भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का ब्रह्माकुमारी संस्था द्वारा आयोजित Interfaith Meet में सम्बोधन

राष्ट्रपति भवन : 25.10.2023
Download : Speeches भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का ब्रह्माकुमारी संस्था द्वारा आयोजित Interfaith Meet में सम्बोधन(101.32 KB)

भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का ब्रह्माकुमारी संस्था द्वारा आयोजित Interfaith Meet में सम्बोधन

आप सब का राष्ट्रपति भवन में स्वागत है। आप सब का एक स्थान पर, एक भावना के साथ एकत्रित होना सर्व-धर्म समभाव के लिए महत्वपूर्ण है। इस आयोजन के लिए मैं ब्रह्मा कुमारी संस्थान की सराहना करती हूं।

धर्म हम सब के जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसने विश्व समाज, संस्कृति और राजनीति को सदियों से प्रभावित किया है। धर्म न केवल मनुष्य को उसके जीवन के उद्देश्य और अर्थ का बोध कराता है, बल्कि जीवन की जटिलताओं को समझने में भी सहायता करता है। धार्मिक मान्यताएं और प्रथाएं विपरीत परिस्थितियों में हमें राहत, आशा और शक्ति प्रदान करते हैं। प्रार्थना, ध्यान और धार्मिक अनुष्ठान मनुष्य को आंतरिक शांति और भावनात्मक स्थिरता का अनुभव भी कराते हैं।

देवियो और सज्जनो,

धार्मिक सिद्धांतों, विश्वासों और रीति-रिवाजों का हमारे जीवन में अपना स्थान है, लेकिन शांति, प्रेम, पवित्रता और सच्चाई जैसे मौलिक आध्यात्मिक मूल्य ही हमारे जीवन को सार्थक बनाते हैं। इन मूल्यों से रहित धार्मिक प्रथाएं हमारा कल्याण नहीं कर सकती हैं। समाज में शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए सहिष्णुता, एक-दूसरे का सम्मान और सौहार्द के महत्व को समझना आवश्यक है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अनुसार ‘मानवता का धर्म’ ही वास्तविक धर्म है, ‘सत्य’ ही ईश्वर है और ‘मानव सेवा’ ही ईश्वर की सेवा है।

एक सुनहरा नियम है - दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा व्यवहार आप दूसरों से चाहते हैं। जब हम इस मानदंड को ध्यान में रखते हुए कार्य करेंगे, तब हम दूसरों के प्रति सहानुभूति रखना और उनका सम्मान करना सीखेंगे। सभी धार्मिक ग्रन्थों में कहा गया है कि ईश्वर सबसे प्रेम करता है और उसके लिए सब एक समान हैं। ईश्वर का यह स्नेह हमें सिखाता है कि हम भी समान रूप से सब के साथ उदार हो सकते हैं। प्रत्येक मानव आत्मा स्नेह और सम्मान की पात्र है। अपने आप को पहचानना, अपने मूल आध्यात्मिक गुणों के अनुरूप जीवन जीना और ईश्वर के साथ आध्यात्मिक संबंध रखना ही सांप्रदायिक सद्भाव और भावनात्मक एकीकरण का सहज साधन है।

देवियो और सज्जनो,

प्रेम और करुणा के बिना मानवता जीवित नहीं रह सकती। आज मनुष्य के भीतर, मनुष्यों के बीच, तथा मनुष्यों और प्रकृति के बीच संघर्ष चल रहा है। जहाँ कहीं भी दुःख है, वहाँ प्रेम का अभाव है। इसका मूल कारण है कि हम भूल गए हैं कि हम कौन हैं। हम बाहरी सुख की तलाश में लगे हुए हैं। हम अपने संकल्पों और व्यवहार से जो शांति, प्रेम, और खुशी का अनुभव कर सकते हैं, उसे छोड़ कर मृगतृष्णाओं के पीछे दौड़ रहे हैं। हम दूसरों से अपनी तुलना करते हैं और जब हम देखते हैं कि वे हमसे ज्यादा खुश हैं, तो हम असंतुष्ट या ईर्ष्यालु हो जाते हैं। उनके पास जो कुछ है उसे पाने की इच्छा करने लगते हैं। इससे परायेपन का और संघर्ष का भाव पैदा होता है।

आध्यात्मिक मूल्यों के अनुरूप जीवन, समाज में एकता और सद्भाव का आधार है। जब विभिन्न धर्मों के लोग सद्भावना-पूर्ण एक साथ रहते हैं तब समाज और देश का सामाजिक ताना-बाना मजबूत होता है। यह मजबूती देश की एकता को और सुदृढ़ करती है और प्रगति के मार्ग पर ले जाती है। आप सब जानते हैं कि वर्ष 2047 तक हमने भारत को एक विकसित देश के रूप में स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सबका साथ जरूरी है। सभी लोगों के सहयोग से ही भारत समग्र रूप से सशक्त राष्ट्र बन पाएगा। मेरी कामना है कि आप सब इस तरह के और भी आयोजन करें तथा अपने अनुयायियों को विकसित भारत के सामूहिक लक्ष्य के लिए मिलकर कार्य करने के लिए प्रेरित करें।

धन्यवाद,  
जय हिन्द!  
जय भारत!

Subscribe to Newsletter

Subscription Type
Select the newsletter(s) to which you want to subscribe.
The subscriber's email address.