भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग द्वारा आयोजित 'जनजातीय अनुसंधान- अस्मिता, अस्तित्व एवं विकास' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में भाग ले रहे प्रतिनिधियों से मुलाक़ात और 'स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों क

राष्ट्रपति भवन : 28.11.2022

डाउनलोड : भाषण भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग द्वारा आयोजित 'जनजातीय अनुसंधान- अस्मिता, अस्तित्व एवं विकास' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में भाग ले रहे प्रतिनिधियों से मुलाक़ात और 'स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों क(हिन्दी, 466.09 किलोबाइट)

भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग द्वारा आयोजित 'जनजातीय अनुसंधान- अस्मिता, अस्तित्व एवं विकास' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में भाग ले रहे प्रतिनिधियों से मुलाक़ात और 'स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों का योगदान' पुस्तक की प्रथम प्रति प्राप्त करने के अवसर पर सम्बोधन

मुझे यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई है कि आज़ादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में स्वतन्त्रता संग्राम में जनजाति नायकों के योगदान पर चित्र प्रदर्शनियां आयोजित की गई। साथ ही जनजाति विषयों पर अनुसंधान के लिए कार्यशाला भी आयोजित की गई। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग एवं राष्ट्रीय कार्यशाला में भाग लेने वाले सभी प्रतिनिधियों को मैं बधाई देती हूं। आज इस अवसर पर मैं पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी को भी स्मरण करती हूं जिनके नेतृत्व में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग स्थापित हुआ था।

आज 'स्वतन्त्रता संग्राम में जनजाति नायकों का योगदान' नामक पुस्तक का विमोचन होना गर्व की बात है। मुझे बताया गया है कि पूर्वोत्तर के राज्यों से लेकर पश्चिम में गुजरात तक और उत्तर में हिमाचल प्रदेश से लेकर दक्षिण में केरल तक के जनजाति समाज ने अंग्रेजों से जो भीषण संघर्ष किया, उसका वर्णन इस पुस्तक में है। मुझे विश्वास है कि इस पुस्तक के माध्यम से देश भर में जनजातियों के संघर्ष और बलिदान की गाथाओं का व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार होगा।

मुझे बताया गया है कि राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने 125 प्रमुख विश्वविद्यालयों में अनेक कार्यक्रम आयोजित किये। इन कार्यक्रमों में 50 हजार से अधिक जनजाति छात्रों तथा प्राध्यापकों की सहभागिता हुई। इन प्रयासों के लिए मैं राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की सराहना करती हूं। विश्वविद्यालयों में आयोजित कार्यक्रमों से जनजाति युवाओं को अपने पूर्वजों के बलिदानों और अपने समाज के स्वाभिमान की महान परंपरा के प्रति गर्व होगा। इतिहास हमें बताता है कि जनजाति समाज ने कभी भी गुलामी स्वीकार नहीं की। देश पर हुए सभी आक्रमणों का सबसे पहले जनजाति समाज ने ही प्रबल प्रतिकार किया। देश भर में जनजाति समुदायों द्वारा संथाल, हूल, कोल संग्राम, बिरसा आंदोलन और मानगढ़ में भीलों का संघर्ष एवं बलिदान जैसी अनेक वीर गाथाएं सभी देशवासियों को प्रेरित कर सकती हैं। इन सभी आंदोलनों की विशेषता यह है कि इन संघर्षों में जनजाति नायकों के साथ-साथ जनजाति समुदायों के महिलाओं, बच्चों सहित पूरे समुदाय ने अपना सर्वस्व बलिदान किया।

अभी राष्ट्रीय कार्यशाला में भाग लेने वाले चार वक्ताओं ने जनजाति विषयों पर शोध की आवश्यकता, जनजाति समाज से संबंधित धारणाओं, उनके इतिहास और जनजाति समाज के विकास के बारे में बताया। जनजाति समाज में न्याय के लिए बलिदान देने की भावना रही है। देश के अलग-अलग भागों में जनजाति समुदायों के संघर्ष के अनगिनत उदाहरण हैं जो उन क्षेत्रों के युवाओं और बच्चों को ही नहीं बल्कि सभी देशवासियों को प्रेरित और प्रभावित करेंगे।

देवियो और सज्जनो,

एक लंबे समय से इन बलिदानों की अनकही गाथाएं देश और दुनिया के सामने नहीं आ सकी है। मुझे विश्वास है कि राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग एवं आप सभी के प्रयासों से देश और दुनिया को भी हमारी स्वतन्त्रता में जनजाति समाज के योगदान एवं उनकी महान परम्पराओं का ज्ञान प्राप्त होगा।

मै आशा करती हूं कि हमारे देश के युवा अपने समाज के इतिहास एवं संस्कृति की विशेषताओं के बारे में अनुसंधान एवं लेखन की ओर प्रवृत्त होंगे। देश की उन्नति तभी हो सकती है जब हमारा युवा अपने गौरवशाली इतिहास को समझे, अपने देश एवं समाज की सुख-समृद्धि के सपने देखे, और उन्हें साकार करने के हर संभव प्रयास करे।

देवियो और सज्जनो,

आज़ादी के अमृत महोत्सव में हमारा युवा अपने इतिहास एवं परम्पराओं को समझने के लिये प्रेरित हो रहा है। मुझे विश्वास है कि इस दो दिवसीय कार्यशाला में आप सब अपने समाज की संपूर्ण उन्नति के साथ-साथ अनुसूचित जनजातियों के संवैधानिक अधिकारों एवं विकास योजनाओं के निर्धारण एवं मूल्यांकन पर विचार किया होगा। विश्वविद्यालय एवं प्राध्यापक वर्ग इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

कुछ दिन पहले मैंने पूर्वोत्तर भारत और मध्य प्रदेश का दौरा किया जहां जनजातीय आबादी बड़ी संख्या में है। मुझे वहां जनजाति समुदायों से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। प्रकृति के साथ जनजाति समाज का घनिष्ठ संबंध अनुकरणीय है। उन्हें साथ लेकर हम विकास की नई ऊंचाईयां पा सकते हैं और सही अर्थों में समावेशी विकास का लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं।

देवियो और सज्जनो,

हमारे देश की अनुसूचित जनजातीय जनसंख्या दस करोड़ से अधिक है। हमारे सामने, यह सुनिश्चित करने की चुनौती है कि विकास का लाभ सभी जनजातियों तक पहुंचे। साथ ही साथ उनकी सांस्कृतिक अस्मिता और पहचान बनी रहे। इतना ही नहीं, उनकी सहभागिता की ज़रुरत उनके विकास के लिए किए जाने वाले विमर्श और शोध में भी है। जनजाति समाज के समृद्ध ज्ञान में चिकित्सा संबन्धित औषधीय ज्ञान, धातुओं से औजार बनाने का ज्ञान, प्रकृति को सहेजने और जल-संरक्षण का ज्ञान, लोक-गीतऔर पुजा पद्धतियों से अपनी गाथाओं को याद रखने का ज्ञान शामिल है|

जनजाति समाज का ज्ञान जिस भी रूप में उपलब्ध है उसका संकलन करके लोकप्रिय माध्यम से उसे देश और दुनिया तक पहुंचाना एक उपयोगी प्रयास होगा। डिजिटल युग में टेक्नोलॉजी के माध्यम से हम जनजातियों की संस्कृति का ज्ञान आने वाली पीढ़ियों तक आसानी से पहुंचा सकते हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में Indian knowledge system पर विशेष ज़ोर दिया गया है। भारतीय ज्ञान परंपरा में, जनजाति ज्ञान को जोड़ने की आवश्यकता है। आई.के.एस. (IKS) नॉलेज कॉरपस से संबंधित प्रामाणिक, शोधित और व्यापक educational material विभिन्न स्कूल पाठ्य-पुस्तक लेखकों और अन्य विशेषज्ञों के लिए reference material के रूप में उपयोगी हो सकता है। प्रौद्योगिकी और परंपराओं, आधुनिकता और संस्कृति का सम्मिश्रण समय की मांग है और हमें असीम ज्ञान की शक्ति के साथ आगे बढ़ने और दुनिया का नेतृत्व करने के लिए तैयार रहना चाहिए। भारत को knowledge superpower बनाने में जनजातीय समाज से जुड़े ज्ञान का प्रचार और उनका विकास महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। मैं आशा करती हूं कि यहां आए हुए जनजाति समाज के लोग, लेखक, शोधकर्ता, सब लोग अपने विचारों, कार्यों और शोध से जनजाति समाज के विकास में अमूल्य योगदान देंगे।

धन्यवाद,  
जय हिन्द!

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