भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का 70वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह के अवसर पर सम्बोधन
नई दिल्ली : 08.10.2024
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आज के सभी पुरस्कार विजेताओं को मैं हार्दिक बधाई देती हूं। मुझे बताया गया है कि बहुत सी फिल्मों पर विचार करने के बाद आज की पुरस्कृत फिल्में चुनी गई हैं। सिनेमा पर सर्वश्रेष्ठ लेखन एवं समीक्षा के लिए भी अनेक पुस्तकों और समीक्षकों का आकलन किया गया है। इसके लिए मैं निर्णायक मण्डल के अध्यक्षों सहित, सभी सदस्यों की सराहना करती हूं।
किसी भी फिल्म को बनाने में बहुत से लोग एक साथ मिलकर काम करते हैं। आज के पुरस्कार विजेताओं की टीम के सभी सदस्यों को भी मैं बधाई देती हूं। अनेक भाषाओं और देश के सभी क्षेत्रों में बनाई जा रही फिल्मों के आधार पर, भारतीय सिनेमा, विश्व का सबसे बड़ा फिल्म उद्योग है। साथ ही, यह सबसे अधिक विविधतापूर्ण कला-क्षेत्र भी है। पूरे देश में, फिल्म उद्योग के सभी आयामों से जुड़े लोगों की मैं सराहना करती हूं।
‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ से सम्मानित होने वाले मिथुन चक्रवर्ती जी को मैं विशेष बधाई देती हूं। स्वाधीनता सेनानी तथा ओड़िया भाषा के प्रसिद्ध लेखक भगबती चरण पाणिग्रही द्वारा लिखी गई एक कहानी, ‘शिकार’ हमारे स्कूल के पाठ्यक्रम में पढ़ाई जाती थी। उस कहानी में, न्याय और अन्याय को अपनी सरल और सहज दृष्टि से देखने वाले, भोले-भाले आदिवासी युवक, घिनुआ का मार्मिक चित्रण मेरे मन में आज भी अंकित है। मिथुन चक्रवर्ती जी ने, अपनी पहली ही फिल्म ‘मृगया’ में, उस अनोखे चरित्र को जीवंत बनाया तथा सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित हुए। अब तक लगभग पांच दशकों की अपनी कला-यात्रा के दौरान मिथुन जी ने गंभीर चरित्रों को पर्दे पर उतारने के साथ-साथ, सामान्य कहानियों को भी, अपनी विशेष ऊर्जा से सफलता प्रदान की है। उनकी लोकप्रियता का दायरा अन्य देशों तक फैला हुआ है। यह जानकर मुझे प्रसन्नता हुई है कि वे समाज कल्याण के अनेक कार्यों में संलग्न हैं।
इसके लिए मैं उनकी सराहना करती हूं।
आज के कुल पुरस्कार विजेताओं की संख्या 85 से अधिक है, लेकिन महिला पुरस्कार विजेताओं की संख्या केवल 15 है। मैं शिक्षण संस्थानों के कई convocation functions में जाती हूं। अधिकांश उच्च-शिक्षण संस्थानों में, पुरस्कार प्राप्त करने वाली छात्राओं की संख्या, छात्रों से अधिक होती है। ऐसा ही बदलाव, रोजगार और उद्योग जगत में भी होना चाहिए। फिल्म-उद्योग द्वारा, women-led development की दिशा में और अधिक प्रयास किया जा सकता है।
मैं मानती हूं कि फिल्में और सोशल मीडिया समाज को बदलने का सबसे अधिक मजबूत माध्यम हैं। लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए जितना असर इन माध्यमों से पड़ता है, उतना किसी और माध्यम से संभव नहीं है। मैंने आज पुरस्कृत की गई फिल्मों के संक्षिप्त विवरण पर एक निगाह डाली थी। मैं बहुत सी फिल्मों से प्रभावित हुई हूं। लेकिन, समय-सीमा को ध्यान में रखते हुए कुछ ही फिल्मों का उल्लेख कर पाना संभव है।
इन पुरस्कृत फिल्मों की भाषाएं और परिवेश भले ही अलग हों, सभी फिल्मों में भारत की झलक मिलती है। इन फिल्मों में भारतीय समाज के अनुभवों का खजाना है। इनमें भारत की परम्पराएं और उनकी विविधता सजीव हो जाती हैं। हमारी फिल्में हमारे समाज के कला-बोध को प्रदर्शित करती हैं। जीवन बदल रहा है। कला के प्रतिमान बदल रहे हैं। नई आकांक्षाएं जन्म ले रही हैं। नई समस्याएं सामने आ रही हैं। नई जागरूकता भी पैदा हो रही है। इन सभी बदलावों के बीच आपसी प्रेम, करुणा और सेवा के कभी न बदलने वाले जीवन-मूल्य आज भी हमारे व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन को सार्थक बना रहे हैं। ये सभी बातें आज पुरस्कृत हुई फिल्मों में देखी जा सकती हैं।
Non-feature films में सर्वश्रेष्ठ निर्देशन का पुरस्कार ‘From the Shadows’ नामक फिल्म के लिए दिया गया है। अपने अस्तित्व और गरिमा के लिए अनेक समस्याओं से लड़ती हुई महिलाओं के संघर्ष पर आधारित यह फिल्म, child-trafficking की गंभीर समस्या को उजागर करती है। यह समस्या बेटियों की सुरक्षा से जुड़ी हुई है। ऐसी फिल्में समाज को जगाती हैं और रास्ता दिखाती हैं।
देवियो और सज्जनो,
असम की सामाजिक कार्यकर्ता डॉक्टर बीरुबाला राभा ने डायन-लांछन जैसे अंधविश्वास के विरुद्ध दृढ़ता से मुकाबला करके एक सामाजिक बुराई को दूर करने में असाधारण योगदान दिया है। उन्हें अपनी जान बचाने के लिए जंगल में शरण लेनी पड़ी थी। समाज को जागरूक बनाने तथा पीड़ितों को सहारा देने के लिए उनके असाधारण योगदान हेतु उन्हें वर्ष 2021 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उनकी प्रेरक जीवनगाथा पर आधारित असमिया भाषा में बनी ‘Birubala: Witch to Padmashri’ जैसी फिल्में अनकही कहानियों को लोगों तक पहुंचाती हैं।
सर्वश्रेष्ठ ओड़िया फिल्म का पुरस्कार प्राप्त करने वाली फिल्म ‘दमन’ का संदेश भी अत्यंत प्रेरक है। एक युवा डॉक्टर द्वारा जनजाति-बहुल गांवों में, अनेक संकटों का सामना करते हुए, लोगों की सेवा करने का असाधारण उदाहरण सभी के लिए अनुकरणीय है। निस्वार्थ संघर्ष, सेवा और करुणा के जीवन-मूल्यों के बल पर ही समाज आगे बढ़ता है।
सामाजिक मूल्यों को बढ़ावा देने वाली सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का पुरस्कार प्राप्त करने के लिए ‘कच्छ एक्सप्रेस’ की पूरी टीम को मैं बधाई देती हूं। महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रहों को दूर करने में ‘कच्छ एक्सप्रेस’ जैसी फिल्में सहायक होंगी, यदि उनका व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार किया जाए। ऐसी फिल्मों द्वारा, महिलाओं को सशक्त बनाने का संदेश मिलता है।
सर्वश्रेष्ठ पंजाबी फिल्म ‘बागी दी धी’, के कथानक ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। एक स्वाधीनता सेनानी की बहादुर बेटी, ब्रिटिश हुकूमत का विरोध करते हुए अपने जीवन का बलिदान कर देती है। देश-प्रेम के आदर्शों को जीवंत बनाए रखने में हमारी फिल्मों ने सराहनीय योगदान दिया है। राष्ट्र के साथ भावना के स्तर पर लगाव होने से, कोई भी व्यक्ति, अपने कर्तव्यों को निभाने में तथा राष्ट्र-निर्माण में अधिक उत्साह के साथ अपना योगदान करेगा।
हरियाणवी भाषा में बनी फिल्म ‘फौजा’ के निर्देशक को राष्ट्रीय स्तर पर Best Debut Film के निर्देशन हेतु पुरस्कार मिला है। भारतीय सेनाओं के प्रति गर्व की भावना से ओतप्रोत यह फिल्म, हमारे सैन्य-बलों का सम्मान भी बढ़ाती है और हमारे युवाओं में सेना के प्रति आदर और आकर्षण भी पैदा करती है। कला और संस्कृति से जुड़ी सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार कन्नड़ा भाषा में बनाई गई फिल्म ‘रंग विभोग’ को मिला है। कर्णाटका के मंदिरों में नृत्य कला की 2000 वर्षों से भी अधिक पुरानी परंपरा को यह फिल्म दर्शाती है। ऐसी फिल्में हमें अपनी कला की समृद्ध परम्पराओं के बारे में अच्छी जानकारी देती हैं, तथा सांस्कृतिक गौरव का भाव भी उत्पन्न करती हैं।
मलयालम भाषा में बनी फिल्म ‘मालिगपुरम्’ में उत्कृष्ट अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का पुरस्कार प्राप्त करने वाले मास्टर श्रीपद को मैं आशीर्वाद देती हूं कि वे जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहें।
देवियो और सज्जनो,
प्रायः सार्थक फिल्मों को दर्शक नहीं मिल पाते हैं। करोड़ों रुपयों की लागत और कमाई से जुड़ी फिल्मों के बारे में trade journals तो लिखते ही हैं, समाचार पत्र भी उन्हीं फिल्मों के reviews और reports को अधिक महत्व देते हैं। Film Promotion में खर्च करना फिल्म की सफलता का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। ऐसी स्थिति में, आर्थिक शक्ति ही फिल्म जैसी महत्वपूर्ण विधा को नियंत्रित करती नजर आती है। आज पुरस्कृत अनेक फिल्में बनाने वाले उस तरह की आर्थिक शक्ति से सम्पन्न नहीं हैं, जो बड़े बजट वाली फिल्मों को आगे बढ़ाती हैं। इसलिए समाज के प्रबुद्ध नागरिकों, सामाजिक संस्थाओं और केंद्र तथा राज्य सरकारों को सार्थक सिनेमा की पहुंच को बढ़ाने के लिए मिलजुल कर निरंतर प्रयास करना होगा।
मैं भारतीय फिल्म उद्योग से जुड़े सभी लोगों के स्वर्णिम भविष्य की कामना करती हूं।
धन्यवाद!
जय हिन्द!
जय भारत!