भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का कुमाऊँ विश्वविद्यालय के 20वें दीक्षांत समारोह में सम्बोधन(HINDI)
नैनीताल : 04.11.2025
(95.65 KB)
मां नयना देवी के पवित्र नाम से जुड़े नैनीताल में स्थापित इस विश्वविद्यालय के परिसर में आकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। मेरी देवी माता से प्रार्थना है कि आप सभी विद्यार्थियों, राज्य के निवासियों तथा सभी देशवासियों पर अपनी कृपा बनाए रखें।
आज मैं देवताओं और ऋषियों की इस पावन धरा को नमन करती हूं। यह धरती सदियों से ज्ञान और संस्कृति का केंद्र रही है। यह क्षेत्र नदियों और जंगलों की अकूत सम्पदा से सम्पन्न है। यह महान धरती वीरों की भी भूमि है। इस क्षेत्र के प्रथम स्वतन्त्रता सेनानी के रूप में याद किए जाने वाले कालू सिंह महरा से लेकर सालम सलिया सत्याग्रह के नेतृत्वकर्ता राम सिंह धौनी तक अनेक स्वाधीनता सेनानियों ने संघर्ष किया था। मैं ऐसी सभी विभूतियों की स्मृति को नमन करती हूं।
इस राज्य के वीर युवाओं ने देश की रक्षा में निरंतर योगदान दिया है। इस पर सभी देशवासियों को गर्व है।
मैं आज पदक और उपाधि प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थियों को हार्दिक बधाई देती हूं। मुझे यह देखकर प्रसन्नता हो रही है कि देश के अन्य क्षेत्रों की तरह इस विश्वविद्यालय में भी कुल विद्यार्थियों और साथ ही पदक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों में बेटियों की संख्या अधिक है। मैं सभी बेटियों को हार्दिक बधाई और आशीष देती हूं।
प्रिय विद्यार्थियो,
आप सब जीवन में खूब प्रगति करें और राज्य तथा देश का गौरव बढ़ाएं। सभी विद्यार्थियों के माता-पिता और अभिभावक भी बधाई के पात्र हैं। वे आपकी यात्रा में हर कदम पर साथ खड़े रहे हैं।
आज इस दीक्षांत समारोह के साथ आपकी औपचारिक शिक्षा का एक महत्वपूर्ण चरण पूरा हो रहा है। लेकिन यह शिक्षा का अंत नहीं है। मेरा मानना है कि आपको अपने भीतर के विद्यार्थी को हमेशा जीवित रखना चाहिए।
शिक्षा आपको आत्मनिर्भर तो बनाती ही है। साथ ही शिक्षा आपको विनम्र बनने तथा समाज और देश के विकास में अपना योगदान देने के लिए प्रेरित भी करती है। आप अपनी शिक्षा और उससे कमाए हुए धन को समाज के वंचित वर्गों की सेवा और राष्ट्र-निर्माण में लगाएं। यही सच्चा धर्म है जिसे निभाकर आपको सुख और संतोष मिलेगा।
हमारी परंपरा में कहा गया है कि –
अन्नदानम् परम् दानम्, विद्यादानम् अत: परम्। अन्नेन क्षणिका तृप्ति:, यावज्जीवम् च विद्यया।। अर्थात्
अन्न दान परम दान है, और विद्या का दान उससे भी बड़ा है क्योंकि अन्न से क्षण भर की तृप्ति होती है जबकि विद्या से आजीवन तृप्ति बनी रहती है।
शिक्षा, किसी भी देश के विकास की आधारशिला होती है। इसलिए शिक्षा ऐसी होनी चाहिए, जो विद्यार्थी में बौद्धिकता और कौशल का तो विकास करे ही, साथ ही उसके नैतिक-बल और चरित्र-बल को भी मजबूत बनाए। मुझे विश्वास है कि आप सब ऐसी शिक्षा के प्रति सक्रिय आस्था बनाए रखेंगे।
देवियो और सज्जनो,
भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की तेजी से बढ़ती हुई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। हमारी अर्थव्यवस्था निरंतर प्रगति करे इसके लिए सरकार अनेक नीतिगत कदम उठा रही है। सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से युवाओं के लिए अनेक अवसर उपलब्ध हो रहे हैं। उच्च शिक्षण संस्थाओं द्वारा युवाओं को प्रोत्साहन देने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए जिससे वे इन अवसरों का समुचित उपयोग कर सकें।
देश में research, innovation और entrepreneurship को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि कुमाऊँ विश्वविद्यालय शिक्षा, अनुसंधान और नवाचार में उत्कृष्टता के लिए प्रतिबद्ध है। मुझे बताया गया है कि इस विश्वविद्यालय द्वारा नैनीताल के पास ही के क्षेत्र में नवाचार और अनुसंधान-केंद्रित विभागों की स्थापना की जा रही है।
शिक्षा के क्षेत्र में Multi-disciplinary approach बहुत आवश्यक है। शिक्षा और शोध के समुचित उपयोग के लिए यह approach महत्वपूर्ण है। मुझे विश्वास है कि आप सब इस approach के साथ आगे बढ़ेंगे।
देवियो और सज्जनो,
कुमाऊँ विश्वविद्यालय हिमालय की गोद में स्थित है। हिमालय को अनेक जीवनदायी संसाधनों के लिए जाना जाता है। इन संसाधनों का संरक्षण और संवर्धन सभी का दायित्व है। लेकिन इस संस्थान के शिक्षकों और विद्यार्थियों का दायित्व अन्य लोगों से अधिक है। मुझे खुशी है कि आपके संस्थान का कुलगीत भी इस भावना को परिलक्षित करता है।
मुझे बताया गया है कि कुमाऊँ विश्वविद्यालय पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सजग प्रयास कर रहा है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि सौर ऊर्जा को अपनाने की दिशा में यह विश्वविद्यालय अग्रसर है।
एक शिक्षण संस्थान के रूप में कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुछ सामाजिक दायित्व भी हैं। इस संस्थान के शिक्षकों और विद्यार्थियों को आस-पास के गांवों में जाना चाहिए, उनकी समस्याओं को देखना-जानना चाहिए तथा उनका समाधान निकालने के लिए यथासंभव प्रयास करना चाहिए।
प्रिय विद्यार्थियो,
हमने वर्ष 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य की प्राप्ति में आप जैसे युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। मेरा मानना है कि इस भूमिका को निभाने की शक्ति और संकल्प आपके अंदर विद्यमान है।
मुझे पूरा विश्वास है कि अपनी प्रतिभा और निष्ठा के बल पर आप सभी जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहेंगे। मैं आप सबके उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हूं।
धन्यवाद,
जय हिन्द!
जय भारत!
