भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का मानव अधिकार दिवस के अवसर पर संबोधन
नई दिल्ली : 10.12.2025
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मानव अधिकार दिवस के इस अवसर पर आप सभी के साथ उपस्थित होकर मुझे प्रसन्नता हो रही है। यह अवसर हमें याद दिलाता है कि सार्वभौमिक मानव अधिकार अहरणीय हैं और ये एक न्यायपूर्ण, समतावादी और करुणामय समाज की नींव हैं।
सतहत्तर वर्ष पूर्व, विश्व एक साधारण किंतु एक क्रांतिकारी सत्य को स्वीकार करने के लिए एकत्र हुआ कि प्रत्येक मनुष्य की गरिमा समान है और उसे जन्म से ही अधिकारों की स्वतंत्रता है।
मानव अधिकारों के वैश्विक स्वरूप को आकार देने में भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने मानवीय गरिमा, समानता और न्याय आधारित विश्व की संकल्पना की थी। हमारी संविधान सभा की पंद्रह महिला सदस्यों में हंसा मेहता भी थीं जो मानव अधिकार सार्वभौमिक घोषणा-पत्र का प्रारूप तैयार करने वाले समूह की सदस्य भी थीं। उन्होंने प्रारूप में एक मूलभूत परिवर्तन का सुझाव दिया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उस वैश्विक चार्टर में निहित अधिकारों को 'मनुष्य के अधिकार' के स्थान पर समावेशी और सार्वभौम अभिव्यक्ति, 'सभी मनुष्यों के अधिकार' के रूप में व्यक्त किया जाए। एक भारतीय महिला द्वारा अपनी व्यापक दृष्टि से ऐसा ऐतिहासिक परिवर्तन करना, यह हर भारतीय के लिए गौरव की बात है।
इस प्रकार, भारत ने मानव अधिकार सार्वभौमिक घोषणा-पत्र को एक सार्वभौमिक नैतिक संधि के सह-निर्माता के रूप में अपनाया, जो हमारी सभ्यतागत विचारधारा से गहराई से मेल खाती है। हमारी प्राचीन मान्यता 'वसुधैव कुटुंबकम' जिसका अर्थ है कि पूरा विश्व एक परिवार है, यह मान्यता सार्वभौमिक मानव अधिकारों के विचार में परिलक्षित होता है। यह बिल्कुल सही बात है कि मानव अधिकार सिद्धांतों के प्रति भारत की निरंतर प्रतिबद्धता को वैश्विक स्तर पर स्वीकार किया गया है। संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद में सातवीं बार, 2026 से शुरू होने वाले तीन वर्षीय कार्यकाल के लिए हमारा निर्विरोध चुनाव, इस बात का प्रमाण है।
आज हम सबके समावेश के अपने प्राचीन आदर्श 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' जिसका अर्थ है 'सभी सुखी हों' को भी याद करते हैं। हम 'सभी के कल्याण' की इस समावेशी भावना को आधुनिक समय की प्रतिज्ञा के रूप में पुन: दोहराते हैं: कि कोई भी पीछे नहीं छूटे; कि गरिमा का समझौता नहीं किया जा सकता; तथा, कि न्याय भारत में प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार बना रहेगा। हमारी स्पष्ट प्रतिबद्धता है कि एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण करना जहां प्रत्येक व्यक्ति स्वाधीनता, सम्मान और समानता के साथ रह सके, और जहां मानव अधिकारों की केवल रक्षा ही नहीं हो बल्कि उनको जीया भी जाए।
मानव अधिकार हमारे संविधान की बुनियाद में सन्निहित हैं। हमारे संवैधानिक उद्देश्यों को रेखांकित करते हुए बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था, “हमें अपने राजनीतिक लोकतंत्र को सामाजिक लोकतंत्र भी बनाना चाहिए।” मानव अधिकार सामाजिक लोकतंत्र को बढ़ावा देते हैं।
भयमुक्त जीवन जीने का अधिकार, बे-रोकटोक शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार, शोषण रहित काम करने का अधिकार और गरिमापूर्ण वृद्धावस्था का सम्मान करना मानव अधिकारों में आते हैं।
वैश्विक स्तर पर हम यह स्मरण कराते रहते हैं कि मानवाधिकारों के बिना विकास संभव नहीं हो सकता है। साथ ही, भारत ने सदा इस चिरस्थायी सत्य 'न्याय बिना शांति नहीं और शांति बिना न्याय नहीं' का पालन किया है।
देवियो और सज्जनो,
वर्ष 2019 से मानव अधिकार मुद्दों के प्रति समग्र दृष्टिकोण रखने के उद्देश्य से, अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिला, बाल अधिकार संरक्षण और पिछड़े वर्ग के राष्ट्रीय आयोगों के अध्यक्षों के साथ-साथ दिव्यांगजनों के लिए मुख्य आयुक्त को, आयोग के समक्ष आने वाले प्रमुख मुद्दों से निपटने के लिए राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) का सदस्य माना जाता है। यह जानकर प्रसन्नता होती है कि भारत का राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी), राज्य मानव अधिकार आयोग, न्यायपालिका तथा समाज हमारे संवैधानिक सचेतता के सचेत प्रहरी रहे हैं।
देवियो और सज्जनो,
यह बड़े संतोष की बात है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति समुदायों के लोगों, तथा महिलाओं और बच्चों से जुड़े अनेक विषयों का स्वयं संज्ञान लिया है। मुझे बताया गया है कि अब तक आयोग ने लगभग तीन हजार मामलों का स्वयं संज्ञान लिया है।
कारागारों में बंद undertrial लोगों से जुड़े विषय पर मैंने अपने विचार व्यक्त किए हैं। इस दिशा में कुछ प्रयास भी किए गए हैं। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि मानव अधिकार आयोग द्वारा इस वर्ष आयोजित स्थापना दिवस समारोह के अवसर पर Human Rights of Prison Inmates विषय पर व्यापक विचार-विमर्श किया गया। मैं आशा करती हूं कि उस विचार-विमर्श के उपयोगी परिणाम निकलेंगे।
महिलाओं का सशक्तिकरण और कल्याण, मानव अधिकार के प्रमुख आधार स्तम्भ हैं। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान से बेटियों की शिक्षा को बढ़ावा मिला है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां बेटियों की संख्या कम है। मुझे यह देखकर प्रसन्नता होती है कि सरकार की अनेक प्रभावी योजनाओं के माध्यम से महिलाओं की आर्थिक भागीदारी, सम्मान और आत्मनिर्भरता को बल मिला है।
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि आयोग द्वारा सार्वजनिक स्थानों और कार्यस्थलों में महिलाओं की सुरक्षा के विषय पर सम्मेलन का आयोजन किया गया। ऐसे सम्मेलनों से निकले निष्कर्ष महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकते हैं। इसके लिए मैं आयोग की पूरी टीम की सराहना करती हूं। शिक्षा, नागरिकों के सशक्तिकरण तथा उनके मानव अधिकारों की कुंजी है। एकलव्य मॉडल रेजिडेंशियल स्कूल और पीएम श्री स्कूल जैसे संस्थान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को सबकी पहुंच में लाते हैं। इन संस्थानों से वंचित वर्गों के विद्यार्थियों की शिक्षा को विशेष प्रोत्साहन मिला है।
देवियो और सज्जनो,
मुझे विशेष रूप से खुशी है कि आज, भारत का राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग "रोजमर्रा की आवश्यक सुविधाओं का सुनिश्चयन" विषय पर एक सम्मेलन आयोजित कर रहा है। यह सम्मेलन इस वर्ष के संयुक्त राष्ट्र के विषय के अनुरूप है। यह स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास और अन्य बुनियादी सुविधाओं जैसी आवश्यक सेवाओं को प्रत्येक नागरिक तक सुलभ कराने के लिए भारत द्वारा ध्यान दिए जाने को भी दर्शाता है। विशेषकर गरीबों की न्याय तक पहुंच पर विशेष जोर दिया गया है। मुझे पता चला है कि विभिन्न क्षेत्रों के हितधारक रोजमर्रा की आवश्यक सुविधाओं से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए इस सम्मेलन में भाग ले रहे हैं।
मुझे एनएचआरसी के नए मोबाइल ऐप का विमोचन करके प्रसन्नता हो रही है। मुझे बताया गया है कि इस ऐप से एनएचआरसी में शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया सबके लिए और सुलभ हो जाएगी। लोग अपनी शिकायतों की स्थिति की भी जांच कर सकेंगे। इससे युवा विद्यार्थी इंटर्नशिप और सीखने के अन्य अवसरों के लिए भी एनएचआरसी से जुड़ सकेंगे।
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) राज्य और समाज के आदर्शों को अभिव्यक्ति देता है। भारत सरकार इन अभिव्यक्तियों को अभूतपूर्व पैमाने पर क्रियान्वित कर रही है। पिछले एक दशक में हमारा देश एक अलग दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ा है - अधिकार से सशक्तिकरण की ओर और दान से अधिकारों की ओर। सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि स्वच्छ जल, विद्युत, रसोई गैस, स्वास्थ्य सेवा, बैंकिंग सेवाएं, शिक्षा और बेहतर स्वच्छता जैसी दैनिक आवश्यकता से जुड़ी सेवाएं सभी को उपलब्ध हों। इससे प्रत्येक परिवार का विकास होता है और परिवार की गरिमा बढ़ती है। गरीबों के लिए बनाए गए 4 करोड़ से अधिक घरों से आश्रय का अधिकार, सपने से हकीकत में बदला है। विश्व के सबसे बड़ा खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के तहत लगभग 8 करोड़ लोगों को लाभ पहुँचता है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य है कि कोई भी भारतीय भूखे पेट न सोए।
हाल ही में, सरकार ने वेतन, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य परिस्थितियों से संबंधित चार श्रम संहिताओं के माध्यम से एक महत्वपूर्ण सुधार को लागू किया है। ये परिवर्तनकारी बदलाव भविष्य के लिए तैयार कार्यबल और अधिक अनुकूल उद्योगों की नींव बनेंगे। ये सभी कार्य हमारी इस राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं कि प्रगति समावेशी हो और यह हमारे देश के हर क्षेत्र और हमारे समाज के हर वर्ग तक पहुंचे।
देवियो और सज्जनो,
आज मैं प्रत्येक देशवासी से यह आह्वान करती हूँ कि वह यह समझे कि मानव अधिकार केवल सरकारों, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी), नागरिक समाज संगठनों और ऐसे अन्य संस्थानों की जिम्मेदारी नहीं है। देशवासियों के अधिकारों और गरिमा की सुरक्षा करना हम सबका कर्तव्य है। एक सहानुभूतिपूर्ण और जिम्मेदार समाज के हिस्से के रूप में यह हम सब का कर्तव्य है। आइए हम 'विकसित भारत' के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ने का संकल्प लें, जिसमें समग्र विकास और सामाजिक न्याय का आदर्श दोनों शामिल हों।
धन्यवाद!
जय हिंद!
जय भारत!
