भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का गुजरात विद्यापीठ के 71वें दीक्षांत समारोह में सम्बोधन (HINDI)

अहमदाबाद : 11.10.2025

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भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का  गुजरात विद्यापीठ के 71वें दीक्षांत समारोह में सम्बोधन (HINDI)

आज उपाधि प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थियों को मैं हार्दिक बधाई देती हूं। पदक-विजेता छात्र-छात्राओं की मैं विशेष सराहना करती हूं। इस विद्यापीठ से जुड़े सभी लोगों को मैं साधुवाद देती हूं। अभिभावकों को भी मैं बधाई देती हूं।

राष्ट्र-पिता महात्मा गांधी के प्रमुख कार्यस्थल अहमदाबाद में आकर मुझे बहुत प्रसन्नता होती है। अहमदाबाद में स्थित इस विद्यापीठ का परिसर हमारे स्वाधीनता संग्राम के आदर्शों की पुण्य-स्थली है। इस ऐतिहासिक परिसर से मैं बापू की पावन स्मृति को सादर नमन करती हूं।

ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध असहयोग-आंदोलन के दौरान, वर्ष 1920 में, गुजरात विद्यापीठ की स्थापना की गई। असहयोग आंदोलन के प्रस्ताव में देशवासियों से यह आग्रह भी किया गया था कि लोग ब्रिटिश सरकार के अधीन चल रहे स्कूलों और कॉलेजों से धीरे-धीरे अपने बच्चों को हटा लें और राष्ट्रीय स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना करें।

इस आह्वान के अनुसार, देशवासियों द्वारा दिए गए संसाधनों से ही ऐसे शिक्षण संस्थानों का निर्माण किया गया। यह विद्यापीठ, राष्ट्र-निर्माण और आत्मनिर्भरता के जीवंत आदर्शों का 105 वर्ष पहले स्थापित किया गया ऐतिहासिक प्रतीक है।

अक्तूबर 1920 में इस विद्यापीठ की स्थापना के बाद से जनवरी 1948 तक स्वयं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी इस संस्थान के कुलाधिपति यानी Chancellor रहे। उनके बाद सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद और मोरारजी देसाई जैसे महापुरुषों ने कुलाधिपति के रूप में इस विद्यापीठ का मार्गदर्शन किया है। देश में शायद ही ऐसा कोई अन्य संस्थान होगा जिसे ऐसी महान विभूतियों का मार्गदर्शन लगभग 75 वर्षों तक प्राप्त होता रहा हो। इसलिए, आप सबके इस विद्यापीठ से देशवासियों की विशेष अपेक्षाएं होना स्वाभाविक है।

प्रिय विद्यार्थियो,

ऐतिहासिक दांडी मार्च को आरंभ करने के लगभग एक महीना पहले, जनवरी 1930 में आयोजित, इस विद्यापीठ के दीक्षांत समारोह में गांधीजी ने स्वाधीनता-संग्राम की रूपरेखा प्रस्तुत की थी। उन्होंने अपने उस दीक्षांत भाषण में कहा था:

“... मैं इस विद्यापीठ के स्नातकों को स्वराज्य के लिए किए गए किसी भी आंदोलन में सबके आगे देखना चाहूंगा।”

इस उद्धरण का उल्लेख मैंने इसलिए किया है कि आप सभी विद्यार्थियों में यह चेतना रहे कि बापू इस विद्यापीठ के विद्यार्थियों से राष्ट्रीय अभियानों में अग्रणी योगदान की आशा करते थे। उनकी अपेक्षाओं के अनुसार इस विद्यापीठ के विद्यार्थियों को देश की प्रगति से जुड़े सभी अभियानों में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए। आप सब विद्यार्थियों को यह संकल्प लेना चाहिए कि भारत को विकसित राष्ट्र बनाना है, तथा विश्व समुदाय में भारत की क्षमता के अनुरूप अग्रणी स्थान दिलाना है।

प्रिय विद्यार्थियो,

गुजरात में स्व-रोजगार की संस्कृति सदैव विद्यमान रही है। गुजरात के उद्यमियों ने केवल देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी छाप छोड़ी है। सफल प्रवासी भारतीयों में गुजरात के लोगों की बहुत बड़ी संख्या है। आप सभी छात्र, इस विद्यापीठ से बाहर की दुनिया में उसी वैश्विक दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ें जो गुजरात की पहचान रही है।

गुजरात में स्व-रोजगार और आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करने की जो संस्कृति है उसे पूरे देश में प्रसारित करने की आवश्यकता है। मुझे विश्वास है कि गुजरात विद्यापीठ के आप सभी विद्यार्थी आत्मनिर्भरता की संस्कृति के संवाहक बनेंगे।

भारत को आत्मनिर्भर बनाना हमारी राष्ट्रीय प्राथमिकता है। इस संदर्भ में, स्वदेशी के राष्ट्रीय अभियान में आप सबको सक्रिय भूमिका निभानी है। राष्ट्र सर्वोपरि की भावना के साथ आप सबको भारतीय वस्तुओं के उपयोग को बढ़ावा देना है।

व्यक्तिगत आत्मनिर्भरता का आधार आपके अपने मन और विचारों में होता है। आंतरिक शक्ति का महत्व समझाते हुए, इसी विद्यापीठ के दीक्षांत समारोह में गांधीजी ने लगभग 100 वर्ष पहले, दिसंबर 1925 में, एक शाश्वत सत्य को अभिव्यक्त किया था। उन्होंने कहा था:

“हमें आशा की किरण बाहर के वायुमण्डल में नहीं, बल्कि अपने हृदय के अंदर ही ढूंढनी चाहिए। जिस विद्यार्थी में श्रद्धा है, जो भय से मुक्त हो गया है, जो अपने काम में जुटा है और जो अपने कर्त्तव्य के पालन को ही अधिकार मानता है, आसपास की निराशाजनक स्थिति को देखकर वह हिम्मत नहीं हारेगा। वह यह समझेगा कि अंधकार क्षणिक है और प्रकाश निकट ही है।”

प्रिय विद्यार्थियो,

आपके विद्यापीठ का ध्येय वाक्य है ‘सा विद्या या विमुक्तये’। अर्थात्, जो मुक्ति दे वही विद्या है। अज्ञान से मुक्ति, अनैतिक प्रवृत्तियों से मुक्ति तथा भय से मुक्ति विद्या के सार्थक परिणाम होते हैं। केवल आजीविका को ध्यान में रखकर विद्या ग्रहण करना उचित नहीं है। विद्या ग्रहण करना आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है। मैं आशा करती हूं कि अपने व्यक्तित्व के विकास, समाज की प्रगति और देशवासियों के हित को ध्यान में रखते हुए, आप विद्या के अर्जन को निरंतर महत्व देते रहेंगे।

मैं यह कहना चाहूंगी कि आपकी शिक्षा में देश और समाज का भी योगदान है। यह समाज और देश का आप पर ऋण है। समाज की सेवा करके आप यह ऋण चुका सकते हैं। मैं आशा करती हूं कि आप सब ‘सर्वोदय’ के सिद्धान्त का अनुसरण करते हुए, समाज के अपेक्षाकृत कम सुविधा-सम्पन्न लोगों के हित में कार्य करेंगे।

शिक्षा सामाजिक पुनर्निर्माण का सबसे प्रभावी माध्यम है। यहां के अध्यापकों और विद्यार्थियों को भी शिक्षा के इस उद्देश्य का अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए। आप सबको पर्यावरण अनुकूल विकास के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए।

देवियो और सज्जनो,

मुझे यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई है कि इस विद्यापीठ में शिक्षा प्राप्त करने वाली बेटियों की संख्या छात्रों से अधिक है। अन्य राज्यों तथा संघ- राज्य-क्षेत्रों से यहां आकर अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों में भी बेटियों की संख्या अधिक है। मैं मानती हूं कि महिलाओं और पुरुषों को शिक्षा की समान सुविधाएं मिलनी चाहिए; आवश्यकता के अनुसार महिलाओं को शिक्षा की विशेष सुविधाएं भी प्रदान करनी चाहिए।

प्रिय विद्यार्थियो,

शिक्षा को स्थानीय संदर्भों से जोड़कर आप सभी अपनी शिक्षा का व्यावहारिक उपयोग कर सकते हैं। हमारी शिक्षा प्रणाली तथा पाठ्यक्रमों में जाने-अनजाने कुछ ऐसी विषय-वस्तुओं का समावेश होता रहा है जो हमारे समाज और देश के लिए प्रासंगिक नहीं हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, भारतीय परम्पराओं, प्राथमिकताओं और भाषाओं को महत्व देते हुए, इक्कीसवीं सदी के विश्व की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम युवाओं को तैयार करने पर बल देती है।

चरित्र-निर्माण और नैतिक-मूल्यों का संचार ही शिक्षा का मूल उद्देश्य है। मुझे विश्वास है कि भारतीय परंपरा के उच्च आदर्शों का पालन करते हुए आप सब, अपने जीवन में, सफलता के साथ-साथ सार्थकता का अनुभव करेंगे। मैं आप सबके स्वर्णिम भविष्य की मंगलकामना करती हूं।

धन्यवाद!
जय हिन्द!
जय भारत!

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