भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का संविधान दिवस के अवसर पर सम्बोधन
नई दिल्ली : 26.11.2024
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संविधान दिवस के पावन अवसर पर आप सभी के बीच आकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। संविधान हमारे देश का सबसे पवित्र ग्रंथ है।
आज हम सब, एक ऐतिहासिक अवसर के भागीदार भी बन रहे हैं, और साक्षी भी। पचहत्तर वर्ष पहले, संविधान-सदन के इसी केंद्रीय कक्ष में, आज ही के दिन, संविधान-सभा ने, नव-स्वाधीन देश के लिए संविधान-निर्माण का बहुत बड़ा कार्य सम्पन्न किया था। उस दिन, संविधान-सभा के माध्यम से हम भारत के लोगों ने, इस संविधान को अपनाया, अधिनियमित किया और आत्मार्पित किया था।
हमारा संविधान, हमारे लोकतांत्रिक गणतंत्र की सुदृढ़ आधारशिला है। हमारा संविधान, हमारे सामूहिक और व्यक्तिगत स्वाभिमान को सुनिश्चित करता है।
आज, कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से, मैं संविधान-सभा के सदस्यों और कर्मियों को श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं। यह देश का सौभाग्य है कि संविधान-सभा के अध्यक्ष डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने तथा प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकर ने संविधान-निर्माण की यात्रा का मार्गदर्शन किया। बाबासाहब आंबेडकर की प्रगतिशील और समावेशी सोच की छाप हमारे संविधान पर अंकित है। संविधान-सभा में बाबासाहब के ऐतिहासिक संबोधनों से यह तथ्य स्पष्ट होता है कि भारत, लोकतंत्र की जननी है। अपने लोकतंत्र पर गौरव की इसी भावना के साथ आज हम सब इस विशेष अवसर पर एकत्र हुए हैं। यह अवसर, संविधान-सभा की पंद्रह महिला सदस्यों के योगदान को स्मरण करने का भी है। हमें उन अधिकारियों के अमूल्य योगदान को भी याद रखना चाहिए जिन्होंने नेपथ्य में रहकर काम किया। उनकी कार्यनिष्ठा ने संविधान निर्माण की प्रक्रिया को सुचारु रूप से आगे बढ़ाया। उनमें प्रमुख भूमिका श्री बी.एन. राव की थी जो संविधान-सभा के संवैधानिक सलाहकार थे। मैं संविधान-सभा के सचिव श्री एच.वी.आर. आयंगर, संयुक्त सचिव श्री एस.एन. मुखर्जी और उप-सचिव श्री जुगल किशोर खन्ना का भी उल्लेख करना चाहूंगी।
माननीय सांसद-गण,
स्वतन्त्रता के 75 वर्ष पूर्ण होने पर सभी देशवासियों ने ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मनाया। आगामी 26 जनवरी को हम अपने गणतंत्र की 75वीं वर्षगांठ मनाएंगे। इस तरह के समारोह हमें अब तक की यात्रा का अवलोकन करने और आगे की यात्रा की बेहतर योजना बनाने के अवसर प्रदान करते हैं। ऐसे समारोह हमारी एकता को मजबूत बनाते हैं तथा यह दर्शाते हैं कि राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के प्रयासों में हम सब एक साथ हैं।
हमारे स्वाधीनता संग्राम के दौरान, अनेक महान विभूतियों ने, हमारे राष्ट्रीय आदर्शों को रेखांकित किया था। हमारी संविधान-सभा में हमारे देश की विविधता को अभिव्यक्ति मिली थी। संविधान-सभा में सभी प्रान्तों और क्षेत्रों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति से, अखिल भारतीय चेतना को स्वर मिला था। संविधान-सभा के वाद-विवाद तथा सदस्यों के संबोधनों में हमें संविधान निर्माण की प्रक्रिया के साथ-साथ अपने देश के बारे में गहरी जानकारी प्राप्त होती है। आज जिन पुस्तकों का विमोचन किया गया तथा जो short-film दिखाई गई, उनसे, लोगों को, हमारे संविधान निर्माण के गौरवशाली इतिहास का परिचय प्राप्त होगा।
एक अर्थ में, भारत का संविधान कुछ महानतम मेधावी लोगों द्वारा लगभग तीन वर्षों के विचार-विमर्श का परिणाम था। लेकिन, सही अर्थों में, यह हमारे लंबे स्वाधीनता संग्राम का परिणाम था। उस अतुलनीय राष्ट्रीय आंदोलन के आदर्शों को संविधान में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया। उन आदर्शों को, सुस्पष्ट और संक्षिप्त रूप से संविधान की प्रस्तावना में व्यक्त किया गया है। वे आदर्श हैं - न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता। ये आदर्श सदियों से भारत को परिभाषित करते रहे हैं।
मेरा मानना है कि संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित आदर्श एक दूसरे के पूरक हैं। समग्र रूप से, ये सभी आदर्श ऐसा वातावरण उपलब्ध कराते हैं जिसमें हर नागरिक को फलने-फूलने, समाज में योगदान देने, तथा साथी नागरिकों की मदद करने का अवसर मिलता है।
माननीय सांसद-गण,
संविधान की भावना के अनुसार, कार्यपालिका, विधायिका, और न्यायपालिका का यह दायित्व है कि वे सामान्य लोगों के जीवन को सुगम बनाने के लिए मिलजुल कर काम करें।
संसद द्वारा पारित किए गए अनेक अधिनियमों से जन-आकांक्षाओं को अभिव्यक्ति मिली है। देश के आर्थिक एकीकरण के लिए, स्वतंत्रता के बाद का सबसे बड़ा टैक्स-सुधार, Goods and Services Tax के रूप में किया गया। वर्ष 2018 में ‘राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया। Women led development की सोच को यथार्थ रूप देना सामाजिक न्याय के संवैधानिक आदर्श को प्राप्त करने के लिए अनिवार्य है। ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ द्वारा हमारे लोकतंत्र में महिला सशक्तिकरण के एक नए युग की शुरूआत की गई है। दंड के स्थान पर न्याय तथा अपराध के स्थान पर सुरक्षा की भावना पर आधारित भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को पारित करके सांसदों ने आधुनिक सोच को अपनाने का प्रभावशाली परिचय दिया है। ऐसे अनेक अधिनियमों को पारित करने के लिए मैं सभी सांसदों की सराहना करती हूं।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान, सरकार ने समाज के सभी वर्गों, विशेषकर कमजोर वर्गों के लोगों के विकास के लिए अनेक कदम उठाए हैं। ऐसे निर्णयों से लोगों का जीवन बेहतर हुआ है तथा उन्हें प्रगति के नए अवसर मिल रहे हैं। गरीब लोगों को अपना पक्का घर मिल रहा है, बिजली-पानी-सड़क की सुविधा मिल रही है। खाद्य सुरक्षा और चिकित्सा-सेवाएं मिल रही हैं। देश में बड़े पैमाने पर विश्व-स्तर का infrastructure बनाया जा रहा है। समग्र और समावेशी विकास के ऐसे अनेक प्रयास हमारे संवैधानिक आदर्शों को आगे बढ़ाते हैं। इन प्रयासों के लिए मैं सरकार की सराहना करती हूं।
उच्चतम न्यायालय के प्रयासों से, देश की न्यायपालिका, हमारी न्याय-प्रणाली को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए, अनेक प्रयास कर रही है। न्यायपालिका, विचाराधीन कैदियों और जेल सुधारों के विषयों पर भी कार्यरत है। हमारे देश में मूल अधिकारों का दायरा समय के साथ विस्तृत होता रहा है। अपेक्षाकृत कम साधन-सम्पन्न लोगों को कानूनी सहायता प्रदान करने के संवैधानिक निर्देश के प्रति जागरूकता और सक्रियता बढ़ रही है।
माननीय सांसद-गण,
कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के साथ-साथ सभी देशवासियों की सक्रिय भागीदारी से हमारे संवैधानिक आदर्शों को शक्ति मिलती है। हमारे संविधान में प्रत्येक नागरिक के मूल कर्तव्यों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। भारत की एकता और अखंडता की रक्षा करना, समाज में समरसता की भावना का निर्माण करना, महिलाओं के सम्मान को सुनिश्चित करना, पर्यावरण की रक्षा करना, वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाना, सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करना तथा राष्ट्र को उपलब्धियों की नई ऊंचाइयों तक ले जाना नागरिकों के मूल कर्तव्यों में शामिल हैं।
हमारा संविधान एक जीवंत और प्रगतिशील दस्तावेज़ है। बदलते समय की मांग के अनुसार नए विचारों को अपनाने की व्यवस्था हमारे दूरदर्शी संविधान-निर्माताओं ने बनाई थी। हमने संविधान के माध्यम से सामाजिक न्याय और समावेशी विकास के अनेक बड़े लक्ष्यों को प्राप्त किया है। नई सोच के साथ हम भारत को विश्व-समुदाय में नई पहचान दिला रहे हैं। हमारे संविधान-निर्माताओं ने भारत को अंतर-राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का निर्देश दिया है। आज एक अग्रणी अर्थ-व्यवस्था होने के साथ-साथ हमारा देश विश्व-बंधु के रूप में यह भूमिका बखूबी निभा रहा है। साथ ही, हम विश्व-समुदाय में उपलब्ध अच्छे विचारों और बदलावों को विनम्रता के साथ आत्मसात करने के लिए भी तत्पर रहते हैं। देश की जरूरतों के मुताबिक उत्कृष्ट विचारों और पद्धतियों को अपनाने की इसी भावना का उदाहरण हमारे संविधान-निर्माताओं ने प्रस्तुत किया था।
संविधान-सभा के दूरदर्शी सदस्यों ने हमें एक प्रेरणादायक संविधान दिया जो अन्य देशों के लिए भी एक आदर्श साबित हुआ है। संविधान-सभा के अध्यक्ष और मेरे प्रतिष्ठित पूर्ववर्तियों में सर्वप्रथम, डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने वर्ष 1949 में आज ही के दिन अपने भाषण में यह विचार व्यक्त किया था कि संविधान को जीवंत बनाए रखना उन लोगों पर निर्भर करता है जो उसका संचालन करते हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि कई चीजें जो संविधान में नहीं लिखी जा सकतीं, उनका संचालन, परंपराओं के आधार पर किया जाता है। उन्होंने यह अपेक्षा व्यक्त की थी कि हमारा देश आवश्यक सामर्थ्य अर्जित करेगा और समुचित परम्पराएं विकसित की जाएंगी।
मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकती हूं कि लगभग तीन-चौथाई सदी की संवैधानिक यात्रा के दौरान, हमारे देश ने उन क्षमताओं को अर्जित करने और सार्थक परंपराओं को विकसित करने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है। हमने जो अनुभव प्राप्त किए हैं, आने वाली पीढ़ियों को, उनसे अवगत कराना चाहिए। वर्ष 2015 में, सरकार द्वारा 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। तब से प्रत्येक वर्ष मनाए जा रहे संविधान दिवस के समारोहों से, हमारे युवाओं में, देश के बुनियादी दस्तावेज़, यानी संविधान, के विषय में जागरूकता बढ़ाने में मदद मिली है। संविधान के प्रति युवाओं में उत्साह को देखकर, हम सब देश के भविष्य के प्रति आश्वस्त हो सकते हैं।
मैं सभी देशवासियों से अनुरोध करती हूं कि वे हमारे संवैधानिक आदर्शों को अपने आचरण में ढालें; मूल कर्तव्यों का पालन करें तथा वर्ष 2047 तक विकसित भारत के निर्माण के राष्ट्रीय लक्ष्य के प्रति समर्पण के साथ आगे बढ़ें।
मैं संविधान दिवस के अवसर पर सभी देशवासियों को बधाई देती हूं। आप सभी को मेरी शुभकामनाएं।
धन्यवाद,
जय हिन्द!
जय भारत!