भारत की माननीय राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का लोक सेवा आयोग के अध्यक्षों के राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर संबोधन

हैदराबाद : 19.12.2025

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संघ लोक सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोगों के अध्यक्षों के सम्मेलन के इस उद्घाटन सत्र में उपस्थित होकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। लोक सेवा आयोगों की कई दशकों से चली आ रही, एक लंबी परंपरा रही है। मुझे यह देखकर प्रसन्नता हो रही है कि आयोग अपने विकास के विभिन्न चरणों के दौरान सामने आई आवश्यकताओं के अनुसार कार्य करते रहे हैं।

स्वाधीनता से पूर्व, केंद्रीय लोक सेवा आयोग की स्थापना 1 अक्तूबर, 1926 को की गई थी। बाद में, भारत सरकार अधिनियम 1935 के प्रावधानों के अनुसार, संघीय लोक सेवा आयोग और प्रांतीय लोक सेवा आयोगों की स्थापना की गई थी। 26 जनवरी, 1950 को देश गणतंत्र बनने के बाद, संघ लोक सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोग बनाए गए।

मैं अध्यक्षों की इस सभा के समक्ष, इन तथ्यों को इसलिए प्रस्तुत कर रही हूँ ताकि आप सभी अतीत को ऐतिहासिकता और उद्देश्य के नए नजरिए से देखें। हमें यह स्मरण रखना है कि स्वाधीनता से पूर्व के वर्षों में, सरकारी संस्थाओं का कार्य करने का उद्धेश्य बिल्कुल अलग होता था।

देवियो और सज्जनो,

हमारे संविधान निर्माताओं और सरदार पटेल जैसे राष्ट्र-निर्माताओं ने जनता और लोक सेवाओं से की जाने वाली अपेक्षाओं को बदल दिया। बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर का लोक सेवा आयोगों से संबंधित प्रावधानों पर चर्चा में मूलभूत योगदान था। हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान का एक पूरा भाग 'सेवाओं और लोक सेवा आयोगों' के बारे में लिखा है। इससे पता चलता है कि संघ और राज्यों के लोक सेवा आयोगों की भूमिकाओं और कार्यों का कितना महत्व है।

सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के संवैधानिक आदर्श तथा दर्जे और अवसर की समानता लोक सेवा आयोगों के कार्यप्रणाली के लिए अत्यंत प्रासंगिक हैं। संविधान की प्रस्तावना, सार्वजनिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता का मौलिक अधिकार तथा लोक कल्याण को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक व्यवस्था सुरक्षित करने के लिए राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत लोक सेवा आयोगों का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

लोक सेवा आयोगों को न केवल अवसर की समानता के आदर्श का पालन करना चाहिए बल्कि सही-सही परिणामों के लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास भी करना चाहिए। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि सेवा आयोग 'परिवर्तन के वाहक' हैं और आयोगों द्वारा समानता और निष्पक्षता को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। मैं इस परिवर्तन की दिशा में उनके योगदान को स्वीकार करती हूँ।

संघ लोग सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोगों द्वारा चयनित लोक सेवकों ने अपने प्रयासों से हमारे राष्ट्र निर्माताओं के सपनों को एक बड़ी सीमा तक पूरा किया है। मैं संघ लोग सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोगों के भूतपूर्व और वर्तमान सभी अध्यक्षों और उनकी टीम की उपलब्धियों के लिए प्रशंसा करती हूँ।

भारत का एक महत्वपूर्ण आर्थिक और राजनीतिक शक्ति बन पाना देश के लोक सेवा आयोगों द्वारा चयनित और प्रशिक्षित सिविल सेवकों के अहम योगदान से संभव हुआ है। आप अपने आयोगों के माध्यम से भारत के विकास और प्रगति की यात्रा में योगदान दे रहे हैं।

देवियो और सज्जनो,

संघ लोग सेवा आयोग हमारे सबसे विश्वसनीय सरकारी संस्थानों में शामिल है। निष्पक्ष चयन प्रणाली और सिविल और सार्वजनिक सेवाओं के लिए कार्यरत उच्चपेशेवर टीम बनाने में इसका योगदान व्यापक रूप से स्वीकार्य है। विभिन्न राज्य लोक सेवा आयोगों ने भी अपने-अपने राज्यों में योगदान दिया है। इस प्रकार संघ लोग सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोग अपने संवैधानिक जिम्मेदारी को निष्ठापूर्वक निभा रहे हैं।

'स्थायी कार्यपालिका' या लोक सेवा आयोगों द्वारा चयनित लोक सेवकों के समूह द्वारा शासन चलाने के लिए आवश्यक निष्पक्षता, निरंतरता और स्थिरता प्रदान की जाती है। राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर जन-उन्मुख नीतियों को लागू करने के लिए स्थायी कार्यपालिका के अंग लोक सेवकों की सत्यनिष्ठा, संवेदनशीलता और उनकी सक्षमता अहम होती है।

मेरा मानना ​​है कि लोक सेवा आयोगों को भर्ती किए जाने वाले उम्मीदवारों की ईमानदारी और सत्यनिष्ठा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए। ईमानदारी और सत्यनिष्ठा सर्वोपरि हैं और इनसे समझौता नहीं किया जा सकता। कौशल और क्षमताओं की कमी को सीखने की प्रक्रिया से गुजरने और कई अन्य माध्यमों से दूर किया जा सकता है। किन्तु सत्यनिष्ठा की कमी होने से गंभीर चुनौतियां उत्पन्न हो जाती हैं, जिनका समाधान करना असंभव हो जाता है। लोक सेवा आयोगों को ऐसे साधन और माध्यम तलाशने होंगे जो उम्मीदवारों के नैतिक दृष्टिकोण को समझने में सहायक हों।

महत्व की दृष्टि से देखा जाए ते संवेदनशीलता का गुण सत्यनिष्ठा के जीवन- मूल्य से जुड़ा है। लोक सेवक के रूप में अपनी सेवाएं देने के इच्छुक युवाओं का हाशिए पर पड़े और कमजोर वर्गों के लिए काम करने का स्वभाव होना चाहिए। हमारे लोक सेवकों को महिलाओं की जरूरतों और आकांक्षाओं के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होना चाहिए। लोक सेवा आयोगों द्वारा 'लैंगिक संवेदनशीलता' को महत्व दिया जाना चाहिए।

लोक सेवा आयोगों को तकनीकी के क्षेत्र में सामने आने वाली चुनौतियों का पूर्वानुमान लगाने, पारदर्शिता और विश्वसनीयता बढ़ाने के साथ-साथ विश्व स्तर के लोक सेवक तैयार करने होंगे।

देवियो और सज्जनो,

मेरा मानना है कि इस सम्मेलन से विभिन्न लोक सेवा आयोगों के अध्यक्षों को सहयोग बढ़ाने और सर्वोत्तम प्रथाओं का आदान-प्रदान करने का अवसर मिला है। मुझे बताया गया है कि इस सम्मेलन में प्रौद्योगिकी, कानूनी पहलुओं और भर्ती की पूरी प्रक्रिया को अधिक प्रभावशाली बनाने से संबंधित मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जाएगा। मुझे आशा है कि सम्मेलन में किए जाने वाले विचार-विमर्श से आयोगों को महत्वपूर्ण मुद्दों के लिए उपयोगी और भविष्योन्मुखी समाधान मिलेंगे।

भारत, विश्व की तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है और विशाल विविधता वाला देश है, इसलिए हमारी सभी स्तरों पर अत्यंत प्रभावी शासन प्रणाली होनी चाहिए। हमारे देश का निकट भविष्य में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य है। हम 2047 तक 'विकसित भारत' के लक्ष्य को प्राप्त करने की ओर भी बढ़ रहे हैं।।

मुझे पूरा विश्वास है कि लोक सेवा आयोग अपनी जिम्मेदारियों को निरंतर निभाते रहेंगे और ऐसे लोक सेवकों का चयन और उनका मार्गदर्शन करेंगे जो भविष्य के लिए तैयार टीम बनें। ऐसे कुशल लोक सेवक जो अनुरूपता के साथ नवाचार, स्थिरता के साथ रचनात्मकता, निरंतरता के साथ तीव्र आधुनिकीकरण तथा सावधानीपूर्वक निर्णायक क्षमता का उत्कृष्ट उदाहरण बनें।

मैं कामना करती हूं संघ लोग सेवा आयोग और सभी राज्य लोक सेवा आयोग राष्ट्र निर्माण के प्रयासों में निरंतर सफलता प्राप्त करें। मैं आप सभी के उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हूं।

धन्यवाद!
जय हिंद!
जय भारत!

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