भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में सम्बोधन (HINDI)

इंदौर : 19.09.2024
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भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में सम्बोधन (HINDI)

आज इस दीक्षांत समारोह में आप सब के बीच आकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। यह ख़ुशी की बात है कि विश्वविद्यालय की स्थापना के 60वें वर्ष को हीरक-जयंती के रूप में मनाया जा रहा है। मैं उपाधि प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थियों को बधाई देती हूं। सभी पदक विजेताओं को मैं विशेष बधाई देती हूं। वे सभी शिक्षकगण, माता-पिता, अभिभावकगण भी बधाई के पात्र हैं जिन्होंने आपको आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया और आपका मार्गदर्शन किया।

मैं आज इस अवसर पर इन्दौर शहर के लोगों को भी बधाई देना चाहूंगी। लगातार सात बार भारत के स्वच्छता सर्वेक्षण में प्रथम स्थान पर आने वाले इन्दौर के निवासियों ने स्वच्छता के क्षेत्र में असाधारण उदाहरण प्रस्तुत किया है। मैं इंदौर के प्रशासन और सभी निवासियों को विशेष बधाई देती हूं।

देवियो और सज्जनो,

यह विश्वविद्यालय इंदौर की महारानी लोकमाता देवी अहिल्याबाई होलकर के नाम पर है। इसी वर्ष पुण्यश्लोक माता अहिल्याबाई की 300वीं जयंती भी मनाई जा रही है। लोकमाता अहिल्याबाई 18वीं सदी के समय में भी शिक्षा के महत्व को समझती थीं। उनके पिता ने भी उन्हें उस दौर में शिक्षित किया जब लड़कियों को पढ़ाना आम बात नहीं था और समाज के अनेक लोग इसका विरोध भी करते थे। उनका जीवन महिला सशक्तिकरण का उत्तम उदाहरण है। उन्होंने अपने जीवन और शासन-काल में महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए अनेक नवीन और सफल प्रयास किए। उन्होंने जनजातीय समाज की आजीविका को सुनिश्चित करने के लिए भी निर्णय लिए और उनके विकास के लिए अनेक कार्य किए।

यह सबको ज्ञात है कि देवी अहिल्याबाई ने राज्य के कुशल प्रशासन, न्याय-परायणता एवं कल्याणकारी कार्यों में कई मानक स्थापित किए। उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि महिलाएं राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं आध्यात्मिक, सभी क्षेत्रों में सक्रिय होकर क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती हैं। उन्होंने अपने आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प से वे रास्ते बनाए जिन पर आज हम सुगमता से चल रहे हैं। उनकी ख्याति देश ही नहीं विदेश तक फैली थी। Scotland की कवयित्री Joanna Baillie की लिखी एक कविता मेरे संज्ञान में लाई गई। यह कविता बहुत लंबी है लेकिन इसकी दो पंक्तियां मैं यहां कहना चाहूंगी। इनसे महारानी अहिल्याबाई के हृदय की उदारता और उनका व्यक्तित्व सर्वत्र सम्मानित होने का पता चलता है।

“Kind was her heart, and bright her fame,  
And Ahilya was her honoured name”

मैं लोकमाता देवी अहिल्याबाई की स्मृति को सादर नमन करती हूं। यह महारानी अहिल्याबाई के आदर्शों के अनुरूप ही है कि आज इस विश्वविद्यालय में पदक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों में बेटियों की संख्या बेटों से अधिक है। सभी बेटियों को मेरी ओर से हार्दिक बधाई। मुझे विश्वास है कि आप जीवन की सभी बाधाओं को पार करते हुए अपना रास्ता खुद बनाकर आगे बढ़ेंगी और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करेंगी। यहां की पूर्व छात्रा और लोकसभा की पूर्व अध्यक्षा श्रीमती सुमित्रा महाजन ने जनसेवा और लोकतंत्र में योगदान देने का अत्यंत प्रभावशाली उदाहरण प्रस्तुत किया है। इस विश्वविद्यालय के सभी विद्यार्थियों के लिए वे प्रेरणा की स्रोत हैं।

मैं सभी शिक्षण संस्थानों और शिक्षकों को कहना चाहती हूं कि बेटियों को उच्च शिक्षा हासिल करने और आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित करें। अगर आपके सहयोग और मार्गदर्शन से हमारी बेटियां बड़े सपने देखेंगी और उन्हें साकार करेंगी, तभी सही मायनों में आप देश के विकास में भागीदार बन पाएंगे।

देवियो और सज्जनो,

पिछले छह दशकों में यह विश्वविद्यालय गुणवत्तापूर्ण और बहु-विषयक शिक्षा के केंद्र के रूप में विकसित हुआ है। मुझे बताया गया है कि इस विश्वविद्यालय और इससे जुड़े महाविद्यालयों में 3 लाख से भी अधिक विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। मुझे ज्ञात हुआ है कि इस विश्वविद्यालय के परिक्षेत्र में मध्य प्रदेश के कई ऐसे जिले आते हैं जहां जनजातीय आबादी अधिक है। मुझे बताया गया है कि हाल ही में यहां एक Tribal studies center भी शुरू किया गया है। यह ख़ुशी की बात है कि यह विश्वविद्यालय जनजातीय, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की उच्च शिक्षा सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह उल्लेखनीय है कि इस विश्वविद्यालय के पूर्व विद्यार्थियों ने अनेक क्षेत्रों में योगदान दिया है। सैन्य सेवाओं से लेकर राजनीति, खेल, मीडिया, पर्यावरण संरक्षण तथा अन्य क्षेत्रों में इस विश्वविद्यालय के पूर्व विद्यार्थियों ने महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। यह सराहनीय है कि देवी अहिल्या विश्वविद्यालय ने नई शिक्षा नीति को भी लागू किया है और अनुसंधान, नवाचार तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा दे रहा है। ऐसे सभी प्रयासों के लिए मैं विश्वविद्यालय की पूरी टीम को बधाई देती हूं।

प्रिय विद्यार्थियो,

आज के दिन का आप सबके लिए और इस विश्वविद्यालय के लिए विशेष महत्व है। आज का दिन आप सभी के लिए उत्सव मनाने का अवसर है। साथ ही अपने भविष्य के लिए गंभीर संकल्प लेने का अवसर भी है। आने वाले दिनों में आपको महत्वपूर्ण निर्णय भी लेने हैं और जीवन में सही पथ चुनकर आगे भी बढ़ना है।

आप में से बहुत से विद्यार्थियों ने यह निर्णय ले लिया होगा कि वे कौन सा profession अपनाने वाले हैं या कहां उच्च शिक्षा लेने वाले हैं। लेकिन आप में से अनेक विद्यार्थियों के मन में अभी भी यह दुविधा होगी कि नौकरी करें, या आगे पढाई करें, entrepreneur बनें या फिर किसी competitive exam की तैयारी करें। मैं चाहूंगी कि आप अपने भविष्य के बारे में सोच-समझ कर निर्णय लें। इस बारे में आप अपने माता-पिता, शिक्षकों और अन्य अनुभवी लोगों से भी सलाह ले सकते हैं। यह निर्णय आपके जीवन की दिशा को निर्धारित करेगा।

आप यहां से बाहर की दुनिया में कदम रखेंगे तो अपनी उपाधि, कौशल और ज्ञान के साथ-साथ नैतिक मूल्य, मित्रता और गुरु-शिष्य के संबंध रुपी अमूर्त संपदाएं भी यहां से लेकर जायेंगे। आप में से प्रत्येक की अलग-अलग क्षमताएं होंगी। भविष्य में आप किस क्षेत्र में या किस पद पर कार्य करेंगे, इसका निर्णय आपकी क्षमता और आपकी रूचि पर आधारित होना चाहिए। अगर इस आधार पर आप अपना रास्ता चुनेंगे तो आपको सफलता ज़रूर मिलेगी। मैं यह भी कहना चाहूंगी कि शिक्षा ग्रहण करने की प्रक्रिया कभी ख़त्म नहीं होनी चाहिए।

इसमें कोई संदेह नहीं कि आप सब सक्षम हैं – एक गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए। मैं आपसे आग्रह करती हूं कि आप अपने ज्ञान और नवीनतम technology का प्रयोग करके, समावेशी विकास को बढ़ावा दें और sustainable development के बारे में भी सचेत रहें। इस बात को सदैव याद रखें कि सबके विकास में ही आपका अपना विकास निहित है। केवल अपनी आजीविका और अपने परिवार का विकास आप का लक्ष्य नहीं हो सकता।

आपके विश्वविद्यालय का ध्येय वाक्य –‘धियो यो न: प्रचोदयात्’ पवित्र गायत्री मंत्र का हिस्सा है। गायत्री मंत्र एक प्रार्थना है। वैदिक देवता सविता, जिन्हें सूर्य का रूप भी माना जाता है, उनसे प्रार्थना की गई है कि हमेशा हमारी बुद्धि को शुद्ध करते रहें। शुद्ध विचार और शुद्ध आचरण ही अच्छे जीवन की आधारशिला हैं। यह ध्येय वाक्य अच्छा है और इसी के आधार पर आप जीवन में आगे बढ़ते रहिए।

अंत में, एक बार फिर मैं आप सभी उपाधि और पदक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को बधाई देती हूं। आप सब का भविष्य उज्ज्वल हो और आप देश तथा समाज को बेहतर बनाने में अपना योगदान दें।

धन्यवाद!  
जय हिन्द!  
जय भारत!

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