भारत जल सप्ताह के उद्घाटन समारोह में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 08.04.2013
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मुझे, जल संसाधन मंत्रालय द्वारा आयोजित किए जा रहे भारत जल सप्ताह-2013 के उद्घाटन के अवसर पर आपके बीच उपस्थित होने पर खुशी हुई है। इस गरिमामय सभा का हिस्सा बनना मेरे लिए सौभाग्य की बात है, जिसमें प्रख्यात हस्तियां, नीति निर्माता, विशेषज्ञ और पेशेवर शामिल हैं।
इस वर्ष का विषय ‘‘कुशल जल प्रबंधन-चुनौतियां एवं अवसर’’ आज के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण है। हमारे देश के कुछ हिस्सों, विशेषकर महाराष्ट्र में, भीषण सूखा गंभीर चिंता का विषय है। भारत में बढ़ रही सूखे और बाढ़ की घटनाओं से जल संसाधनों के प्रबंधन में सुधारने लाने के उपाय ढूंढने की आवश्यकता बढ़ गई है।
देवियो और सज्जनो, जल संसाधन की हमारी उपलब्धता हमारी आबादी की तुलना में बहुत कम है। भारत में विश्व की 17 प्रतिशत जनसंख्या रहती है परंतु इसके पास 4 प्रतिशत नवीकरणीय जल संसाधन हैं।
जनसंख्या विस्तार, बढ़ते शहरीकरण तथा तीव्र औद्योगिकीकरण के जरिए उच्च आर्थिक विकास की आवश्यकता के कारण, विभिन्न उपयोगों के लिए जल संसाधन की मांग में प्रतिस्पर्धा मौजूद है। प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 2001 में 1816 क्यूबिक मीटर से कम होकर 2011 में 1545 क्यूबिक मीटर हो गई है।
जनसंख्या वृद्धि तथा आर्थिक विकास के दोहरे बोझ को कम करने के लिए, उपलब्ध जल का प्रबंधन विवेक के साथ किया जाना चाहिए। संरक्षण, संतुलित वितरण और प्रयुक्त जल का शोधन जल प्रबंधन चक्र के आवश्यक हिस्से हैं।
देवियो और सज्जनो, जल प्रणाली पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से सभी परिचित हैं। विभिन्न अध्ययनों ने अवक्षेप में परिवर्तन लाने वाले जल वैज्ञानिक चक्र पर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव को दर्शाया है। इससे अक्सर कुछ इलाकों में बाढ़ तथा कुछ में सूखे की घटनाएं सामने आई हैं। जलवायु परिवर्तन में जलस्तर और गुणवत्ता को प्रभावित करके भूजल को प्रभावित करने की क्षमता है।
जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के भाग के रूप में, जल संरक्षण, अपव्यय का न्यूनीकरण और समतापूर्ण वितरण के उद्देश्यों के साथ 2011 में राष्ट्रीय जल मिशन आंरभ किया गया था।
हमारे प्रयासों का लक्ष्य, जल की उपलब्धता में क्षेत्रीय असंतुलन को कम करना होना चाहिए। देश में जल के समतापूर्ण आवंटन को अन्तर-बेसिन जल अंतरण के द्वारा संभव बनाया जा सकता है। परंतु ऐसे किसी भी प्रयास से पहले पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक प्रभाव का अध्ययन कर लेना चाहिए।
हमें शहरी और ग्रामीण इलाकों के बीच जल के आवंटन में समता लाने के भरसक प्रयास करने चाहिए। इससे सामाजिक संघर्ष की आशंका समाप्त होगी। हमारे नगरों और औद्योगिक नगरियों को जल के न्यूनतम अपव्यय के उपाय ढूंढने चाहिए। परिवहन और रिसाव के कारण होने वाली क्षति को आवश्यकता के स्थान के निकट ही जल संसाधन विकसित करके कम किया जा सकता है।
जल संरक्षण को उतनी उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए जितनी इसके लिए जरूरी है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि हमारी पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी के जन्म दिवस को गत वर्ष जल संरक्षण दिवस के रूप में मनाया गया था। यह एक उत्तम पहल है।
देवियो और सज्जनो, हमें उन्नत जल प्रयोग प्रौद्योगिकी तथा जल स्तर के बेहतर प्रंबधन को अपनाकर घटते भूजल स्तर को रोकना होगा। हमें भूजल की मात्रा और गुणवत्ता संबंधी अपने डाटा बेस को मजबूत करना चाहिए ताकि हमारे नीतिगत प्रयास सफल हो सकें।
वर्षा जल संचयन को, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना जैसी मौजूदा ग्रामीण विकास स्कीमों के साथ जोड़कर लोकप्रिय बनाया जाना चाहिए। एकीकृत जलागम प्रबंधन के हमारे प्रयासों का लक्ष्य मृदा नमी को बढ़ाना, तलछट संग्रह में कमी करना तथा भूमि और जल उत्पादकता में वृद्धि करना होना चाहिए।
उपयोग योग्य जल आज एक दुर्लभ वस्तु हो गई है। इसलिए कीमत निर्धारण में न केवल लागत दिखाई जानी चाहिए बल्कि इसको बचत के लिए प्रोत्साहन और बर्बादी के लिए दंड के रूप में भी कार्य करना चाहिए। जल आपूर्ति, विशेषकर शहरी इलाकों के सभी स्रोतों पर, जल संरक्षण बढ़ाने तथा प्रयोक्ता प्रभार की वसूली सुनिश्चित करने के लिए मीटर लगाए जाने चाहिए।
जल प्रयोक्ता एसोसिएशनों की भूमिका को, जल प्रभार की वसूली तथा जल वितरण प्रणाली के प्रबंधन के लिए पर्याप्त अधिकार देकर सुदृढ़ किया जाना चाहिए। प्रत्येक राज्य में, जल प्रयोग के प्रबंधन में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए, दर निर्धारण हेतु जल नियामक प्राधिकरणों की संकल्पना की जानी चाहिए।
देवियो और सज्जनो, हमारे देश की कृषि में जल की बहुत मांग है। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के अंत में कुल सिंचाई की जरूरत लगभग 94 मिलियन हेक्टेयर है। अत: इस क्षेत्र में जल प्रबंधन, हमारी समग्र जल संसाधन सततता के लिए महत्त्वपूर्ण है।
हमारी कृषिभूमि में पानी का कम प्रयोग, पुनर्चक्रण और पुन:प्रयोग की त्रिसूत्रीय कार्यनीति का प्रयोग किया जाना चाहिए। हमारी सिंचाई प्रणाली में जल के विवेकपूर्ण प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। ड्रिप और स्प्रिंक्लर जैसी सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों तथा प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता के अनुरूप फसल पैटर्न को अपनाने से कृषि में जल बचत के प्रति हमारा नज़रिया दिखाई देना चाहिए।
अध्ययनों से पता चला है कि आर्थिक विकास के स्तर तथा जल आपूर्ति, स्वच्छता, अधिकांश शहरी जनसंख्या के लिए अपशिष्ट जल शोधन और अपशिष्ट जल के नियोजित प्रयोग जैसी जल संबंधी अवसंरचना की पर्याप्तता, के बीच सकारात्मक संबंध है।
वैज्ञानिक और इंजीनियरी क्षेत्रों के उल्लेखनीय योगदान के कारण अपशिष्ट जल शोधन प्रौद्योगिकी का विकास हुआ है। इससे पूरे विश्व में कृषि में अपशिष्ट जल का प्रयोग बढ़ा है। तथापि, अशोधित अपशिष्ट जल द्वारा सिंचित क्षेत्रों के मामले में, विश्व में भारत का तीसरा स्थान है। इसलिए व्यर्थ जल के पुन:चक्रण और पुन:प्रयोग के प्रयासों को बढ़ाना होगा। मुझे उम्मीद है कि ‘‘पानी की हर बूंद से अधिक फसल और आय’’ का नारा शीघ्र एक वास्तविकता बन जाएगा।
देवियो और सज्जनो, हमारे नागरिकों को सुरक्षित पेय जल सुलभ होना चाहिए, मानव स्वास्थ्य के संबंध में इसके लाभों से सभी परिचित हैं। एक अध्ययन के अनुसार, जल और स्वच्छता अवसंरचना में निवेश से पूरे देश में 1000 बच्चों के जन्म पर औसतन 25 बच्चों की मृत्यु दर को कम किया जा सकता है।
सुरक्षित पेय जल की उपलब्धता समूचे विश्व में विकास संबंधी गंभीर पहल बन चुकी है। सुरक्षित पेय जल स्रोत वाली वैश्विक जनसंख्या का अनुपात 1990 में 76 प्रतिशत से बढ़कर 2010 में 89 प्रतिशत हो गया है। इस अवधि के दौरान, लाभान्वित लोगों की संख्या बढ़कर 2 बिलियन हो गई है जिसमें से हमारे देश का हिस्सा एक चौथाई से अधिक है। परंतु अभी भी लोगों का काफी बड़ा हिस्सा इस बुनियादी आवश्यकता से वंचित है।
सुरक्षित पेय जल तक निर्धनों की पहुंच को वहनीय जल शोधन उपकरण प्रदान करने वाली मध्यम-बाजार प्रौद्योगिकियों के विकास के जरिए बढ़ाया जा सकता है। उपकरण प्राप्त करने में सूक्ष्म वित्त संस्थानों की सहायता ली जा सकती है तथा सुरक्षित पेय जल तक साझा उपयोग को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
हमारे बहुत से ग्रामीण इलाके बुनियादी जल अवसंरचनाओं से वंचित हैं जिससे महिलाओं का बहुत अधिक समय और ऊर्जा, जल संग्रह करने में व्यर्थ हो जाता है और परिणामस्वरूप वे आय अर्जन संबंधी कार्यकलापों से वंचित रह जाती है। इसलिए सभी उपेक्षित इलाकों तक जल अवसंरचना के नेटवर्क का विस्तार ग्रामीण नवीकरण प्रक्रिया में शामिल होना चाहिए।
देवियो और सज्जनो, जल संसाधन के बेहतर प्रबंधन के लिए निर्मित हमारी कार्यनीतियों में समुदाय का सक्रिय सहयोग लिया जाना चाहिए। प्रयोक्ता की सहमति न केवल सफल कार्यान्वयन के लिए आवश्यक है बल्कि इसे खुद भी एक विकास उद्देश्य होना चाहिए।
मुझे उम्मीद है कि भारत जल सप्ताह 2013 सार्थक समाधान मुहैया करवाएगा तथा जल प्रबंधन के हमारे दृष्टिकोण को दिशा देगा। मैं यह भी अपेक्षा करता हूं कि इस महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन को सतत् बनाए रखने के लिए जल प्रदर्शनी 2013 में श्रेष्ठ प्रौद्योगिकीय संभावनाओं का प्रदर्शन किया जाएगा।
मैं, इस समयानुकूल प्रयास के लिए जल संसाधन मंत्रालय को बधाई देता हूं। मैं इस कार्य में अन्य मंत्रालयों, विशेषकर कृषि, पर्यावरण और वन तथा पेय जल और स्वच्छता मंत्रालय की, साझीदारी के लिए उनकी सराहना करता हूं। मैं इस कार्यक्रम के सफल आयोजन की कामना करता हूं।
धन्यवाद,
जय हिन्द!