प्रथम एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन में भारत की माननीय राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का संबोधन

नई दिल्ली : 05.11.2024

डाउनलोड : भाषण प्रथम एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन में भारत की माननीय राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का संबोधन(हिन्दी, 990.36 किलोबाइट)

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मेरी कामना है कि यहाँ बुद्ध को अर्पित किए गए पुष्प हमारी सद्भावना की सुवास को चारों दिशाओं में फैलाएँ! जो दीप हमने यहाँ जलाए हैं, वे चारों दिशाओं को ज्ञान के प्रकाश से जगमग करें! 

मैं आज यहाँ आधुनिक संघ के विभिन्न वर्गों के बीच उपस्थित होकर अत्यधिक प्रसन्नता का अनुभव कर रही हूँ। आप में से कई लोग सुदूर क्षेत्रों से यहाँ आए हैं; आप अलग-अलग भाषा भाषी हैं। आपने विविध रंगों व वर्णों के वस्त्र धारण किए हुए हैं। किन्तु आप सभी बुद्ध द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलते हुए एकजुट होकर धम्म के प्रति समर्पित हैं। आप सभी का भारत में और इस शिखर सम्मेलन में स्वागत करना मेरे लिए सम्मान की बात है। 

इस दो दिवसीय शिखर सम्मेलन के आयोजन के लिए अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ अर्थात आईबीसी प्रशंसा का पात्र है। इस शिखर सम्मेलन का विषय, ‘एशिया को सुदृढ़ बनाने में बुद्ध धम्म की भूमिका’, जितना समीचीन है उतना ही सामयिक भी। इन दो दिनों में, आप सभी – भिक्षुगण, विद्वानजन और साधक - बुद्ध धम्म और समकालीन समाज में इसकी भूमिका पर विचार-विमर्श तथा चर्चा-परिचर्चा करेंगे।

भारत धर्म की पुण्य भूमि है। भारत में, हर युग में ऐसे महान शिक्षक और आध्यात्मिक गुरु, संत व साधक रहे हैं, जिन्होंने मनुष्य को भीतर से शांतचित्त रहना और बाहर सद्भाव बनाए रखना सिखाया। सत्य के ऐसे साधकों में बुद्ध का एक विशिष्ट स्थान है। बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ गौतम द्वारा ज्ञान प्राप्त करने की घटना मानव इतिहास की एक अनूठी घटना है। बुद्ध ने मानव मन की वृति के गहन रहस्यों को न केवल जाना और बल्कि अपने इस ज्ञान को मानव कल्याण हेतु “बहुजन सुखाय बहुजन हिताय च” की भावना के साथ सभी लोगों के साथ साझा भी किया। 

ज्ञान प्राप्त होने के बाद पैंतालीस वर्ष तक वे जगह-जगह जाकर धर्म का प्रचार करते रहे। उन्होंने धम्म के अपने संदेश को राजाओं-महाराजाओं और श्रमिकों-कारीगरों, पुरुषों और महिलाओं, भिक्षुओं और साधारण जन तक पहुंचाया। आध्यात्मिक रूप से समृद्ध व्यक्तियों के समक्ष उन्होंने मानवीय अनुभव को आकार देने वाले कारकों और स्थितियों की व्याख्या की; जबकि आम लोगों को उन्होंने नैतिक जीवन जीने का मार्ग दिखाया।

बौद्ध धर्म क्या है? 

बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद, हिंसा का पूर्णरूप से परित्याग कर देने वाले उस महान सम्राट अशोक ने एक स्तंभ पर इसकी यह परिभाषा उत्कीर्णित करवाई थी: “धम्म शुभ है। और धम्म क्या है? धम्म वास्तव में कुछेक दोषों और अनेक अच्छे कर्मों, दया, दान, सत्य और पवित्रता को धारण करना है।” 

स्वाभाविक रूप से, सदियों से अलग-अलग साधकों ने बुद्ध के उपदेशों की अलग-अलग ढंग से व्याख्या की और इस प्रकार, विभिन्न संप्रदाय अस्तित्व में आए। यदि इनका मोटे तौर पर वर्गीकरण किया जाए तो आज हम इन्हें थेरवाद, महायान और वज्रयान धाराओं में वर्गीकृत कर सकते हैं। इन धाराओं के अंतर्गत भी विभिन्न विचार व संप्रदाय फलफूल रहे हैं।

इसके अलावा, इतिहास के विभिन्न कालखंडों में बौद्ध धर्म का विभिन्न दिशाओं में प्रचार- प्रसार हुआ। इसकी एक लहर जहाँ इसे श्रीलंका, म्यांमार, कंबोडिया, इंडोनेशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में तमाम अन्य क्षेत्रों तक ले गई। वहीं इसकी एक और लहर ने बुद्ध के इस ज्ञान को तिब्बत तथा नेपाल तक पहुंचाया, तत्पश्चात यह चीन, मंगोलिया, जापान, कोरिया, वियतनाम तथा अन्य क्षेत्रों में पहुंचा। 

यद्यपि, विभिन्न धाराओं द्वारा तथागत के संदेशों की जो व्याख्याएँ प्रस्तुत की गईं हैं, वे व्यापक रूप से भिन्न हैं; तथापि, ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन व्याख्याओं में कोई बुनियादी विरोधाभास नहीं है। वाराणसी के निकट सारनाथ में भगवान बुद्ध द्वारा दिया गया प्रथम उपदेश आज भी आधारभूत सिद्धान्त के रूप में स्थापित है, और इसकी तमाम परिष्कृत व्याख्याएँ इसके साथ परत दर परत जुड़ती जाती हैं। 

धम्म का विशाल भौगोलिक क्षेत्र में प्रचार-प्रसार होने के बाद उसने एक समुदाय का रूप ले लिया और इससे एक वृहत् संघ का निर्माण हुआ। एक अर्थ में, बुद्ध के ज्ञान की भूमि भारत देश को इस संघ का केंद्र कहा जा सकता है। किन्तु, ईश्वर के बारे में कही जाने वाली यह बात कि इसका केंद्र हर जगह है और परिधि कहीं नहीं; यही बात इस विशाल बौद्ध संघ के बारे में भी सत्य है। इस मामले में यह बात और भी सच है क्योंकि, 'दक्षिणी बौद्ध धर्म' और 'उत्तरी बौद्ध धर्म' के अलावा, पिछली दो शताब्दियों में ‘बौद्ध धर्म’ का प्रचार-प्रसार अब शेष बची एकमात्र दिशा में भी हो रहा है और इसे 'पश्चिमी बौद्ध धर्म' के रूप में जाना जा रहा है।

प्रिय साथियों,

आज जब विश्व, विभिन्न मोर्चों पर अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है, न केवल युद्ध बल्कि जलवायु संकट भी दुनिया के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं, ऐसे कालखंड में आपके इस वृहत् समुदाय के पास मानव जाति को देने के लिए धम्म की अतुल संपदा मौजूद है। बौद्ध धर्म की विभिन्न विचारधाराएँ विश्व को संकीर्ण संप्रदायवाद से निपटने का मार्ग दिखाती हैं। इन सभी विचारधाराओं का मुख्य संदेश शांति और अहिंसा पर केंद्रित है। यदि कोई एक शब्द बुद्ध धम्म को परिभाषित कर सकता है, तो वह है 'करुणा', जिसकी दुनिया को आज सबसे अधिक आवश्यकता है। 

जैसा कि इस शिखर सम्मेलन की थीम से स्पष्ट है, आज हम ‘एशिया को सुदृढ़ बनाने में बौद्ध धर्म की भूमिका’ विषय पर चर्चा करने के लिए एकत्र हुए हैं। वास्तव में, हमें इस चर्चा का विस्तार करना चाहिए और इस बात पर मंथन करना चाहिए कि बौद्ध धर्म न केवल एशिया बल्कि पूरी दुनिया में शांति, ‘वास्तविक शांति’ लाने में किस प्रकार योगदान दे सकता है। यह शांति न केवल शारीरिक हिंसा से मुक्त होनी चाहिए, बल्कि सभी प्रकार के राग और द्वेष से भी मुक्त होनी चाहिए। बुद्ध ने इन दोनों दोषों को ही हमारे सभी दुखों का कारण बताया है। 

भारत विश्व शांति के इन प्रयासों में आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने का हर संभव प्रयास करता रहा है और आगे भी करता रहेगा। आज यहाँ खड़े होकर जब मैं बुद्ध की शिक्षाओं के संरक्षण के विषय में सोचती हूँ तो मुझे लगता है कि यह कार्य एक बड़ा सामूहिक कार्य रहा होगा। मुझे लगता है कि यदि बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद राजगीर में आयोजित भिक्षुओं की उस सभा ने उनके उपदेशों को भविष्य की पीढ़ी के हितार्थ संरक्षित करने का महती कार्य न किया होता तो आज हम उनके अनमोल वचनों से वंचित रह जाते।

आखिर में, बुद्ध के अनुयायियों ने उनके उपदेशों को त्रिपिटक नामक ग्रंथ में संकलित किया। पहले पहल इसे श्रुतियों के रूप में संकलित किया गया। इस प्रकार, यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचा। यह संभव है कि इस प्रक्रिया में काफी कुछ लुप्त भी हो गया होगा। कालांतर में, श्रीलंका के भिक्षुओं ने इस ग्रंथ को ताड़ के पत्तों पर लिपिबद्ध किया। पूर्व में, नालंदा के विशाल पुस्तकालय का पूर्ण रूप से विध्वंस कर दिए जाने के पश्चात, इस ग्रंथ के कई अध्याय तिब्बती और चीनी अनुवादों से पुनर्प्राप्त किए गए। इस प्रकार, वर्तमान बौद्ध साहित्य हमारे लिए सचमुच एक साझा विरासत है। 

आपको यह जानकर खुशी होगी कि हमने इस सदी में भी संरक्षण संबंधी अपने प्रयास जारी रखे हैं। पिछले महीने ही भारत सरकार ने अन्य भाषाओं के साथ-साथ पाली और प्राकृत को भी 'शास्त्रीय भाषा' का दर्जा दिया। जबकि संस्कृत पहले से ही इस श्रेणी में शामिल है। 'शास्त्रीय भाषा' का दर्जा मिलने से पाली और प्राकृत के लिए अब वित्तीय सहायता प्राप्त हो सकेगी और निश्चित रूप से इन भाषाओं में सृजित विपुल साहित्यिक संपदा के संरक्षण और उनके पुनरुद्धार में इसका महत्वपूर्ण योगदान होगा। 

मुझे विश्वास है कि यह शिखर सम्मेलन, बुद्ध की शिक्षाओं पर आधारित हमारी साझा विरासत की नींव पर टिके हमारे परस्पर सहयोगपूर्ण संबंधों को और अधिक मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। मैं आश्वस्त हूँ कि आप अगले दो दिनों में सार्थक संवाद करेंगे। मैं आप के बीच उपस्थित विदेशी प्रतिनिधियों को यहाँ राष्ट्रीय संग्रहालय और बौद्ध सर्किट पर स्थित स्थलों का भ्रमण करने तथा भारत की समृद्ध बौद्ध विरासत का साक्षात्कार करने का आमंत्रण देते हुए अपनी बात समाप्त करती हूँ। 

मैं कामना करती हूँ कि धम्म सभी के जीवन में आनंद और प्रसन्नता का संचार करे!

धन्यवाद, 
जय हिंद!
जय भारत!

 

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