भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का 11वें ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के अवसर पर संबोधन (HINDI)

देहरादून : 21.06.2025

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भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का  11वें ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के अवसर पर संबोधन (HINDI)

आज के इस महत्वपूर्ण अवसर पर आप सब के बीच उपस्थित होकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। उत्तराखंड का क्षेत्र योग और अध्यात्म जैसी भारतीय परम्पराओं का प्रमुख केंद्र रहा है। यह बहुत ही खुशी की बात है कि आप सब यहाँ पूरे उत्साह के साथ योगाभ्यास के लिए उपस्थित हुए हैं। आप सभी को और पूरे विश्व में ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के उपलक्ष में योगाभ्यास कर रहे सभी प्रतिभागियों को मैं हार्दिक बधाई देती हूं। मेरी कामना है कि योग के प्रयोग से समस्त विश्व के निवासी स्वस्थ और प्रसन्न रहें।

हम सभी जानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रतिवर्ष ‘21 जून’ को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के रूप में मनाने का प्रस्ताव असाधारण समर्थन के साथ पारित किया था। अपने संकल्प में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने यह स्पष्ट किया था कि योगाभ्यास पूरे विश्व की जनसंख्या के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होगा। सन 2015 से, ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के दिन, अधिकांश देशों में योगाभ्यास के आयोजन किए जाते हैं। योग पूरी मानवता की साझा धरोहर बन चुका है। यह भारत की ‘सॉफ्ट पावर’ का एक अत्यंत महत्वपूर्ण उदाहरण है।

योग की अंतर्राष्ट्रीय लोकप्रियता के अनेक प्रभावशाली उदाहरण हैं। इस वर्ष अप्रैल में कुवैत की शेखा शैखा अली जाबर अल-सबाह को पद्म श्री से सम्मानित किया गया। वह एक योग अभ्यासी हैं जो अपने प्रयासों से संस्कृतियों और लोगों को जोड़ने का काम कर रही हैं।

‘योग’ का अर्थ है ‘जोड़ना’। योग का अभ्यास व्यक्ति के शरीर, मन और आत्मा को जोड़ता है और स्वस्थ बनाता है। इसी प्रकार, यह एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से, एक समुदाय को दूसरे समुदाय से और एक देश को दूसरे देश से जोड़ सकता है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए 11वें ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ का थीम "एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य के लिए योग" रखा गया है।

भारत की पहल पर, योग के प्रति विश्व समुदाय का सम्मान बढ़ा है और दुनिया भर के लोग इससे लाभान्वित हो रहे हैं। योग-पद्धति को सही और सरल तरीकों से जन-सुलभ बनाना योग से जुड़े संस्थानों का दायित्व है। योग की शिक्षा किसी संप्रदाय या पंथ से जुड़ी नहीं है। कुछ लोग भ्रांतिवश योग को किसी विशेष संप्रदाय से जोड़ते हैं। परंतु ऐसा बिलकुल नहीं है। योग स्वस्थ जीवन जीने की कला है, जिसे अपनाने से मनुष्य के शरीर, मन और समग्र व्यक्तित्व को लाभ मिलता है। जब व्यक्ति स्वस्थ रहता है तो परिवार स्वस्थ रहता है। जब परिवार और समाज स्वस्थ रहते हैं तो देश स्वस्थ रहता है। ‘सर्वे सन्तु निरामया:’ की सोच का यही लक्ष्य है कि सभी लोग, स्वस्थ और रोग-मुक्त रहें। इस सोच को साकार करने में योग का रास्ता बहुत उपयोगी है।

यह सभी मानते हैं कि prevention is better than cure की नीति अधिक प्रभावी है। Prevention के लिए योग बहुत उपयोगी माना जाता है। योगाभ्यास करने से व्यक्ति की इम्यूनिटी बढ़ती है। योग के अनेक प्रशिक्षक, प्राणायाम एवं योगासनों की उपयोगिता बताते हुए यह स्पष्ट करते हैं कि किस प्रक्रिया को करने से किन-किन रोगों का प्रतिरोध हो सकता है। आजकल, जीवन-चर्या से जुड़ी बीमारियाँ बढ़ रही हैं। ऐसी बीमारियों की रोकथाम में भी योग चिकित्सा को उपयोगी माना जाता है।

आज यहाँ उपस्थित सभी लोग योग को जीवन का अभिन्न अंग बनाएँगे और अन्य लोगों को भी योगाभ्यास के लिए प्रेरित करेंगे, इसी विश्वास के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं। सभी स्वस्थ रहें, प्रसन्न रहें। मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

धन्यवाद।
जय हिंद।

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