भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का राष्ट्रीय महिला आयोग के स्थापना दिवस के अवसर पर संबोधन (HINDI)

नई दिल्ली : 31.01.2023
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भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का राष्ट्रीय महिला आयोग के स्थापना दिवस के अवसर पर संबोधन

राष्ट्रीय महिला आयोग के Foundation Day पर आयोजित महिला सशक्तीकरण के इस कार्यक्रम में आकर मुझे बहुत प्रसन्‍नता हो रही है।

अभी हाल ही में सभी देशवासियों ने 74वां गणतंत्र दिवस मनाया। मुझे यह देखकर बहुत गर्व हुआ कि कर्तव्य पथ पर गणतंत्र दिवस परेड की झांकियों में हमारी 'महिला शक्ति' का अभूतपूर्व प्रदर्शन था। विभिन्न राज्यों, सेनाओं तथा अर्धसैनिक बलों की झांकियां, नारी शक्ति के नेतृत्व में, महिला सशक्तीकरण को समर्पित थी। नारी शक्ति का यह सम्मान एक उभरते हुए नए भारत को दर्शाता है। हमारा यह उद्देश्य होना चाहिए कि यह प्रदर्शन केवल एक प्रतीक न हो। बल्कि वास्तविक हो, हर स्तर पर विशेषकर जमीनी-स्तर पर हो, हर क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी और उनके नेतृत्व का ठोस उदाहरण हो।

देवियो और सज्जनो,

आज हम राष्ट्रीय महिला आयोग का 31वां स्थापना दिवस मना रहे हैं। मेरे मन में एक सवाल है कि आखिर हमें महिलाओं के लिए ही अलग से एक आयोग बनाने की जरुरत क्यों महसूस हुई? इस सवाल का जवाब अपने आप ही मिल जाता है। हम देखते है कि हमारी बहनें-बेटियां अंतरिक्ष में उड़ान भर रही है, सैन्य-दलों में नेतृत्व दे रही है तो दूसरी ओर वे घरेलू हिंसा का शिकार हो रही है, और उन्हें workplace में discrimination और harassment का सामना भी करना पड़ता है।

राष्ट्रीय महिला आयोग का मिशन है 'महिलाओं के प्रति भेदभाव एवं उन पर अत्याचारों से पैदा हो रही विशिष्ट समस्याओं को हल करना और महिलाओं को सक्षम बनाने के लिए प्रयास करना।' देश की आधी आबादी के लिए एक अलग आयोग बनाने की आवश्यकता यह दर्शाती है कि महिला शक्ति को उसका यथोचित सम्मान और अधिकार मिलना बाकी है। महिलाओं की स्थिति में सुधार से ही देश समग्र प्रगति कर सकेगा। यह भी देखने में आया है कि जिन क्षेत्रों में आरक्षण की व्यवस्था है, वहां पर भी पुरुष ही आगे आ रहे है। आरक्षण का लाभ भी अभी तक महिलाओं तक पूरी तरह नहीं पहुंच पाया है।

महिला शक्ति के बिना एक सशक्त और स्वस्थ समाज की परिकल्पना संभव ही नहीं है। स्त्री को केवल पूजा योग्य मान लेना और कह देना काफी नहीं है। आज 21वीं सदी में महिलाएं, सार्वजनिक और निजी जीवन में आगे बढ़कर विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्धियां हासिल कर रही है। हम सबको मिलकर एक ऐसा वातावरण बनाने की दिशा में काम करना है जहां सभी महिलाएं सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्रों में पूरी तरह से भाग ले सकें और अहम योगदान दे सकें।

देवियो और सज्जनो,

महिला सशक्तीकरण केवल सामाजिक न्याय का मुद्दा नहीं है, यह एक आर्थिक अनिवार्यता भी है। जब महिलाएं सशक्त होती हैं, तो देश आगे बढ़ता है। विभिन्न अध्ययनों से यह पता चला है कि जब महिलाओं को शिक्षा और नौकरी में समान अवसर दिए जाते है, तो उनकी workforce में शामिल होने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था और मजबूत होती है।

कार्यबल में महिलाओं की कम भागीदारी हमारे देश के सम्पूर्ण विकास में एक बड़ी बाधा है। भारत आज विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। और अब देश पांच ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बनने की ओर आगे बढ़ रहा है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए महिलाओं की और अधिक सक्रिय भूमिका सहायक होगी।

आज भी देश के कई हिस्सों में gender-ratio की स्थिति चिंताजनक है। आज 21वीं सदी के आधुनिक युग में भी लड़का और लड़की में भेद किया जाता है। ऐसा क्यों है? यह हम सबको सोचना है। इस स्थिति को बदलना, केवल सरकार की नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है। मैं यह भी कहना चाहूंगी कि जिस समाज में नारी-शक्ति को सम्मान नहीं मिला, उस समाज ने कभी तरक्की नहीं की।

महिलाओं के सशक्तीकरण पर चर्चा करते हुए एक विचित्र paradox या विसंगति पर प्रकाश डालना बहुत जरूरी है। मैंने देखा है कि गरीब जनजातीय समाज में, महिलाओं को कामकाज में और सभी क्षेत्रों में भागीदारी के समान अवसर मिलते हैं। लेकिन, आर्थिक रूप से तथा अन्य क्षेत्रों में विकसित इलाकों में, महिलाओं की भागीदारी बहुत कम देखी जा रही है। उदाहरण के लिए, संघ राज्य क्षेत्र दिल्ली, GDP और per capita income, दोनों दृष्टियों से बहुत आगे है। लेकिन, workforce में women participation केवल 15 प्रतिशत है। इसी तरह देश के बहुत शिक्षित इलाकों में female foeticide के दुखद उदाहरण भी दिखाई देते हैं। Gender justice को सुनिश्चित करते हुए हमें अपने विकास को न्यायपरक बनाना है। हमारा विकास सही अर्थों में विकास तभी कहा जाएगा जब महिलाओं की स्थिति पुरुषों के समान होगी।

इस सन्दर्भ में तमिल भाषा के महाकवि सुब्रमण्यम भारती की एक कविता याद आती है। उनकी कविता का भावार्थ है कि:

यदि तुम अपनी ही दोनों आँखों में से एक आँख को नष्ट करते हो,

तो क्या तुम अपनी देखने की क्षमता को नहीं खराब करते हो?

वास्तव में, यदि महिलाएं और अधिक शिक्षित और सक्षम होंगी, तो विश्व-समुदाय और अधिक प्रगतिशील तथा विकसित हो जाएगा, और अनेक विसंगतियों से मुक्त हो जाएगा।

देवियो और सज्जनो,

भारतीय संस्कृति में महिलाओं को सदैव ही सम्‍मानपूर्ण स्थान दिया गया है और महिलाएं समाज के सर्वोच्‍च स्थान पर प्रतिष्ठित रही हैं। आज भी हम लोग देवी दुर्गा, लक्ष्‍मी, काली और सरस्वती की पूजा करते हैं। यही नहीं हम गांव में प्रवेश करने से पहले ग्राम देवी को भी नमन करते हैं। यह नारी शक्ति के प्रति आगाध सम्‍मान का प्रतीक है। नारी को जननी कहा गया है। जननी संतान को जन्म ही नहीं देती, उसका पालन-पोषण भी करती है। जो महिला-शक्ति संतान का पालन-पोषण करती है, वह पूरे समाज, राष्ट्र व विश्व का पालन-पोषण कर सकती है।

मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि राष्ट्रीय महिला आयोग अपने निरंतर प्रयासों से भारत में gender equality तथा empowerment के लिए प्रतिबद्ध है। राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा चलाये जा रहे एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम का नाम ही है "She is a Changemaker"। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्राम पंचायतों से लेकर संसद तक, सभी स्तरों पर महिला प्रतिनिधियों के लिए capacity building कार्यक्रम चलाकर उन्हें सशक्त और प्रभावी नेतृत्व देने में मदद करना है। मैं इन प्रयासों के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की पूरी टीम की सराहना करती हूं और उन्हें बधाई देती हूं।

मैं सभी महिलाओं से अनुरोध करती हूं कि आप हर प्रकार की बाधाओं को पार करते हुए दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ें। आप सब अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहें तथा दूसरी महिलाओं को भी जागरूक बनाएं। मेरा मानना है कि महिलाएं जब स्वयं आगे बढेंगी, तभी वे समाज और देश को प्रगति की नई राह पर ले जाएंगी। अंत में, राष्ट्रीय महिला आयोग को, ‘सशक्त महिला, सशक्त भारत’ बनाने के प्रयासों के लिए मैं शुभकामनाएं देती हूं।

धन्यवाद!  
जय हिन्द!  
जय भारत!

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