भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का भारतीय कम्पनी सचिव संस्थान के 55वें स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में सम्बोधन

नई दिल्ली : 04.10.2023

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भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का भारतीय कम्पनी सचिव संस्थान के 55वें स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में सम्बोधन

भारतीय कम्पनी सचिव संस्थान (ICSI) के 55वें स्थापना दिवस कार्यक्रम में आप सब के बीच उपस्थित होकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। इस संस्थान ने पिछले 55 वर्षों में बदलते भारत को देखा है और इस बदलाव में अपना यथोचित योगदान भी दिया है। मुझे बताया गया है कि ICSI लगभग 71000 सदस्यों और करीब 2.5 लाख छात्रों के एक विशालकाय परिवार का प्रतिनिधित्व करता है।

एक सशक्त और समर्थ भारत के निर्माण में ICSI का योगदान सराहनीय है। इस संस्थान ने अपने आदर्श वाक्य 'सत्यं वद, धर्मं चर' यानी “सत्य बोलो और नैतिकतापूर्ण आचरण करो” के अनुकूल कार्य करके न केवल कुशलता और दक्षता का परिचय दिया है, बल्कि उत्कृष्टता के नए आयाम और मानक भी स्थापित किये हैं।

देवियो और सज्जनो,

भारत की परम्परा में नैतिक धनोपार्जन यानि ethical wealth creation को हमेशा सराहा गया है और प्रोत्साहित किया गया है। चाहे कौटिल्य का अर्थशास्त्र हो या तिरुवल्लुवर का तिरुक्कुरल, प्रत्येक में धनोपार्जन में नैतिक मूल्यों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। तिरुवल्लुवर ने ऐसे धन को, जो बिना किसी को क्षति पहुंचाए अर्जित की गयी हो, धर्म के अनुरूप माना है और आनंद का स्रोत बताया है। इस परिपेक्ष में corporate और निजी क्षेत्रों का यह उत्तरदायित्व है कि वे सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक विकास और न्याय को भी अपना लक्ष्य बनाएं।

भारत आज नई ऊंचाइयों और बुलंदियों को छू रहा है। चाहे आर्थिक क्षेत्र हो या सामाजिक, हम अपनी जीवंत सभ्यता और संस्कृति के मूल्यों एवं सिद्धांतों को लेकर चलते हुए, एक विश्व-शक्ति बनने की ओर अग्रसर हैं। ऐसे में यह और भी जरूरी हो जाता है कि हमारे professionals न केवल क्षमतावान और योग्य हों, बल्कि साहसी और सृजनशील भी हों।

मैंने यहां आने से पहले Vision New ICSI - 2022 document पढ़ा जिसमें दलाई लामा की एक पंक्ति है - “In order to carry a positive action, we must develop a positive vision”. एक ऐसा संस्थान जिसका विज़न, “To be a global leader in promoting Good Corporate Governance” हो, उससे जुड़े हर व्यक्ति को उपनिषद् में लिखी इस बात को सार्थक करना होगा - ‘आप वह हैं, जो आपकी गहन इच्छा है। जैसी आपकी इच्छा है, वही आपकी आकांक्षा है। जैसी आकांक्षा है, वैसा आपका कर्म है। जैसा आपका कर्म है, वैसा ही आपका भाग्य है’। आपकी इच्छा-शक्ति और आपके कार्यों पर भारत के corporate governance का भविष्य निर्भर है। आप भारत को Good Corporate Governance के साथ-साथ Good Governance का role model भी बना सकते हैं। अत: आपके कार्य ऐसे होने चाहिए जो भारत को विश्व-पटल पर स्थापित कर सकें।

ICSI का कार्य न केवल देश में ऐसे professionals का निर्माण करना है जो corporate कार्यों और कानूनों में सक्षम, समर्थ, और दक्ष हों, बल्कि ऐसे Board Rooms, समाज और संस्कृति का निर्माण करना है जहां सुशासन, सत्यनिष्ठा और अनुशासन सिर्फ शब्द या buzzwords न हों। वे जीवन के हर पहलु की सामान्य सच्चाई हों, और किसी भी निर्णय को मापने की कसौटी भी हों।

मुझे यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता और गौरव की अनुभूति हो रही है कि ICSI की लगभग 50 प्रतिशत सदस्य महिलाएं हैं। यह महिला सशक्तिकरण और समान अधिकार की दिशा में एक बड़ा कदम है। मैं आशा करती हूं कि ICSI की यह उपलब्धि अन्य संस्थानों के लिए भी एक उदाहरण प्रस्तुत करेगी।

देवियो और सज्जनो,

Company professionals के तौर पर आप कई अहम निर्णयों का हिस्सा होते हैं। ऐसे में जरूरी है कि आप यह सुनिश्चित करें कि जिस भी organisation के साथ आप जुड़े हैं वो आने वाली पीढ़ी की आवश्यकताओं से समझौता किए बिना, वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करे और sustainable तथा समावेशी रूप से अपने कार्य को पूरा करे। ICSI का स्थापना दिवस राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की जयन्ती के दो दिन बाद आता है। इसलिए महात्मा गाँधी द्वारा सुझाए गए मार्ग की प्रासंगिकता इस संस्थान के लिए और भी अधिक बढ़ जाती है। राष्ट्रपिता के बताये गए 7 sins में से 3 sins थे:

Wealth without work; 
Knowledge without character; और 
Commerce without ethics.

उपरोक्त तीन sins से संबंधित सीख सदैव आपकी मार्गदर्शक होनी चाहिए। आपको यह याद रखना चाहिए कि “Business Ethics” से ज्यादा जरूरी है “Ethics in Business”. आपको यह भी सुनिश्चित करना है कि देश में व्यापार और निवेश बढ़ाने के लिए बनाये गए कानूनों का सदुपयोग हो। उदाहरण के लिए, एक कंपनी अपने आप में पृथक विधायी अस्तित्व रखती है। इस बात से यह आशंका बढ़ जाती है कि कभी-कभी इस प्रावधान का दुरूपयोग ऐसे लोग कर लें, जिनकी मंशा नेक न हो। Corporate governance के सजग प्रहरी के तौर पर आपको यह ध्यान रखना है कि व्यापार में सुगमता बढ़ाने के लिए किये जाने वाले कानूनी प्रावधानों का दुरूपयोग न हो।

देवियो और सज्जनो,

परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है। अगर हम बदलाव के साथ सहज नहीं होंगे, या अगर हम अपनी प्रवृतियों, तौर-तरीकों और काम करने के ढंग को समय के अनुरूप नहीं बदलेंगे तो सुशासन और सुराज की हमारी कामना परिपूर्ण नहीं हो पाएगी। चाहे नई-नई तकनीकों जैसे AI का जन्म हो, या Regulatory Environment में होने वाले बदलाव, इन सब परिवर्तनों के साथ आपको भी भविष्य के अनुरूप बदलना होगा। मैं ICSI को बधाई देती हूं कि उन्होंने अपने syllabus को न केवल जरूरत के अनुसार update किया है, बल्कि research को भी प्रोत्साहित किया है। मुझे विश्वास है कि इससे आने वाली professionals की पीढ़ी अपने आप को भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार कर सकेगी।

कोई देश समृद्धता और विकास की ओर तभी अग्रसर हो सकता है जब उस देश की हर इकाई, हर कड़ी अपना सर्वस्व देश के लिए देने के लिए तत्पर हो। जब हमारा देश अमृत-काल से गुजर रहा है और आत्मनिर्भरता के वादे को सार्थक करने के लिए प्रतिबद्ध है तब ICSI का MSME Catalyst Initiative सराहनीय है। मुझे बताया गया है कि इस पहल के अंतर्गत MSMEs में good governance को बढ़ावा देते हुए उन्हें अर्थव्यवस्था के growth engine बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं।

देवियो और सज्जनो,

आपको यह याद रखना है कि आपकी निष्ठा एक कंपनी के अधिकारी या professional के तौर पर सिर्फ विधि अनुकूल कार्य करने की ही नहीं है, बल्कि आपका कर्तव्य देश के उस हर नागरिक के प्रति भी है जो विकास की यात्रा में पीछे रह गया है। संसाधनों पर corporate जगत की भूमिका trusteeship की होनी चाहिए। सेवा का भाव आपका मूल मन्त्र होना चाहिए। गाँधी जी के आदर्श कथन “सबसे गरीब और सबसे असहाय आदमी का चेहरा याद करें” को याद करते हुए आप Good Corporate Governance के मार्ग पर आगे बढ़ें, जिसका ध्येय हो “मानव गरिमा के साथ सम्पन्नता”। इसी के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं।

धन्यवाद! 
जय हिन्द! 
जय भारत!

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