भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का आदि जगद्गुरु श्री शिवरात्रिश्वर शिवयोगी महास्वामीजी के 1066वें जयंती समारोह के उद्घाटन के अवसर पर संबोधन
मालवल्ली : 16.12.2025
डाउनलोड : भाषण
(हिन्दी, 63.13 किलोबाइट)
मैं आदि जगद्गुरु श्री शिवरात्रिश्वर शिवयोगी महास्वामीजी की जयंती मनाने के लिए यहां एकत्र आप सब को हार्दिक शुभकामनाएं देती हूं। इस महान संत के सम्मान में आयोजित इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में शामिल होकर मैं धन्य महसूस कर रही हूं। उनका जीवन, दृष्टिकोण और शिक्षाएं एक हजार वर्ष से अधिक समय के बाद भी अनगिनत लोगों को प्रेरित और मार्गदर्शन कर रही हैं।
युगों-युगों से संतों ने अपने ज्ञान और करुणावश मानवता को आलोकित किया है। उन्होंने हमें जीवनभर यह सिखाया कि सच्ची महानता अधिकार मिलने या धन में नहीं बल्कि त्याग, सेवा और आध्यात्मिक क्षमता में निहित है। ऐसे महान संतों में आदि जगद्गुरु श्री शिवरात्रिश्वर शिवयोगी महास्वामीजी प्रकाश और प्रेरणा के सितारे के रूप में प्रकाशमान हैं।
दसवीं शताब्दी में, जगद्गुरु ने सुत्तूर में जगद्गुरु श्री वीरसिंहासन महासंस्थान मठ की स्थापना की। इसकी शुरूआत पवित्र आध्यात्मिक केंद्र के रूप में हुई, पर जल्दी ही यह सामाजिक परिवर्तन का एक शक्तिशाली केंद्र बन गया। यह मठ ज्ञान और विवेक के केंद्र के रूप में उभरा है जिसने लोगों में अनुशासन, भक्ति और करुणा के मूल्यों को जगाया है।
सुत्तूर की अटूट गुरु परंपरा इस महान विरासत की प्राण-शक्ति है। इसने पीढ़ियों से चले आ रहे आध्यात्मिक मूल्यों का संरक्षण किया है साथ ही उनका और अधिक विस्तार किया है। आदि जगद्गुरु महास्वामीजी कठिन आध्यात्मिक अनुशासनप्रिय थे और वे गहरे आंतरिक ज्ञान के अनुपम उदाहरण थे। जगद्गुरु डॉ. श्री शिवरात्रि राजेंद्र महास्वामीजी ने अपनी दूरदृष्टि और सेवा भावना से इस विरासत को आगे बढ़ाया। मुझे बताया गया है कि धर्म, शिक्षा, स्वास्थ्य और संस्कृति के क्षेत्र में किए गए उनके कार्यों से आज लाखों लोग लाभान्वित हो रहे हैं।
देवियो और सज्जनो,
कर्नाटक महान संत बसवेश्वर की पवित्र भूमि है, उनकी शिक्षाएं आज भी पूरी मानवता को सही राह दिखाती हैं। उनका मूल संदेश, “कायकवे कैलासा” (कर्म ही पूजा है), केवल एक विचार नहीं है बल्कि यह जीवन जीने का आधार है। मुझे यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई है कि सुत्तूर मठ के कार्यों में उनके इस दर्शन की झलक साफ दिखाई देती है, जहाँ आध्यात्मिक यात्रा और समाज सेवा साथ-साथ चलते हैं।
मठ के मार्गदर्शन और संरक्षण में जेएसएस महाविद्यालय भारत के ऐसे प्रतिष्ठित संस्थानों में शामिल हो रहा है जो शिक्षा और सामाजिक विकास को बढ़ावा दे रहे हैं। दुनिया भर में फैले अपने केंद्रों के माध्यम से, यह युवाओं का भविष्य संवारने, स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने, महिलाओं को सशक्त बनाने, ग्रामीण समुदायों का उत्थान करने, संस्कृति का संरक्षण करने तथा समावेशी समाज की नींव को मजबूत करने का कार्य कर रहा है। सामाजिक विकास में सुत्तूर मठ का योगदान महत्वपूर्ण रहा है।
देवियो और सज्जनो,
आज के तेजी से बदलते और अनिश्चितता के दौर में, समाज में भाईचारा, ईमानदारी और युवाओं को सही दिशा देने के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शन बहुत जरूरी है। जैसे-जैसे हम 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं, हमें प्रौद्योगिकी की ताकत और मूल्यों की शक्ति दोनों की आवश्यकता होगी। विकसित भारत के लिए आधुनिक शिक्षा सहित नैतिक ज्ञान, नवाचार सहित पर्यावरणीय जिम्मेदारी, आर्थिक विकास सहित सामाजिक समावेश और प्रगति के साथ करुणा को भी साथ लेकर चलना है। भारत सरकार इसी समग्र दृष्टिकोण के साथ कार्य कर रही है। सुत्तूर मठ जैसे संस्थानों को इस राष्ट्रीय लक्ष्य को प्राप्त करने में अहम भूमिका निभानी है।
हमारे आध्यात्मिक संस्थान हमें उन मूल्यों की याद दिलाते हैं जो हम सबको जोड़ते हैं—जैसे करुणा, सहनशीलता, आपसी सम्मान और जिम्मेदारी। ये सब केवल प्राचीन बातें नहीं हैं, बल्कि एक शक्तिशाली और शांतिपूर्ण आधुनिक दुनिया बनाने की जरूरते हैं। भारत सरकार एक ऐसा भविष्य बनाने के लिए प्रतिबद्ध है जहाँ सेवा और मानवीय सम्मान सबसे ऊपर हों।
हमारे युवा - उनकी ऊर्जा, रचनात्मकता, मूल्य और चरित्र हमारी सबसे बड़ी ताकत है। भारत का भविष्य केवल उनके कौशल और ज्ञान से नहीं बल्कि उनकी ईमानदारी और उद्देश्य की भावना से बनेगा। मेरा सुत्तूर मठ जैसे संस्थानों से आग्रह है कि युवाओं को प्रेरित करते रहें और भारत के भविष्य के निर्माताओं का मार्गदर्शन करते रहें। आदि जगद्गुरु श्री शिवरात्रिश्वर शिवयोगी महास्वामीजी की जयंती मनाना धर्म और सेवा के मार्ग पर चलने के हमारे संकल्प को और मजबूत करता है।
मैं प्रार्थना करती हूँ कि महास्वामीजी की कृपा इस मठ पर बनी रहे, ताकि यह क्षेत्र और हमारा पूरा देश शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक शक्ति की राह पर आगे बढ़ता रहे।
धन्यवाद!
जय हिंद!
जय भारत!
