भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का संविधान दिवस के अवसर पर सम्बोधन (HINDI)

नई दिल्ली : 26.11.2025

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भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का  संविधान दिवस के अवसर पर सम्बोधन (HINDI)

संविधान दिवस के अवसर पर, मैं सभी देशवासियों को भारत के संवैधानिक लोकतंत्र की अद्वितीय सफलता पर हार्दिक बधाई देती हूं। आज के दिन मैं उन संविधान निर्माताओं को सादर नमन करती हूं जिन्होंने विश्व इतिहास के सबसे विशाल लोकतन्त्र के सबसे बड़े लिखित संविधान को स्वरूप दिया। कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका ने संविधान के आदर्शों का पालन और मर्यादाओं का निर्वहन किया है। इसके लिए मैं इन तीनों स्तंभों से जुड़े लोगों की सराहना करती हूं।

संविधान निर्माण में बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के अतुलनीय योगदान के प्रति सम्मान प्रकट करने के उद्देश्य से, वर्ष 2015 में, उनकी 125वीं जयंती के वर्ष में 26 नवंबर को प्रति वर्ष संविधान दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। बाबा साहब आंबेडकर ने केवल वंचित वर्गों के उत्थान के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्र के समग्र स्वरूप और विकास को ध्यान में रखकर कार्य किया। संविधान सभा में उनके गंभीर वक्तव्यों से उनका बहुआयामी योगदान स्पष्ट होता है। बाबा साहब की तरह ही संविधान सभा की सदस्या श्रीमती दाक्षायणी वेलायुदन समाज के उस वर्ग से आती थीं जिसे तब दलित वर्ग यानी Depressed Classes कहा जाता था। उन्होंने भी वंचित वर्गों तथा महिलाओं के लिए आवाज उठाने के साथ-साथ पूरे समाज और देश के नव-निर्माण की दृष्टि से कार्य किया। संविधान सभा में अपने एक सम्बोधन के दौरान उन्होंने कहा था ‘संविधान सभा केवल संविधान ही नहीं बनाती, बल्कि लोगों को जीवन की नई रूपरेखा भी प्रदान करती है।’ इससे स्पष्ट होता है कि संविधान सभा के सुविज्ञ महिला और पुरुष सदस्य अपनी ज़िम्मेदारी और भूमिका को बहुत व्यापक परिदृश्य में देख रहे थे। उनकी व्यापक दूरदृष्टि का लाभ हम सब को मिल रहा है तथा भारत की भावी पीढ़ियां भी लाभान्वित होती रहेंगी।

हमारा संविधान हमारी जीवंत लोकतान्त्रिक व्यवस्था का गतिशील आधार ग्रंथ रहा है। संविधान निर्माताओं ने, संविधान का संशोधन करने की संसद की शक्ति और उसके लिए समुचित प्रक्रिया का प्रावधान भी किया था। इस प्रावधान के आधार पर, बदलते संदर्भों में, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय के आदर्शों को परिभाषित किया जाता रहा है।

अब तक हुए 106 संविधान संशोधनों में नवीनतम संशोधन के द्वारा ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ जैसा सामाजिक और राजनैतिक न्याय की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाया गया। यह अधिनियम, संविधान सभा की उन 15 महिला सदस्यों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि भी है, जिन्होंने हमारी संसदीय प्रणाली में महिला सशक्तीकरण का सूत्रपात किया था। संविधान सभा से लेकर आज की संसद तक महिलाओं, अनुसूचित जातियों एवं जन-जातियों तथा अन्य पिछड़े एवं वंचित वर्गों के प्रतिनिधि सामाजिक न्याय के आदर्श की दिशा में देश को आगे बढ़ाते रहे हैं। अनुसूचित और जन-जाति क्षेत्रों से जुड़े अध्याय, हमारे संविधान की समावेशी और परिवर्तनकारी क्षमता के उल्लेखनीय उदाहरण हैं। संविधान के अनुरूप, हमारे संवैधानिक संस्थानों में लोकतन्त्र के विभिन्न स्वर सुनाई देते हैं। यह हमारी संवैधानिक व्यवस्था की बहुत बड़ी सफलता है।

देवियो और सज्जनो,

यह हमारे लिए राष्ट्रीय गौरव का विषय है कि हमारे देश की सामान्य जनता से लेकर विशेषज्ञों तक, संविधान में सबकी आस्था दृढ़ से दृढ़तर होती गई है। ‘इस विषय पर संविधान में क्या कहा गया है?’ इस प्रश्न का उत्तर, किसी कार्य अथवा व्यवस्था के उचित होने की कसौटी बन गया है।

भारत का संविधान हमारा राष्ट्रीय ग्रंथ है। संविधान के मूल्यों के अनुसार संस्थाओं और व्यक्तिगत जीवन को संचालित करना हमारा राष्ट्रीय धर्म है। भारत के उच्चतम न्यायालय का आदर्श वाक्य है- ‘यतो धर्मस्ततो जयः’ अर्थात जहां धर्म है वहीं विजय है। इस आदर्श वाक्य का हमारे महान लोकतन्त्र के संदर्भ में भावार्थ है: जहां संवैधानिक मूल्य हैं, वहीं विजय है। संवैधानिक मूल्यों का निर्वहन करने को बाबासाहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने Constitutional Morality यानी संवैधानिक नैतिकता की संज्ञा दी थी।

देवियो और सज्जनो,

हमारे संविधान निर्माताओं ने ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ की भावना से संविधान सभा में विमर्श किया और अनुच्छेदों को अंतिम स्वरूप दिया। गंभीर चुनौतियों के बीच, देश की एकता को स्थायी संवैधानिक आधार प्रदान करना हमारे संविधान निर्माताओं की प्राथमिकता थी। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने हमारे राष्ट्र को वर्तमान स्वरूप प्रदान करने के साथ-साथ संविधान के निर्माण में भी अग्रणी भूमिका निभाई।

संविधान निर्माण में जन-सामान्य की भागीदारी से हमारे लोकतन्त्र के आधार-ग्रंथ के प्रति लोगों में और अधिक आस्था बनी। जैसा कि सभी जानते हैं, वर्ष 1949 में आज ही के दिन यानी 26 नवम्बर को संविधान सभा के सदस्यों ने भारत के लोगों के प्रतिनिधि के रूप में हमारे संविधान को अपनाया। उस दिन, संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने संविधान-निर्माण-प्रक्रिया में सामान्य जनता की गहरी रुचि को रेखांकित किया था। अपने सम्बोधन में उन्होंने कहा था कि संविधान सभा की बैठकों के दौरान 53 हजार लोगों ने Visitors’ Gallery से, चर्चाओं को सुना।

संविधान सभा की बैठकें 11 सत्रों में सम्पन्न हुईं थीं। उनमें हो रही चर्चाओं पर समाचार पत्रों में विस्तृत विवरण और वाद-विवाद छपते थे। जनता से भी राय मांगी गई थी। लोगों ने सुझाव के हजारों पत्र भेजे थे। संविधान सभा में देश के प्रत्येक भौगोलिक क्षेत्र और सामाजिक वर्ग के प्रतिनिधि विद्यमान थे। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि नए राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए समावेश और जन-भागीदारी पर विशेष बल दिया जा रहा है।

एक legislative document होने के बावजूद, जन-भागीदारी और व्यापक प्रतिनिधित्व के बल पर हमारा संविधान जनता का संदर्भ-ग्रंथ बन गया। आने वाली पीढ़ियां संविधान के साथ जुड़ाव महसूस करती रहें इसके लिए बच्चों को संविधान के बारे में रोचक जानकारी दी जानी चाहिए। बच्चों को नागरिक शास्त्र की पुस्तकों में संविधान की शिक्षा दी जाती है। लेकिन संविधान का एक बाल-सुलभ संस्करण तैयार करना, बच्चों में संविधान के प्रति रुचि और जागरूकता का प्रसार करने में बहुत सहायक सिद्ध होगा। संविधान विशेषज्ञों तथा विभिन्न भारतीय भाषाओं में बाल-साहित्य के रचनाकारों के संयुक्त प्रयास से यह कार्य किया जा सकता है। जिस अवस्था में बच्चे की जीवन दृष्टि का विकास हो रहा होता है, उसी अवस्था में संवैधानिक आदर्शों और कर्तव्यों को आत्मसात करने से एक अच्छे नागरिक का व्यक्तित्व निर्माण हो सकेगा।

देवियो और सज्जनो,

हमारा संविधान विश्व इतिहास के सबसे बड़े गणराज्य का स्रोत है। यह विविधता में एकता का स्रोत है। यह विषमताओं की पृष्ठभूमि में स्थापित की गई समता का स्रोत है। यह विश्व की सबसे बड़ी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में शांतिपूर्ण सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक क्रांति का स्रोत है। यह व्यक्ति की गरिमा और हमारी राष्ट्रीय एकता को सुनिश्चित करने का स्रोत है। यह हमारी बहु-स्तरीय एवं बहु-आयामी शासन व्यवस्था का स्रोत है। यह निरंतरता के साथ परिवर्तन का स्रोत है।

संविधान के अनुसार, राज्य को यह सुनिश्चित करना है कि हमारी न्याय व्यवस्था सबको समान अवसर के आधार पर न्याय सुलभ कराए। इस दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन सभी हितधारकों को इस बात पर ध्यान देना है कि free legal aid की सुविधा, वंचित वर्गों के लोगों के लिए सुलभ हो तथा अधिक प्रभावी बने।

देवियो और सज्जनो,

हमारे संविधान निर्माताओं ने गहन विमर्श के बाद संसदीय प्रणाली को अपनाया। संविधान में कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की शक्तियों, कर्तव्यों और उनसे जुड़ी प्रक्रियाओं का विस्तार से प्रावधान किया गया है। मुझे विश्वास है कि सरकार के ये तीनों अंग अपने-अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए पारस्परिक समन्वय के साथ हमारी संवैधानिक व्यवस्था को और अधिक मजबूत बनाते रहेंगे। समन्वयपूर्ण संवैधानिक व्यवस्था से हमारे नागरिक लाभान्वित होंगे तथा हमारा देश विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य की ओर अधिक तेज गति से आगे बढ़ेगा। संवैधानिक समन्वय और संतुलन पर इस दृढ़ आस्था के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं।

धन्यवाद, 
जय हिन्द! जय भारत!
 

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