भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में सम्बोधन
उदयपुर : 03.10.2024
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इस समारोह में आप सब के बीच आकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। मैं उपाधि प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थियों को बधाई देती हूं। आज स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को मैं विशेष बधाई देती हूं। आज का दिन न सिर्फ उपाधि प्राप्त कर रहे विद्यार्थियों के लिए विशेष है, बल्कि उनके शिक्षकों और अभिभावकों के लिए भी अत्यंत हर्ष का दिन है। मैं सभी शिक्षकों और अभिभावकों की सराहना करती हूं जिनके सहयोग और प्रोत्साहन से विद्यार्थी इस उपलब्धि को प्राप्त कर सके हैं।
मैंने देखा है कि हमारी बेटियां सभी क्षेत्रों में श्रेष्ठ प्रदर्शन कर रही हैं। मेरे संज्ञान में आया है कि आज पदक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों में छात्राओं की संख्या छात्रों से अधिक है। यह बहुत खुशी की बात है। मैं पदक जीतने वाली सभी छात्राओं को विशेष बधाई देती हूं।
प्रिय विद्यार्थियो,
मेवाड़ और उदयपुर की विभूतियों ने स्वाधीनता संग्राम और राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह क्षेत्र सदियों से राष्ट्रीय अस्मिता के संघर्ष का साक्षी रहा है। राणा सांगा, महाराणा प्रताप, और भक्ति काल की महान संत कवयित्री मीराबाई का यह क्षेत्र शक्ति और भक्ति के संगम का क्षेत्र कहा जा सकता है। यहाँ की जनजाति-बहुल आबादी ने इस क्षेत्र का ही नहीं पूरे देश का गौरव बढ़ाया है।
यहां के इतिहास का आपको अध्ययन करना चाहिए। इससे आपको भारत की गौरवशाली परंपराओं के बारे में जानकारी मिलेगी। साथ ही आपको ऐसे विलक्षण व्यक्तित्वों की जीवन गाथा का परिचय प्राप्त होगा जो आपके लिए आदर्श हो सकते हैं।
देवियो और सज्जनो,
स्वाधीनता संग्राम के दौरान रियासतों में लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग के लिए प्रजा मंडल बनाए गए थे। इस क्षेत्र में गठित मेवाड़ प्रजा मंडल को माणिक्य लाल वर्मा, बलवंत सिंह मेहता और भूरे लाल बया जैसी विभूतियों ने नेतृत्व प्रदान किया। बाद में श्री मोहन लाल सुखाड़िया, मेवाड़ प्रजा मंडल के महासचिव बने। आपके विश्वविद्यालय का नाम उनके ही नाम पर है। राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में उनका लंबा कार्यकाल था।
देवियो और सज्जनो,
मेरा मानना है कि शिक्षा, सशक्तीकरण का सबसे अच्छा माध्यम है। छह दशकों से भी अधिक समय से यह विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा प्रदान कर रहा है। इस विश्वविद्यालय के पूर्व विद्यार्थियों की एक प्रभावशाली सूची है जिन्होंने राजनीति, शिक्षा, खेल, प्रशासन जैसे विविध क्षेत्रों में अपना योगदान दिया है।
मुझे बताया गया है कि इस विश्वविद्यालय और इससे संलग्न, 200 से अधिक, महाविद्यालयों में 1,70,000 से अधिक विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इन विद्यार्थियों में एक बड़ी संख्या अनुसूचित जाति और जनजाति समाज के विद्यार्थियों की है। यह समावेशी शिक्षा के माध्यम से सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान है।
इस विश्वविद्यालय से संलग्न Government Meera Girls College,राजस्थान में सबसे बड़े महिला महाविद्यालयों में से एक है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि इस विश्वविद्यालय द्वारा University Girls College की स्थापना की गई है। इस विश्वविद्यालय में “महिला अध्ययन केंद्र” स्थापित किया गया है। ये सभी प्रयास महिला सशक्तीकरण में सहायक सिद्ध होंगे।
मुझे बताया गया है कि इस विश्वविद्यालय ने अनेक गांवों को गोद लिया है तथा विद्यार्थियों को ग्राम विकास से जोड़ा है। यह प्रसन्नता की बात है कि यह विश्वविद्यालय अपने सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति सजग है।
प्रिय विद्यार्थियों,
संविधान निर्माता एवं अग्रणी राष्ट्र-निर्माता बाबासाहब आंबेडकर का मानना था कि चरित्र, शिक्षा से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। वे मानते थे कि ऐसा शिक्षित व्यक्ति जिसमें चरित्र और विनम्रता न हो, हिंसक जीव से भी अधिक खतरनाक होता है। उसकी शिक्षा से यदि गरीबों की हानि हो तो वह व्यक्ति समाज के लिए अभिशाप है। मेरा आप सभी से आग्रह है कि आप जहां भी हों, कोई भी ऐसा कार्य न करें जिससे आपके चरित्र पर कोई लांछन आए। उच्चतम नैतिक मूल्य आपके व्यवहार और कार्य-शैली का हिस्सा हों। आपके जीवन के हर पहलू में Integrity हो। आपका हर कार्य न्यायपूर्ण और नीति संगत हो।
प्रिय विद्यार्थियों,
आपको 21वीं सदी की दुनिया में अपना स्थान बनाना है। यह तेज गति से हो रहे बदलाव का समय है। यह बदलाव ज्ञान-विज्ञान तथा Technology के क्षेत्र में भी तेजी से हो रहा है। इस बदलते परिवेश में अपनी शिक्षा की उपयोगिता बनाए रखने के लिए आपको निरंतर विद्यार्थी की मानसिकता यानि “The Spirit of the Student” को बनाए रखना होगा। अब तक जो शिक्षा आपने प्राप्त की है वह जीवन यात्रा के लिए एक प्रस्थान बिन्दु है। जीवन यात्रा का पूरा मार्ग अब आपको अपने निरंतर परिश्रम और निष्ठा के बल पर तय करना है। स्वाध्याय में प्रमाद यानी मानसिक आलस्य न करने की सीख, केवल विद्यार्थी जीवन में ही नहीं, बल्कि आजीवन साथ देती है।
आपको व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और सामाजिक संवेदनशीलता, दोनों का समन्वय बनाकर आगे बढ़ना चाहिए। वस्तुतः इन दोनों में सहज संतुलन बना रहता है। संवेदना एक प्राकृतिक गुण है। परिवेश, शिक्षा और संस्कारों में व्याप्त कारणों से कुछ लोग अंध-स्वार्थ का मार्ग पकड़ लेते हैं। परंतु सबके हित को प्राथमिकता देने की विचारधारा, आपकी प्रतिभा को और अधिक विकसित बनाएगी। परहित करने में अपना हित सहज ही सिद्ध हो जाता है।
हमने वर्ष 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य रखा है। आपकी पीढ़ी के योगदान के बल पर ही यह राष्ट्रीय लक्ष्य प्राप्त करना संभव हो सकेगा। मैं आशा करती हूं कि आप राष्ट्र निर्माण और देश निर्माण में यथा-शक्ति सर्वाधिक योगदान देंगे।
प्रिय विद्यार्थियों,
मुझे आशा है कि आप अपने आचरण और कार्य से अपने परिवार, समाज, और देश का गौरव बढ़ाएंगे। इसी में आपकी शिक्षा की सार्थकता सिद्ध होगी। मैं आपके स्वर्णिम भविष्य की कामना करती हूं।
धन्यवाद,
जय हिंद!
जय भारत!