भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का श्री अल्लूरि सीताराम राजू के 125वें जन्मोत्सव वर्ष के समापन समारोह में सम्बोधन

हैदराबाद : 04.07.2023

डाउनलोड : भाषण भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का श्री अल्लूरि सीताराम राजू के 125वें जन्मोत्सव वर्ष के समापन समारोह में सम्बोधन(हिन्दी, 180.09 किलोबाइट)

भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का श्री अल्लूरि सीताराम राजू के 125वें जन्मोत्सव वर्ष के समापन समारोह में सम्बोधन

भारत- माता के वीर सपूत "मन्यम वीरुडु" अल्लूरि सीताराम राजू की जयंती के दिन, सभी देशवासियों के साथ उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करना मैं अपना परम सौभाग्य मानती हूं। पिछले वर्ष चार जुलाई को हमारे स्वाधीनता संग्राम के उस महानायक की 125वीं जयंती मनाई गई। साथ ही, यह शुभ संकल्प भी लिया गया कि अल्लूरि सीताराम राजू की 125वीं जयंती तथा रम्पा क्रान्ति की 100वीं वर्षगांठ, साल भर मनाई जाएगी। आज के इस समापन समारोह में उन जनजातीय क्रांति-वीरों तथा उन्हें विलक्षण नेतृत्व प्रदान करने वाले अल्लूरि सीताराम राजू को मैं सादर नमन करती हूं।

सभी देशवासी बड़े उत्साह के साथ 'आजादी का अमृत महोत्सव' मना रहे हैं। आज के इस समारोह को मैं आजादी के अमृत महोत्सव से जुड़ा एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व मानती हूं। आज का यह पर्व सभी देशवासियों को, विशेषकर युवा पीढ़ी को अल्लूरि सीताराम राजू की अनन्य देश-भक्ति और साहसिकता से परिचित कराने का अवसर है। अन्याय और शोषण के विरुद्ध उनका संघर्ष तथा केवल 27 वर्ष की आयु में उनका बलिदान, भारतीय स्वाधीनता संग्राम का गौरवपूर्ण अध्याय है।

जिस प्रकार सरदार भगत सिंह पूरे देश के लिए स्वाभिमान और बलिदान का प्रतीक हैं उसी प्रकार, राष्ट्र गौरव के लिए मर मिटने का आदर्श स्थापित करने वाले अल्लूरि सीताराम राजू, देशवासियों की स्मृति में सदा अमर रहेंगे। वे लगभग साढ़े दस करोड़ जनजातीय समुदाय के नायक तो हैं ही, साथ ही, वे सभी 140 करोड़ देशवासियों के लिए भी पूजनीय हैं।

देवियो और सज्जनो,

अनेक उल्लेखों से ऐसा पता चलता है कि अल्लूरि सीताराम राजू भारत के स्वाधीनता संग्राम की विभिन्न धाराओं से परिचित थे। उन्होंने स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप जनजातीय अस्मिता, अधिकार तथा जीवन-शैली के हित में संग्राम की ऐसी धारा प्रवाहित की जिसका स्मरण आने वाली पीढ़ियों को सदैव प्रेरित करता रहेगा।

पूर्वी घाट की पहाड़ियां और जंगल, 1920 के दशक में हुई रम्पा क्रान्ति तथा अल्लूरि सीताराम राजू की वीरता के साक्षी हैं। ब्रिटिश हुकूमत की अन्यायपूर्ण शासन व्यवस्था ने इस क्षेत्र के जनजातीय समुदाय के जीवन को दुष्कर बना दिया था। जनजातीय समुदाय की उस पीड़ा को अल्लूरि सीताराम राजू ने अपना दुख समझा तथा उनके लिए स्वाभिमान और स्वाधीनता की लड़ाई लड़ी।

आज से लगभग 50 वर्ष पहले निर्मित अल्लूरि सीताराम राजू की संघर्षपूर्ण जीवन-गाथा पर आधारित एक फिल्म का गीत लोगों के हृदय में लोकगीत का स्थान ले चुका है। तेलुगु भाषा के अत्यंत सम्मानित कवि एवं गीतकार 'श्री-श्री' द्वारा लिखा गया वह गीत इस क्षेत्र का बच्चा-बच्चा जानता है:

तेलुगु वीरा लेवरा,    
दीक्ष बूनि सागरा।    
अर्थात    
हे तेलुगु वीर! जागो,    
शपथ लो, और आगे बढ़ते रहो।

'मनदे राज्यम्' अर्थात 'हमारा राज्य' के संकल्प के साथ अल्लूरि सीताराम राजू और उनके साथी आगे बढ़ते रहे। अपने संगठन और युद्ध कौशल के बल पर ब्रिटिश हुक्मरानों को बार-बार पराजित करके उन लोगों ने सबको अचंभित कर दिया था। यहां तक कि लोगों पर अत्याचार करने वाले स्थानीय ब्रिटिश प्रशासन के अधिकारी और कर्मचारी उनसे भयभीत रहने लगे थे।

अल्लूरि सीताराम राजू का जीवन-चरित, जाति और वर्ग पर आधारित भेद-भाव से मुक्त रहकर पूरे समाज और देश के लिए एकजुट होने का उदाहरण है। जनजातीय समाज ने उनको पूरी तरह अपना लिया था और उन्होंने जनजातीय समाज के सुख-दुख को अपना सुख-दुख बना लिया था। अल्लूरि सीताराम राजू को जनजातीय योद्धा के रूप में याद किया जाता है। और यही उनकी सही पहचान भी है। वे जनजातीय समाज के अधिकारों के लिए लड़ते रहे और वीरगति को प्राप्त हुए।

यह तथ्य उल्लेखनीय भी है और गौरवपूर्ण भी कि ब्रिटिश हुकूमत द्वारा दी गई यातना तथा प्रलोभन के बावजूद जनजातीय समाज के लोगों ने अल्लूरि सीताराम राजू के गोपनीय स्थानों के बारे में कोई भी सूचना नहीं दी। उन्होंने अत्याचार सहा लेकिन वे लोग न झुके और न टूटे। ऐसे एकजुट समाज और विलक्षण महानायक की महान विरासत को याद रखना और मजबूत बनाना सभी देशवासियों का कर्तव्य है।

इस संदर्भ में अल्लूरि सीताराम राजू के जन्म स्थान तथा चिंतापल्ली थाने का जीर्णोद्धार, मोगल्लू में अल्लूरी ध्यान मंदिर का निर्माण जैसे प्रयास सराहनीय हैं। मुझे यह भी बताया गया है कि ‘अल्लूरि सीताराम राजू मेमोरियल जन-जातीय स्वतन्त्रता सेनानी संग्रहालय’ का निर्माण कार्य भी प्रगति पर है। मैं आशा करती हूं कि ये सभी कार्य निकट भविष्य में ही सम्पन्न कर लिए जाएंगे।

देवियो और सज्जनो,

इस पावन अवसर पर मैं बुद्धिजीवियों, विशेषकर समाज शास्त्रियों और इतिहासकारों से यह अनुरोध करती हूं कि अल्लूरि सीताराम राजू जैसे स्वाधीनता सेनानियों के योगदान से देशवासियों को, विशेषकर युवा पीढ़ी को अवगत कराएं। समाज के वंचित वर्गों के हित में निस्वार्थ भाव से निर्भीक होकर संघर्ष करना ही अल्लूरि सीताराम राजू के जीवन का संदेश है। उनके आदर्शों और संदेश को अपने आचरण में ढालने का संकल्प लेकर ही हम सही अर्थों में अल्लूरि सीताराम राजू को श्रद्धांजलि व्यक्त कर पाएंगे।

आइए, हम सभी यह संकल्प लें कि स्वाधीनता संग्राम के अरण्य सेनानी अल्लूरि सीताराम राजू के मूल्यों और आदर्शों को हम समाज और देश के हित में अपनाएंगे। इसी सामूहिक संकल्प के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं।

जय हिन्द!    
जय भारत!    
जय अल्लूरि सीताराम राजू!    
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