भारत की माननीय राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों के एशिया पैसिफिक मंच की 28वीं वार्षिक आम बैठक और द्विवार्षिक सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर संबोधन

नई दिल्ली : 20.09.2023

डाउनलोड : भाषण भारत की माननीय राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों के एशिया पैसिफिक मंच की 28वीं वार्षिक आम बैठक और द्विवार्षिक सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर संबोधन(हिन्दी, 149.42 किलोबाइट)

भारत की माननीय राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों के एशिया पैसिफिक मंच की 28वीं वार्षिक आम बैठक और द्विवार्षिक सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर संबोधन

मुझे, एशिया पैसिफिक मानव अधिकार मंच की वार्षिक आम बैठक और द्विवार्षिक सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए वास्तव में बहुत खुशी हो रही है। जब मानव अधिकारों की बात होती है, तो मुझे इसके बारे में बात करने की प्रेरणा होती है। यह मेरे सार्वजनिक जीवन में हमेशा शामिल रही है, गतिशील रही है और मेरे दिल के काफी करीब रही है। जैसे- जैसे मानव जाति नैतिक और आध्यात्मिक रूप से तरक्की करती है, मानव अधिकार की परिभाषा और विकसित होती जाती है।

मुझे इस बात से बड़ी संतुष्टि मिलती है कि यह अवधारणा भारतीय सभ्यता में गहराई से जुड़ी है। दुनिया ने इसकी पहली झलक तब देखी, जब लगातार दो विश्व युद्धों के कारण हुए भारी विनाश के बाद, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा की शुरुआत में 'सभी मनुष्य स्वतंत्र पैदा हुए हैं और समान हैं' का सूत्रपात किया। तब भारत की प्रतिनिधि, महात्मा गांधी की शिष्या और स्वतंत्रता सेनानी हंसाबेन मेहता ही थीं, जिन्होंने इसे 'सभी मनुष्य स्वतंत्र पैदा हुए हैं और समान हैं' में बदलने का सुझाव दिया था। उनके एक शब्द के परिवर्तन से अधिकारों की अवधारणा का विस्तार हुआ।

मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के मसौदे को आकार देने में महात्मा गांधी का जीवन और विचार भी महत्वपूर्ण रहे हैं। उनसे मानव अधिकार विमर्श प्रभावित हुआ। यह उनके प्रभाव से ही संभव हुआ है कि मानव अधिकारों की धारणा का विस्तार जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं से लेकर जीवन की गरिमा तक हो गया है। जैसा कि आप में से बहुत से लोगों को ज्ञात है कि 7 जून, 1893 को गांधीजी के साथ असम्मानपूर्ण व्यवहार किया गया था और उन्हें नस्लीय भेदभाव के कारण दक्षिण अफ्रीका के पीटरमैरिट्जबर्ग में ट्रेन के प्रथम श्रेणी डिब्बे से नीचे उतार दिया गया था। इस घटना से उनका जीवन बदल गया और उन्होंने लाखों लोगों को अपने अधिकारों और सम्मान के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।

इसी प्रकार डॉ. बी.आर. अम्बेडकर भी मानव अधिकारों के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने दलित वर्गों को अपने अधिकारों के लिए खड़े रहना और सम्मान के साथ जीना सिखाया। उन्होंने भारत के संविधान को आकार देने में आगे बढ़कर नेतृत्व किया, जिसमें न केवल अधिकारों, स्वतंत्रता और न्याय की आधुनिक अवधारणा शामिल है बल्कि यह भारतीय लोकाचार में भी गहराई से निहित हैं। भारत दुनिया को एक परिवार अर्थात 'वसुधैव कुटुम्बकम' के रूप में देखता है, यही धारणा हाल ही में संपन्न जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान गूंजी।

हमारे संविधान ने गणतंत्र बनने के बाद से सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को अपनाया और हमें महिला-पुरुष न्याय और जीवन और सम्मान की सुरक्षा के क्षेत्र में आगे ले जाने में समर्थ बनाया जिससे अनेक मूक क्रांतियां हो पाई। हमने स्थानीय निकायों के चुनावों में महिलाओं के लिए न्यूनतम 33 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित किया है। आज सुखद संयोग है कि राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रीय संसद में महिलाओं के लिए समान आरक्षण प्रदान करने का प्रस्ताव चल रहा है। महिला-पुरुष न्याय के लिए हमारे समय में यह सबसे परिवर्तनकारी क्रांति होगी। पिछले कुछ वर्षों में, सरकार ने आवास, शौचालय, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं जैसी बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करने और इस प्रकार गरीबों के सम्मान कि सुरक्षा के लिए कई महत्वाकांक्षी योजनाएं भी शुरू की हैं। मैं, स्वयं एक ऐसी पृष्ठभूमि से हूं, जहां मैने जाना है कि कैसे अभाव, गरीबी और अशिक्षा जीवन को दयनीय बना देती है, आर्थिक और सामाजिक असमानताओं से मानव अधिकारों का उतना ही उल्लंघन होता हैं जितना अन्य किसी भी प्रकार के भेदभाव से होता है।

देवियो और सज्जनो,

एशिया पैसिफिक मानव अधिकार मंच में क्षेत्र के 26 देश शामिल हैं। इस समूह का गठन करने वाले अधिकांश देश ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उनमें से कई देशों की विरासत और मूल्य एक जैसे हैं जो इस क्षेत्र को बाकी दुनिया से अलग बनाते हैं। इन सदस्य राष्ट्रों ने मनुष्यों की जीवन की स्थितियों में सुधार करने के लिए एक दूसरे के साथ समन्वय किया है। वर्ष 1996 से, जब इस फोरम का गठन हुआ था तब से देशों के समूह ने अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक साथ लंबी दूरी तय कर ली है। लेकिन हमें अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है।

यहां, मैं आपका ध्यान लोकतांत्रिक मूल्यों और व्यक्तिगत अधिकारों के संबंध में भारत के ऐतिहासिक अनुभव की ओर आकृष्ट करना चाहूंगी। पश्चिमी दुनिया के मैग्ना कार्टा के माध्यम से समान मानव अधिकारों की अवधारणा आने से बहुत पहले, दक्षिणी भारत के एक श्रद्धेय संत और दार्शनिक बसवन्ना ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता की अवधारणा का विस्तार किया। उन्होंने लोगों की एक सभा बनाई जिसे 'अनुभव मंतपा' कहा जाता था, इस सभा में हर वर्ग और लिंग के व्यक्ति भाग लेते थे और अपने सामूहिक भाग्य का निर्धारण करते थे। इसी प्रकार, गणतंत्र की अवधारणा आधुनिक प्रतीत हो सकती है लेकिन लगभग 2,800 साल पहले, भारत में वैशाली में दुनिया की पहली जन प्रतिनिधि की सरकार बनी थी। मैं, इतिहास का उल्लेख केवल यह बताने के लिए कर रही हूं कि भारत और इस एशिया पैसिफिक क्षेत्र के अन्य राष्ट्र सभ्यतागत रूप से मानवाधिकारों के संरक्षक रहे हैं। हम मानव अधिकारों में सुधार के लिए दुनिया के अन्य हिस्सों में सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखने के लिए भी तैयार हैं। मेरा मानना ​​है कि यह एक सतत चलने वाला कार्य है। इस फोरम को दुनिया भर के मानव अधिकार संस्थानों और हितधारकों के साथ विचार-विमर्श और परामर्श के माध्यम से एक अंतरराष्ट्रीय सहमति विकसित करने में एक बड़ी भूमिका निभानी है। और, मैं जानती हूं कि आप सभी इसे ईमानदारी से कर रहे हैं।

देवियो और सज्जनो,

मैं, इस मंच द्वारा अतीत में आयोजित किए गए सम्मेलनों की सूची देख रही थी। विशेष प्रसन्नता की बात है कि महामारी के बाद के चरण में, आप तीन साल के अंतराल के बाद व्यक्तिगत उपस्थिति से इस सम्मेलन का आयोजन कर रहे हैं। मुझे बताया गया है कि सम्मेलन में लगभग 100 विदेशी प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। आइए, कुछ समय के लिए हमारे चारों ओर हो रही महामारी और प्राकृतिक आपदाओं के कारणों पर विचार करें। आइए, हम जलवायु परिवर्तन की उन चुनौतियों पर भी विचार करें जो इस ग्रह के अस्तित्व के लिए खतरा बन गई हैं।

मनुष्य अच्छा निर्माता है और विध्वंसक भी है। वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, यह ग्रह छठे विलुप्त होने के चरण में प्रवेश कर चुका है जहां मानव द्वारा किया जा रहा विनाश नहीं रोका गया तो न केवल मानव जाति बल्कि पृथ्वी पर अन्य जीव भी नष्ट हो जाएंगे। इस संदर्भ में, मैं आपसे आग्रह करती हूँ कि मानव अधिकारों के मुद्दे को अलग मानकर नहीं चले और प्रकृति की देखभाल पर भी उतना ही ध्यान दें, जो मानव द्वारा अविवेकपूर्ण उपयोग से बुरी तरह आहत है। भारत का मानना है कि ब्रह्मांड का प्रत्येक कण दिव्यता से भरा है। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, आइए, हम प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए अपने प्रेम को फिर से जगाना होगा।

देवियो और सज्जनो,

मुझे यह जानकर खुशी हुई कि इस सम्मेलन का आयोजन मानव अधिकारों पर एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने के लिए किया गया है, इसे कार्यरूप देने से सभी मनुष्यों के लिए अच्छा जीवन सुनिश्चित होगा। संहिताबद्ध कानून से अधिक, अंतर-राष्ट्रीय समुदाय का नैतिक दायित्व है की वह हर प्रकार से मानव अधिकार सुनिश्चित करे। मुझे बताया गया है कि सम्मेलन में तीन व्यावसायिक सत्र होंगे जिनमें पेरिस सिद्धांतों और मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा जैसे अंतरराष्ट्रीय समझौतों को शामिल किया जाएगा जो दुनिया भर में मानव अधिकार संस्थानों पर विचार-विमर्श करने और उनके साथ समन्वय करने के लिए बुनियादी ढांचा प्रदान करते हैं। मुझे यह जानकर बेहद खुशी हुई कि एक सत्र विशेष रूप से पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के विषय को समर्पित है जिसका गरीब देशों के लोगों के मानव अधिकारों पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ेगा। मुझे यकीन है कि सम्मेलन एक व्यापक घोषणा-पत्र जारी करेगा जो मानवता और ग्रह की बेहतरी का मार्ग प्रशस्त करे।

अंत में, मैं आप सबकी सफलता की कामना के लिए शक्तिशाली मंत्र, 'सर्वे भवन्तु सुखिनः (सभी खुश रहें)' का उल्लेख करूंगी, जो एनएचआरसी का लोगो भी है। मुझे इस सम्मेलन में आमंत्रित करने के लिए मैं एक बार फिर एनएचआरसी अध्यक्ष श्री न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा जी का धन्यवाद करती हूं।

धन्यवाद,  
जय हिन्द!  
जय भारत!

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