भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का Visitor’s Conference के उद्घाटन सत्र में सम्बोधन (HINDI)
राष्ट्रपति भवन : 03.03.2025


Visitor’s Awards के सभी विजेताओं को मैं हार्दिक बधाई देती हूं। यह पुरस्कार Innovation, Research तथा Technology Development के क्षेत्रों में उनके असाधारण योगदान को मान्यता देने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। मुझे आशा है कि हमारे देश में उच्च शिक्षा से जुड़े लोग इन क्षेत्रों में अनेक नए प्रतिमान स्थापित करेंगे।
उच्च-शिक्षा से जुड़े नीति-निर्माता, वैज्ञानिक, संस्थान-प्रमुख, विशेषज्ञ और प्रशासक-गण यहां उपस्थित हैं। आप सब हमारी शिक्षा व्यवस्था के कर्णधार हैं।
किसी भी देश के विकास का स्तर उस देश की शिक्षा व्यवस्था की गुणवत्ता में साफ झलकता है। जिन देशों में science और technology के सबसे प्रभावी कार्य हो रहे हैं, प्रायः उन्हीं देशों के Human Development Indices भी बेहतर हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू हुए लगभग पांच वर्ष हो रहे हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों से जुड़े सभी लोगों को यह सुनिश्चित करना है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सभी लक्ष्यों की ओर हम और भी तेज गति से आगे बढ़ें।
21वीं सदी के 25वें वर्ष में हम प्रवेश कर चुके हैं। भारत को knowledge economy के महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में स्थापित करने का लक्ष्य प्राप्त करने में आप सबकी निर्णायक भूमिका है। शिक्षण के साथ-साथ शोधकार्य पर भी बहुत ध्यान देने की आवश्यकता है।
शोधकार्य के संदर्भ में, मैं यह कहना चाहूंगी कि reference या citation की संख्या बड़ी होने से किसी शोधकार्य की गुणवत्ता का आकलन नहीं होना चाहिए। शोधकार्य की सार्थकता उसकी नवीनता, उपयोगिता और व्यापक प्रभाव में होती है। मैं आशा करती हूं कि भारत के उच्च-शिक्षण संस्थान स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करेंगे।
माननीय शिक्षाविदो,
भारत सरकार ने बहुत अच्छे उद्देश्य के साथ पचास हज़ार करोड़ रुपए की लागत से अनुसंधान National Research Fund की स्थापना की है। मैं आशा करती हूं कि इस महत्वपूर्ण पहल का सदुपयोग करके आप सब शोध की मानसिकता यानी research mindset को प्रोत्साहित करेंगे।
भारत के उच्च शिक्षण समुदाय की यह महत्वाकांक्षा होनी चाहिए कि हमारे संस्थानों के अनुसंधानकर्ताओं को विश्व स्तरीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जाए, हमारे संस्थानों के patents विश्व में बदलाव ला सकें, विकसित देशों के विद्यार्थी भारत को preferred destination for higher education के रूप में चुनें।
हमारे देश के विद्यार्थी विश्व के अग्रणी शिक्षण संस्थानों तथा विकसित अर्थव्यवस्थाओं को अपनी प्रतिभा से समृद्ध बनाते हैं। उनकी प्रतिभा का अपने ही देश में उपयोग करने के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं उन्हें और आकर्षक बनाया जा सकता है। भारत को Global Knowledge Super Power के रूप में स्थापित करने का हमारा राष्ट्रीय लक्ष्य तभी प्राप्त होगा जब हम पूरे विश्वास के साथ यह कह सकेंगे कि हमारी प्रयोगशालाओं में जो काम हो रहा है उसे अपनाने के लिए विश्व-समुदाय उत्सुक है।
वर्ष 2025 को हमने The Year of AI घोषित किया है। आज मैं उच्च शिक्षा के नेतृत्व से जुड़े आप सभी लोगों से एक अनुरोध करती हूं। आप सब Artificial Intelligence के क्षेत्र में नए और बड़े काम करें और करवाएं। हमारे देश के अनेक उच्च-शिक्षण संस्थानों की global brand value है। वहां के विद्यार्थियों को विश्व के सबसे अच्छे संस्थानों और कंपनियों में बड़ी-बड़ी जिम्मेदारियां दी जाती हैं। लेकिन हमारे सभी संस्थानों को बहुत तेजी से आगे बढ़ना है। हमारे विशाल देश की विशाल युवा जनसंख्या की असीम प्रतिभा का विकास तथा उपयोग करने में आप सबके नेतृत्व की पहचान होगी।
उत्कृष्टता के साथ-साथ सामाजिक समावेश और संवेदनशीलता भी हमारी शिक्षा-व्यवस्था का अनिवार्य पक्ष होना चाहिए। किसी भी प्रकार की आर्थिक, सामाजिक या मनोवैज्ञानिक सीमा, शिक्षण संस्थानों में प्रवेश प्राप्त करने तथा शिक्षा पूरी करने में बाधक नहीं होनी चाहिए।
माननीय शिक्षाविदो,
उच्च-शिक्षा-संस्थानों के प्रमुख तथा शिक्षकगण, हमारे युवा विद्यार्थियों के अभिभावक और मार्गदर्शक भी हैं। प्रत्येक विद्यार्थी का ध्यान रखना, संस्थान की व्यवस्था की प्राथमिकता होनी चाहिए। कुछ विद्यार्थियों के मन में व्याप्त असुरक्षा और निराशा को दूर करना, उन्हें नैतिक और आध्यात्मिक संबल प्रदान करना आप सबका मूलभूत कर्तव्य है। आप सब, counselling और inspiration देने के हर संभव प्रयास करें और अपने परिसर में positive energy का संचार करें, यह मेरा विशेष अनुरोध है।
On-line अध्यापन, कोविड महामारी के समय अनिवार्य हो गया था। कई कारणों से आज classroom में विद्यार्थियों की उपस्थिति घट रही है। तथा classroom teaching के प्रति विद्यार्थियों का उत्साह कम हो रहा है।
इंटरनेट पर तथा अन्य Online sources के जरिए पढ़ाई करने को विद्यार्थी अधिक पसंद करते हैं। लेकिन विद्यार्थी और शिक्षक के बीच के जीवंत संवाद का कोई विकल्प नहीं है। शिक्षकों को यह प्रयास करना है कि अध्यापन को classroom तक सीमित न रखें। Experiential Learning को बढ़ावा देने से विद्यार्थियों में विषय के प्रति रुचि बढ़ेगी तथा शिक्षकों के प्रति उनका स्नेह और सम्मान भी बढ़ेगा।
विरासत और विकास का संगम, हमारे देश की समग्र प्रगति का आधार बनेगा। हमारे देश में वैज्ञानिक उपलब्धियों की समृद्ध परंपरा रही है। उसके बारे में विस्तृत जानकारी एकत्र करना तथा युवाओं को उस ज्ञान-राशि से जोड़ना आप सबका कर्तव्य है।
National Education Policy में Indian Knowledge Systems के महत्व पर जोर दिया गया है। प्रायः प्राचीन इतिहास के कुछ ही विद्यापीठों और विभूतियों का उल्लेख किया जाता है। लेकिन Indian Knowledge Systems के ऐसे अनेक प्रेरक उदाहरण विद्यमान हैं, जिनके बारे में जानकारी का प्रसार होना चाहिए।
कश्मीर में, आज से लगभग 1200 वर्ष पूर्व, नदियों की बाढ़ और उनसे होने वाली तबाही से बचाने के लिए सुय्या नाम के expert ने असाधारण काम किया था। राज-तरंगिणी सहित प्राचीन ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है कि नदियों को सुय्या वैसे ही नचाते थे जैसे संपेरा सांप को नचाता है। Water Resource Management के प्रभावशाली प्राचीन उदाहरण पूरे देश में पाए जाते हैं। गुप्तकाल में, जिसे प्रायः भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है, तथा उसके बाद भी, तब उज्जयिनी के नाम से विख्यात उज्जैन में रहने वाले वैज्ञानिकों की विश्व-व्यापी ख्याति से प्रभावित होकर मध्य एशिया के शासकों ने उन्हें सादर आमंत्रित किया और अपने साम्राज्य को उनके ज्ञान-विज्ञान से समृद्ध किया। वहां से हमारा प्राचीन ज्ञान-विज्ञान यूरोप तक पहुंचा। प्राचीन भारत में विकसित ऐसे अनेक वैज्ञानिक सिद्धान्त आज भी उपयोग में हैं।
गंभीर शोध करके ज्ञान-विज्ञान की अमूल्य परंतु विलुप्त धाराओं को फिर से खोज निकालना बहुत उपयोगी सिद्ध होगा। मैं यह अपेक्षा करती हूं कि आप सब, प्राचीन भारतीय विज्ञान के ऐसे अनदेखे उदाहरणों का पता लगाएंगे। भारतीय ज्ञान-विज्ञान की शाखा-प्रशाखाएं देश के हर क्षेत्र में फली-फूली हैं। ऐसे organically grown knowledge systems को आज के संदर्भ में उपयोग में लाने के तरीके खोजना Higher Education Eco-System की ज़िम्मेदारी है।
माननीय शिक्षाविदो,
शिक्षण-संस्थानों में, राष्ट्र के भविष्य का निर्माण होता है। हमारे नीति- निर्माताओं, आचार्यों, संस्थान के प्रमुखों और वरिष्ठ विद्यार्थियों के आचरण से युवा विद्यार्थी सीखते हैं।
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर, महाकवि होने के साथ-साथ शिक्षण संस्थानों के निर्माण और प्रबंधन से आजीवन जुड़े रहे। गुरुदेव की दृष्टि में, प्राचीन भारत के आचार्यों का वह दायित्व-बोध बहुत महत्वपूर्ण था, जिसके बल पर उन्होंने अपने ज्ञान के उच्च स्तर को बनाए रखा था।
मैं आशा करती हूं कि आप सब, विश्व-स्तरीय सोच के साथ, युवा विद्यार्थियों के लिए जीवन-निर्माण और राष्ट्र-निर्माण के मार्ग प्रशस्त करेंगे। मुझे विश्वास है कि आप सब, विकसित भारत के निर्माताओं की पीढ़ी को तैयार करेंगे। मैं भारत के शिक्षा जगत के स्वर्णिम भविष्य की मंगल-कामना करती हूं।
धन्यवाद!
जय हिन्द!
जय भारत!