भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का रामनाथ गोयनका उत्कृष्ट पत्रकारिता पुरस्कार प्रदान किए जाने के अवसर पर संबोधन

नई दिल्ली : 19.03.2025

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ADDRESS BY THE HON’BLE PRESIDENT OF INDIA, SMT. DROUPADI MURMU ON THE OCCASION OF PRESENTATION OF THE RAMNATH GOENKA EXCELLENCE IN JOURNALISM AWARDS

मैं रामनाथ गोयनका उत्कृष्ट पत्रकारिता पुरस्कार समारोह में आप सब के बीच उपस्थित होकर बहुत प्रसन्न हूँ। ये पुरस्कार श्रेष्ठ पत्रकारिता को स्वीकार करने और उसका सम्मान करने के लिए प्रदान किए जाते हैं। इसके साथ ही हम इंडियन एक्सप्रेस समूह के संस्थापक और भारतीय मीडिया के महान विभूति रामनाथ गोयनका की विरासत का भी सम्मान करते हैं। वे स्वाधीनता से पहले और स्वाधीनता के बाद भी प्रेस की स्वतंत्रता के लिए खड़े रहे। उनका समाचार-पत्र आपातकाल के दौरान किसी भी प्रकार के दबाव के सामने झुका नहीं। उनके द्वारा प्रकाशित रिक्त संपादकीय स्वतंत्र प्रेस का एक स्पष्ट प्रतीक बना और साथ ही लोकतांत्रिक अधिकारों की बहाली की आशा का संकेत भी बना।

गोयनका जी की यह निर्भीकता हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्यों से प्रेरित थी। राष्ट्रवादी आंदोलन के कई महान नेताओं ने जनता में जागरूकता पैदा करने के लिए पत्रकारिता को अपनाया। महात्मा गांधी कई अन्य पेशों के अलावा एक पत्रकार भी थे, जिसे उन्होंने अपनाया। उनकी पत्रिका ‘यंग इंडिया’ में उनके लेखन के कारण, भारत में उन्हें पहली लंबी कैद हुई थी। गांधीजी ने कहा था, “पत्रकारिता का एकमात्र उद्देश्य सेवा करना होना चाहिए।” गोयनका जी की पत्रकारिता भी ऐसी ही थी – देशवासियों की सेवा।

गोयनका जी के लिए सेवा केवल पत्रकारिता तक ही सीमित नहीं थी। इसी तरह राष्ट्रपिता के साथ उनका जुड़ाव, राष्ट्रपिता की तरह अन्य गतिविधियों से भी था। वर्ष 1933 में, एक समारोह में जहां गांधीजी हरिजन उत्थान के लिए धन एकत्र कर रहे थे, 15 रुपये के बॉक्स की पहली बोली में गोयनका जी 100 रुपये की बोली लगाई। वर्ष 1935 में जब गांधीजी को हिंदी साहित्य सम्मेलन का दोबारा अध्यक्ष चुना गया तो उन्होंने कहा कि यह सम्मान उन्हें दक्षिण में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए मिला है। इसके बाद उन्होंने श्री रामनाथ गोयनका को उस मिशन के “संरक्षकों” में से एक बताया।

देवियो और सज्जनो,

लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता के महत्व को कम नहीं आंका जा सकता। अगर देशवासियों तक सही जानकारी नहीं पहुंचेगी तो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का अर्थ नहीं रहेगा। समाचार मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, क्योंकि आधुनिक देश में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस प्रकार, इस क्षेत्र में हम सब का हित निहित है। इसे ध्यान में रखते हुए, मैं कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों के बारे में कुछ कहना चाहूंगी, उम्मीद है इस संबंध में बाद में भी चर्चा होगी। सबसे पहले समाचारों के कार्य में विविध विचार संपन्न न्यूज़रूम आवश्यक है। देश के प्रतिष्ठित पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने एक बार इसी मंच पर समाचार की गुणवत्ता और सटीकता सुनिश्चित करने के लिए न्यूज़रूम से जुड़े एक शोध विंग होने की आवश्यकता पर बल दिया था। यह संतोष की बात है कि इंडियन एक्सप्रेस का एक जीवंत न्यूज़रूम है जिसकी एक शोध टीम है।

मुझे यह भी लगता है कि पत्रकारिता की आत्मा, समाचार इक्ट्ठे करने की प्रक्रिया को मजबूत किया जाना आवश्यक है। आपको ज़मीनी स्तर पर रिपोर्टिंग की संस्कृति को प्रोत्साहित करने के लिए और अधिक संसाधन लगाने की आवश्यकता है। ऐसा तब तक नहीं किया जा सकते जब तक कि आपके पास जीविका के लिए व्यवहार्य 'व्यवसाय मॉडल' नहीं हो। पहले, समाचार पत्र और पत्रिकाएँ में गुणवत्तापूर्ण रिपोर्टिंग और विश्लेषण अधिक होता था और इसीलिए पाठक उन्हें खरीदते थे। पाठकों की काफी संख्या होने से विज्ञापनदाताओं को एक अच्छा मंच मिलता था जिससे लागतों को सब्सिडी मिल जाती थी। हालाँकि, हाल के दशकों में, इस मॉडल में अनेक हाइब्रिड मॉडलों के कारण परिवर्तन आया है।

उनकी सफलता को पत्रकारिता की गुणवत्ता पर उनके प्रभाव से मापा जाना चाहिए। यह सच है कि दुनिया भर में फंडिंग के सीमित स्रोत हैं और ये स्रोत राज्य अथवा कॉर्पोरेट संस्थाएँ या पाठक हो सकते हैं। जबकि पहले दो स्रोत के अपने फायदे और उनकी सीमाएँ हैं, पाठक को ध्यान में रखने का तीसरा विकल्प सबसे बेहतर विकल्प है। इसकी केवल एक सीमा है: उस मॉडल को बनाए रखना मुश्किल लगता है।

मुझे लगता है कि पूरी दुनिया के प्रमुख समाचार प्लेटफॉर्म पिछले कुछ समय से इस चुनौती से जूझ रहे हैं। हितधारकों होने के नाते हम सभी को इस मुद्दे पर अधिक जागरूकता पैदा करने की दिशा में कार्य करना चाहिए। मेरा मानना ​​​​है कि एक तरफ लाभप्रदाता और दूसरी तरफ पाठक के प्रति जिम्मेदारी अलग नहीं हैं; वास्तव में, वे पूरक हैं।

कंटेंट निर्माण के मुद्दे पर, हमें उम्मीद है कि हम जल्द ही उस चरण में पहुंच जाएंगे जब दुर्भावनापूर्ण कंटेंट नहीं रहेगा और तथाकथित पोस्ट-ट्रुथ प्रचलन से बाहर हो जाएगा। इस दिशा में तकनीकी उपकरणों का भी उपयोग किया जा रहा है। हम देशवासियों को इन नुकसानों के बारे में जागरुक करने के लिए सक्रिय अभियान चलाने के साथ इस प्रक्रिया को तेज कर सकते हैं। वास्तव में, डीप फेक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के अन्य दुरुपयोगों के कारण हमें समाचार के इस महत्वपूर्ण पहलू के बारे में सभी नागरिकों को संवेदनशील करना आवश्यक है। विशेषकर युवा पीढ़ी को समाचार रिपोर्ट या किसी भी पूर्वाग्रही विश्लेषण और एजेंडा को पहचानने के लिए शिक्षित किया जाना आवश्यक है। युवाओं में उस आलोचनात्मक क्षमता को विकसित करना देश के भविष्य के लिए भी अति आवश्यक है।

इस बीच, एआई दुनिया में बाधा भी उत्पन्न कर रहा है, पत्रकारिता सहित अनेक क्षेत्रों में नए अवसरों के साथ-साथ नई चुनौतियां भी आ रही हैं। मशीनों से ही रिपोर्ट संकलित और संपादित की जा रही हैं। हालांकि, उनमें समानुभूति की कमी है, जो पत्रकारों को एआई से जीतने में मदद कर सकती है। मानवीय मूल्यों पर आधारित पत्रकारिता कभी विलुप्त नहीं हो सकती है।

देवियो और सज्जनो,

आज के पुरस्कार विजेताओं का कार्य किसी न किसी तरह से ऐसे मानवीय मूल्यों पर आधारित होना चाहिए। इससे देशवासियों और उन लोगों के लिए उनके सरोकारों का पता चलेगा जो स्वयं अपनी बात नहीं रख सकते हैं।

सभी विजेताओं को मैं बधाई देती हूं! चूंकि पत्रकारिता टीमवर्क पर आधारित होती है, इसलिए मैं उनके सहयोगियों को भी बधाई देती हूं जिन्होंने उनके कार्य में योगदान दिया है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि पुरस्कारों में क्षेत्रीय भाषाओं की पत्रकारिता के लिए पुरस्कार भी शामिल हैं। इससे देश के उन क्षेत्रों से अधिक ग्राउंड रिपोर्ट मिलने में मदद मिलेगी जो बड़े शहरों से दूर हैं।

रामनाथ गोयनका पुरस्कारों ने भारतीय पत्रकारिता में उत्कृष्टता के स्तर को बढ़ाने और इस प्रकार हमारे लोकतंत्र के सुदृढ़ करने में योगदान दिया है। महत्वपूर्ण पत्रकारिता को कायम रखने के लिए आप सब को मेरी शुभकामनाएं।

धन्यवाद,
जय हिंद!
जय भारत!

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