हैं। हम सभी ने बचपन में सती सावित्री, सीताऔर अनसूया के बारे में सुना हैं। हमने अर्जुन की वीरता और कर्ण के दान की गाथाएं सुनी हैं। हमने श्रवण कुमार की पितृ भक्ति और हरिश्चंद्र की सत्य के प्रति निष्ठा के बारे में भी सुना हैं।

लेकिन मुझे लगता है कि इन दिनों माताएं अपने बच्चों को एक आदर्श जीवन के बारे में बताने को प्राथमिकता नहीं दे पा रही हैं। वे बचपन से ही अपनी संतान कोcareer consciousबना रही हैं। माताएं चाहती हैं कि उनका बच्चा डॉक्टर,इंजीनियर,बड़ा अधिकारी या वैज्ञानिक बने। लेकिन माताओं को चाहिए कि वे अपनी संतान को सबसे पहले एक अच्छा इन्सान बनने की प्रेरणा दें। हमारे बच्चों का डॉक्टर या इंजीनियर बनना अच्छी बात है। लेकिन अच्छा हो कि वे सेवा करने के लिए डॉक्टर बनें। देश के निर्माण कार्यों को गति देने के लिए इंजीनियर बनें। समाज के हित में वैज्ञानिक बनें। लेकिन धनोपार्जन को ही प्राथमिकता न बनने दें। बच्चों को यह कौन सिखाएगा?यह बात सिर्फ मां ही बच्चों को सिखा सकती है। मां ही कह सकती है,"बाबू, जीवन में बड़ा होना अच्छा है। लेकिन अच्छा होना इससे भी बड़ी बात है।” बच्चे का दिमाग कच्ची मिट्टी की तरह नरम और आकारहीन होता है। उस मिट्टी के पिंड से दिव्य मूर्ति बनाई जा सकती है। मां यदि चाहे तो बच्चे को दिव्यता दे सकती है। यानी माताओं के प्रयासों से परिवार एक आदर्श परिवार बन सकता है। अगर हर परिवार एक आदर्श परिवार बन जाए तो समाज का स्वरूप अपने आप बदल जाएगा। हमारे समाज को मूल्य-आधारित समाज में बदला जा सकता है।

महिलाओं के सशक्तीकरण से ही परिवार सशक्त होंगे और ‘सशक्त परिवार’ के आधार पर ही एक'सशक्त समाज'और 'सशक्त भारत'बनेगा। मैं इस अभियान की सफलता के साथ-साथ आप सभी के उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करती हूं।

धन्यवाद!   
जय हिन्द!   
जय भारत!

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