भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का ‘उन्मेष’ और ‘उत्कर्ष’ उत्सव के शुभारंभ समारोह में सम्बोधन

भोपाल : 03.08.2023

डाउनलोड : भाषण भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का ‘उन्मेष’ और ‘उत्कर्ष’ उत्सव के शुभारंभ समारोह में सम्बोधन(हिन्दी, 169.06 किलोबाइट)

भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का ‘उन्मेष’ और ‘उत्कर्ष’ उत्सव के शुभारंभ समारोह में सम्बोधन

साहित्य एवं कला की विभिन्न धाराओं के इस महासंगम में आप सबके साथ अवगाहन करते हुए मुझे आत्मिक प्रसन्नता हो रही है। मुझे विश्वास है कि आप सब ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ से जुड़े साहित्य तथा कला के इन उत्सवों में अपनी प्रतिभागिता से उत्साहित हैं। मैं आप सबको बधाई देती हूं। राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करने के बाद अब तक मेरी सबसे अधिक यात्राएं मध्य प्रदेश में हुई हैं। संयोग से आज मध्य प्रदेश की यह मेरी पाँचवी यात्रा है। आप सबके आतिथ्य के लिए मैं मध्य प्रदेश के आठ करोड़ निवासियों को धन्यवाद देती हूं।

आज से शुरू होने वाले दोनों उत्सवों के आयोजन के लिए मैं केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय, साहित्य अकादमी तथा संगीत नाटक अकादमी के organisers की सराहना करती हूं। साथ ही, सक्रिय सहयोग प्रदान करने के लिए मैं मध्य प्रदेश सरकार की प्रशंसा करती हूं। 

केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा हमारी संस्कृति के विभिन्न आयामों में नई ऊर्जा का संचार करने के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। परसों, यानी पांच अगस्त को दिल्ली में आयोजित किए जाने वाले एक और उत्सव, ‘Festival of Libraries’ के उद्घाटन में भी मुझे भाग लेना है। इन सभी आयामों पर निरंतर ध्यान बनाए रखने से एक मजबूत cultural eco-system का निर्माण संभव है।

इस वर्ष G20 समूह की अध्यक्षता का दायित्व भारत को दिया गया है। इस दायित्व का भारत द्वारा One Earth, One Family, One Future के आदर्श के अनुरूप निर्वहन किया जा रहा है।

हमारी परंपरा में, ‘यत्र विश्वम् भवति-एक नीडम्’ की भावना प्राचीन काल से आधुनिक युग तक निरंतर व्यक्त होती रही है। हिन्दी के वरेण्य कवि जयशंकर ‘प्रसाद’ जी ने इसी भावना को व्यक्त करते हुए कहा था:

अरुण, यह मधुमय देश हमारा 
अरुण, यह मधुमय देश हमारा 
जहां पहुंच, अनजान क्षितिज को 
मिलता एक सहारा 
अरुण, यह मधुमय देश हमारा।

राष्ट्र-प्रेम और विश्व-बंधुत्व यानी patriotism और universal brotherhood, इन दोनों आदर्शों का संगम हमारे देश की चिंतन धाराओं में सदैव दिखाई देता रहा है।  

देवियो और सज्जनो,

कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर के नाम से सुशोभित इस भवन में, उनके द्वारा लिखित एक कविता का मैं उल्लेख करना चाहूंगी। उस कविता में निबद्ध एक आख्यान के माध्यम से गुरुदेव ने यह प्रतिपादित किया है कि साहित्य ही सत्य का संवाहक होता है। आदिकवि वाल्मीकि से नारद मुनि ने हँसते हुए कहा था:

‘नारद कोहिला हासि, सेइ शोत्तो जा रोचिबे तुमि’।

अर्थात

तुम जो अपने काव्य में कहोगे, वही सत्य होगा।

साहित्यकार का सत्य इतिहासकारों के तथ्य से अधिक प्रामाणिक होता है। मानवता का वास्तविक इतिहास विश्व के महान साहित्य में ही मिलता है। साहित्य ने मानवता को आईना भी दिखाया है, बचाया भी है और आगे भी बढ़ाया है। साहित्य और कला ने संवेदनशीलता और करुणा को बनाए रखा है, यानी मनुष्य की मनुष्यता को बचाए रखा है। मानवीयता के संरक्षण के इस परम पुनीत अभियान में प्रतिभागी होने के नाते आप सभी साहित्यकार और कलाकार सम्मान के अधिकारी हैं।

Ladies and gentlemen,

I extend a special welcome to the international participants of this festival, including those from our neighbouring countries. In a world facing many challenges, we must find effective ways to build greater understanding among peoples of different cultures and beliefs. Storytellers and poets have a central role in that effort because literature has the unique ability to connect our experiences and to transcend our differences. Let us use the ability of literature to reveal our common destiny and strengthen our global community.

Everyone is familiar with the timeless supremacy of literature. The greatest empire having world-wide domination in the 19th and early 20th centuries has become history. But the power of the writings of William Shakespeare is ever-lasting.

‘उन्मेष’ का अर्थ आँखों का खुलना भी होता है और फूलों का खिलना भी। ‘उन्मेष’ का अर्थ प्रज्ञा का प्रकाश भी है और जागरण भी। 19वीं सदी में हमारे देश में नव-जागरण की अविरल धाराएं प्रवाहित हुईं जो 20वीं सदी के पूर्वार्ध तक प्रवहमान रहीं। हमारे स्वाधीनता संग्राम के आदर्शों को साहित्य ने शक्ति प्रदान की। पूर्व में बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय से लेकर पश्चिम में झवेरचंद मेघाणी तक, तथा दक्षिण में सुब्रह्मण्य भारती से लेकर उत्तर में ज्ञानी हीरा सिंह ‘दर्द’ तक, देश के कोने-कोने में, अनेक रचनाकारों ने स्वाधीनता और पुनर्जागरण के आदर्शों को अभिव्यक्ति प्रदान की। भारतीयता के गौरव को स्वर देने वाले उन रचनाकारों की इतनी विशाल परंपरा विकसित हुई कि एक सम्बोधन में सबका उल्लेख करना असंभव है। देशभक्ति की भावना की गहन अभिव्यक्ति भारत-माता के अमर सपूत, उत्कलमणि गोपबंधु दास की एक अमर पंक्ति में निरूपित है:

‘मो नेत्रे भारतशिला शालग्राम 
प्रति स्थान मोर प्रिय पुरी धाम’

अर्थात मेरी दृष्टि में भारत-भूमि का एक-एक पत्थर शालिग्राम की तरह पूजनीय है। भारत का प्रत्येक स्थान मुझे जगन्नाथ पुरी की तरह प्रिय है। देशभक्ति से ओत-प्रोत इस कविता में मातृभूमि भारत को देवत्व प्रदान करने की भावना अद्भुत रूप से अभिव्यक्त की गई है। 

भारतीय पुनर्जागरण तथा स्वाधीनता संग्राम के कालखंड में लिखे गए उपन्यास, कहानियाँ, कविताएं और नाटक आज भी लोकप्रिय हैं, और जनमानस पर उनका व्यापक प्रभाव विद्यमान है।

देवियो और सज्जनो,

‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ के ऐतिहासिक पड़ाव पर हमें यह विचार करना है कि क्या वर्तमान में हम ऐसा साहित्यिक उन्मेष देख रहे हैं जिसमें बड़ी संख्या में पाठकों की भागीदारी हो? मेरी जानकारी में, ओडिया भाषा में लिखित एक समकालीन उपन्यास ‘याज्ञसेनी’ के सौ से अधिक reprint हो चुके हैं। यह उस उपन्यास को पढ़ने के लिए पाठकों में विद्यमान उत्साह का प्रमाण है।

संप्रेषणीय होना साहित्य की प्रमुख कसौटी है। साहित्य लोगों से जुड़ता भी है और उन्हें आपस में जोड़ता भी है। ‘मैं’ और ‘मेरा’ से ऊपर उठकर जो साहित्य रचा जाता है, जो कला प्रस्तुत की जाती है, उन्हीं रचनाओं और कलाकृतियों में सार्थकता होती है।    
  
मेरे घर-परिवार-गाँव और स्थानीय परिवेश की भाषाएँ संथाली तथा ओडिया हैं। आज 140 करोड़ देशवासियों का मेरा परिवार है और सभी भाषाएँ और बोलियाँ मेरी अपनी हैं। 

संथाली और ओडिया भाषाओं से मेरा अधिक परिचय रहा है। संथाली भाषा का अधिकांश साहित्य वाचिक परंपरा में पाया जाता है। संथाली भाषा के महाकवि डॉक्टर रामदास टुडू रसिका का साहित्य पहले बाँगला लिपि में प्रकाशित हुआ। संथाली के महाकवि साधु रामचंद मुर्मु ने अद्भुत काव्य- रचना की। रघुनाथ मुर्मु जी ने ओल चिकी लिपि के माध्यम से संथाली भाषा को सुदृढ़ लिखित आधार प्रदान किया। उन्होंने ‘बिदु चांदान’ तथा ‘खेरवाड बीर’ नामक नाटक लिखे जिनका जनमानस में विशेष स्थान है। मैं चाहूंगी कि इन नाटकों का तथा संथाली भाषा की महत्वपूर्ण पुस्तकों का अन्य भाषाओं में अनुवाद हो। वस्तुतः सभी भारतीय भाषाओं की प्रमुख पुस्तकों का अन्य भाषाओं में अनुवाद होने से भारतीय साहित्य और अधिक समृद्ध हो सकेगा।

संथाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान दिलाने के मेरे विनम्र प्रयासों को कवि-हृदय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने आशीर्वाद दिया था। भारत-रत्न से सम्मानित, मध्य प्रदेश के सपूत अटल जी की स्मृति को मैं सादर नमन करती हूं।

देवियो और सज्जनो,

संगीत नाटक अकादमी एवं मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा ‘उत्कर्ष’ नामक उत्सव के माध्यम से लोक एवं जनजातीय नृत्यों का आयोजन किया जा रहा है। इसके लिए मैं आयोजकों की सराहना करती हूं। ‘उत्कर्ष’ का अर्थ है उन्नति। जब भारत का जनजातीय समाज समुन्नत हो जाएगा तब भारत एक विकसित राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित हो जाएगा। भारत की सबसे बड़ी जनजातीय आबादी मध्य प्रदेश में रहती है। इसलिए इस उत्सव का यहां आयोजन किया जाना तर्क-संगत भी है और भाव-संगत भी। इसी वर्ष मुझे अनेक जनजातीय कलाकारों को पद्मश्री से सम्मानित करने का अवसर मिला। हाल के वर्षों में कई राज्यों के लोक तथा जनजातीय कलाकारों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। मध्य प्रदेश के पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ की बहन तीजन बाई को वर्ष 2019 में पद्म विभूषण के उच्च सम्मान से अलंकृत किया गया था। तीजन बाई जी का सम्मान लोक एवं जनजातीय कलाओं का सम्मान तो है ही, देश की सभी बहनों का, विशेषकर जनजातीय बहनों का समादर भी है।

हमारे जनजातीय भाई-बहन भी समाज के अन्य सदस्यों की तरह जीवन की सामान्य आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करना चाहते हैं। हमारा सामूहिक प्रयास होना चाहिए कि अपनी संस्कृति, लोकाचार, रीति-रिवाज और प्राकृतिक परिवेश को सुरक्षित रखते हुए, हमारे जनजातीय समुदायों के भाई-बहन और युवा आधुनिक विकास में भागीदार बनें।

नव-नव-उन्मेष से युक्त प्रतिभाएँ भारत को समग्र विकास के उत्कर्ष तक ले जाएँ इसी मंगल कामना के साथ, मैं आप सबके आनंदमय भविष्य हेतु अनंत शुभेच्छा व्यक्त करती हूं।

धन्यवाद! 
जय हिन्द! 
जय भारत!

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