भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का ‘लोक मंथन-2024’कार्यक्रम में सम्बोधन (Hindi)
हैदराबाद :
लोक-मंथन का उद्घाटन करके मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। मैं वर्ष 2018 में रांची में आयोजित लोक-मंथन कार्यक्रम में शामिल हुई थी। भारत की समृद्ध संस्कृति, परम्पराओं और विरासत में एकता के सूत्रों को सुदृढ़ बनाने का यह प्रयास अत्यंत सराहनीय है। प्रज्ञा प्रवाह के तत्त्वावधान में इस आयोजन में योगदान देने वाले सभी संगठनों की मैं प्रशंसा करती हूं।
भारत की सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को गहराई से समझना तथा हमारी अमूल्य परम्पराओं को निरंतर मजबूत बनाना सभी देशवासियों का कर्तव्य है। मुझे यह देखकर प्रसन्नता होती है कि आप सब ऐसे सार्थक समारोहों का आयोजन करके देशवासियों में सांस्कृतिक स्वाभिमान की भावना को प्रबल बनाते हैं।
देवियो और सज्जनो,
मुझे बताया गया है कि यह संगोष्ठी, राष्ट्र को सर्व-प्रथम मानने और उसी मान्यता के अनुसार कार्य करने वाले निष्ठावान लोगों को, एक प्रभावी मंच प्रदान करती है।
जब हम भारतीय संस्कृति की विविधता तथा अनेकता में एकता की बात करते हैं तो एकता का भाव ही मुख्य भाव होता है। विविधता तथा अनेकता हमारी मूलभूत एकता को इंद्रधनुषी सुंदरता प्रदान करते हैं। हम चाहें वनवासी हों, ग्रामवासी हों या नगरवासी हों, सबसे पहले हम सभी भारतवासी हैं। इस राष्ट्रीय एकता की भावना ने हमें सभी चुनौतियों के बावजूद, एक सूत्र में जोड़कर रखा है।
हमारे समाज को हर तरह से बांटने के और कमजोर करने के प्रयास सदियों से किए गए हैं। हमारी सहज एकता को खंडित करने के लिए कृत्रिम भेद-भाव पैदा किए गए हैं। लेकिन, भारतीयता की भावना से ओत- प्रोत देशवासियों ने राष्ट्रीय एकता की मशाल जलाए रखी है। हमारे मध्यकालीन संत-कवियों से लेकर, ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध स्वाधीनता संग्राम के दौरान उत्तर से दक्षिण तक और पूर्व से पश्चिम तक, भारत को राष्ट्रीयता की भावना से जोड़ने वाले महा-कवियों ने, प्राचीनकाल से चली आ रही, भारत की भावनात्मक एकता को बचाए रखा और उसे आगे बढ़ाया।
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि लोक-मंथन के कार्यक्रमों में पुण्य- श्लोका लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर और रानी रुद्रम-देवी जैसी महान वीरांगनाओं के जीवन-चरित पर आधारित नाटकों का मंचन किया जाएगा। यह हमारे देश की शौर्य-परंपरा और नारी शक्ति को सम्मान प्रदान करने की हमारी सोच से देशवासियों को, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने का सराहनीय प्रयास होगा।
यह भी खुशी की बात है कि इस आयोजन में दूसरे देशों के कलाकारों द्वारा भी सांस्कृतिक प्रस्तुतियां की जाएंगी। मुझे बताया गया है कि इन प्रस्तुतियों की कथा-वस्तु विदेशों में प्रचलित सूर्यदेव की उपासना और रामायण की कथा पर आधारित है। यह प्राचीनकाल से चले आ रहे भारत के सांस्कृतिक प्रभाव का प्रमाण है।
प्राचीनकाल से ही भारतीय विचारधारा का प्रभाव विश्व में दूर-दूर तक फैला हुआ था। यह प्रभाव आज भी उन देशों की धार्मिक और सांस्कृतिक परम्पराओं में देखा जाता है। भारतीय संस्कृति के इस विशाल प्रभाव-क्षेत्र को कुछ लोग 'इंडोस्फीयर' का नाम देते हैं। इंडोस्फीयर यानी विश्व का ऐसा क्षेत्र जहां भारत के जीवन-मूल्यों और संस्कृति का प्रभुत्व था और आज भी दिखाई देता है। भारत की धार्मिक मान्यताएं, कला, संगीत, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा-पद्धतियां, भाषा और साहित्य दुनिया भर में सराहे जाते रहे हैं। सबसे पहले, भारतीय दर्शन पद्धतियों ने ही आदर्श जीवन- मूल्यों का उपहार विश्व-समुदाय को दिया था। अपने पूर्वजों की उस गौरवशाली परंपरा को और मजबूत बनाना हमारा दायित्व है।
यह भी प्रसन्नता की बात है कि कई राज्यों के शिल्पकार, इस आयोजन के दौरान, अपनी कलाओं का प्रदर्शन करेंगे। इसी वर्ष सितंबर में मुझे सिकंदराबाद में स्थित राष्ट्रपति निलयम में भारतीय कला महोत्सव में भाग लेने का सुअवसर प्राप्त हुआ था। भारतीय कलाएं और कलाकार हमारी राष्ट्रीय एकता को सुंदर स्वरूप प्रदान करते हैं।
देवियो और सज्जनो,
सदियों तक, विदेशी ताकतों ने भारत पर शासन किया। उन साम्राज्यवादी एवं उपनिवेश-वादी शक्तियों ने भारत का आर्थिक दोहन तो किया ही, हमारे सामाजिक ताने-बाने को भी छिन्न-भिन्न करने का प्रयास किया।
हमारी समृद्ध बौद्धिक परंपरा के प्रति हेय दृष्टि रखने वाले शासकों ने हमारे देशवासियों में सांस्कृतिक हीन-भावना का संचार किया। ऐसी परंपराओं को हम पर थोपा गया जो हमारी एकता के लिए हानिकारक थीं। सदियों की पराधीनता के कारण हमारे देशवासी गुलामी की मानसिकता का शिकार हो गए। भारत को पुनः श्रेष्ठतम राष्ट्र बनाने के लिए देशवासियों की मानसिकता को एकता और श्रेष्ठता के सूत्र में पिरोना होगा।
इस बार लोक-मंथन का विषय ‘लोक-अवलोकन’ है। इसमें लोक-विचार, लोक-व्यवहार और लोक-व्यवस्था के तीन महत्वपूर्ण आयामों पर विचार- विमर्श किया जाएगा। इस सुविचारित विषय-प्रवाह की मैं सराहना करती हूं।
मेरे विचार से एक विकसित राष्ट्र के निर्माण के लिए सभी देशवासियों में, ‘राष्ट्र को सर्वोपरि’ मानने की भावना का संचार करना अनिवार्य है। लोक- मंथन द्वारा इसी भावना का संचार किया जा रहा है। यह विकसित भारत के निर्माण की दिशा में अत्यंत सराहनीय प्रयास है।
राष्ट्र गौरव की भावना तथा राष्ट्र को सर्वोपरि समझकर आगे बढ़ने की चेतना एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। पिछले कुछ वर्षों के दौरान, देश में, ग़ुलामी की मानसिकता से मुक्त होने के अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं। उन्नीसवीं सदी के क़ानूनों की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, भारतीय न्याय संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू किए गए हैं। दिल्ली में राजपथ का नाम बदलकर 'कर्तव्य पथ' रखा गया है। राष्ट्रपति भवन में “दरबार हॉल” का नाम बदलकर “गणतंत्र मंडप” किया गया है। यह नामकरण, हमारे देश में, लोकतन्त्र की प्राचीन परंपरा के अनुरूप है। हाल ही में उच्चतम न्यायालय में Lady Justice की नई प्रतिमा का अनावरण किया गया है जिसकी आंखों पर पट्टी नहीं बंधी है। ऐसे सभी परिवर्तन औपनिवेशिक मानसिकता के उन्मूलन के सराहनीय उदाहरण हैं।
मुझे विश्वास है कि इस आयोजन में होने वाले विचार-विमर्श भी हमारे सामूहिक दृष्टिकोण में आत्मविश्वास तथा एकता का संचार करेंगे। इससे देश में बंधुता की भावना बढ़ेगी। सामाजिक भेदभाव समाप्त होगा। देशवासी यह समझ पाएंगे कि समरसता हमेशा हमारी सभ्यता का आधार रही है। समरसता और एकता की यही शक्ति हमारी राष्ट्रीय प्रगति को ऊर्जा प्रदान करेगी। इसी विश्वास के साथ, मैं लोक-मंथन के इस आयोजन की सफलता की कामना करती हूं।
धन्यवाद!
जय हिन्द!
जय भारत!