भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन सभा के आठवें सत्र के प्रारम्भिक सत्र में संबोधन
नई दिल्ली : 28.10.2025
डाउनलोड : भाषण
(हिन्दी, 549.27 किलोबाइट)

आज अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन सभा के आठवें सत्र में आप सब के बीच उपस्थित होकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। भारत को गर्व है कि मेज़बान देश और आईएसए सभा के वर्तमान अध्यक्ष के रूप में सदस्य देश एक साझा मंच पर उपस्थित हुए हैं। आईएसए मानवता की समावेशिता, सम्मान और सामूहिक समृद्धि के स्रोत के रूप में सौर ऊर्जा का प्रयोग करने की साझा आकांक्षा का प्रतीक है।
प्राचीन काल से ही, भारत और दुनिया भर की सभ्यताएँ सूर्य को जीवन और ऊर्जा के परम स्रोत के रूप में पूजती रही हैं। आज सुबह, छठ पूजा समारोह के तहत, भारत के विभिन्न हिस्सों में श्रद्धालुओं ने उगते सूर्य को अर्घ्य दिया और अपने परिवारों की खुशहाली और समृद्धि के लिए प्रार्थना की। कल, मैंने भी अस्त होते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया था। सूर्य हम सभी को जोड़ता है, और जब इसे एक साझा संसाधन के रूप में देखा जाता है, तो यह वैश्विक भलाई के लिए एक शक्तिशाली शक्ति बन जाता है।
देवियो और सज्जनो,
जलवायु परिवर्तन से पूरा विश्व प्रभावित हो रहा है और इस खतरे से निपटने के लिए तत्काल और ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। भारत जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए प्रतिबद्ध है और कड़े कदम भी उठा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) की स्थापना 2015 में की गई थी और इसका प्रथम सम्मेलन 2018 में नई दिल्ली में आयोजित किया गया था। सौर ऊर्जा को अपनाने और इसके उपयोग को प्रोत्साहित करके वैश्विक चुनौती से निपटने की दिशा में आईएसए एक महत्वपूर्ण कदम है।
सौर ऊर्जा एक प्राचीन सत्य को पुन:स्थापित करता है - कि सूर्य, ऊर्जा का सबके लिए खुला स्रोत है, जो सभी के लिए उपलब्ध है और इसका कोई स्वामी नहीं है। भारत सरकार की "सभी के लिए सौर उर्जा" पहल इसी अवधारणा पर आधारित है। सौर ऊर्जा केवल सुविधा संपन्न लोगों तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए। यह गरीब से गरीब लोगों को भी उपलब्ध हो और इससे प्रत्येक व्यक्ति के लिए आजीविका के नए अवसर खुलने चाहिए। बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा के उपयोग से यह सबके लिए सुलभ होती जाएगी, जिससे नागरिक एक स्वच्छ और अधिक न्यायसंगत धरा पर रह सकेंगे।
समावेश का विचार भारत की विकास यात्रा को परिभाषित करता है। सुदूर क्षेत्रों में घरों को रोशन करने का हमारा अनुभव, हमारे इस विश्वास की पुष्टि करता है कि ऊर्जा समानता सामाजिक समानता की नींव है। सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा मिलने से समाज सशक्त बनाता है, स्थानीय अर्थव्यवस्था का विकास होता है और ऐसे अवसर उपस्थित होते हैं जो बिजली की आपूर्ति तक सीमित नहीं हैं। इस प्रकार, सौर ऊर्जा केवल बिजली उत्पादन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सशक्तीकरण और समावेशी विकास के लिए भी आवश्यक है।
देवियो और सज्जनो,
समावेशी और सतत विकास के लिए हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी महत्वपूर्ण है। आईएसए की 'सोलर फॉर शी (महिलाओं के लिए सौर उर्जा सुविधा)' पहल नीतियों, वित्तपोषण और कौशल विकास जैसे क्षेत्रों में रणनीतिक कार्यक्रम के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने की एक स्वागत योग्य पहल है। यह खुशी की बात है कि भारत और अनेक सदस्य देशों में, महिलाएँ सौर इंजीनियर, उद्यमी और प्रशिक्षक के रूप में कार्य कर रही हैं। वे छोटे ग्रिड का रखरखाव कर रही हैं, सौर पंप चला रही हैं और अपने क्षेत्रों में रोशनी पहुंचा रही हैं।
महिलाओं के नेतृत्व से सौर ऊर्जा से कार्बन उत्सर्जन तो कम हुआ ही है बल्कि लैंगिक असमानता भी दूर हुई है। मुझे विश्वास है कि महिलाओं के हाथों में ऊर्जा प्रबंधन आने से निश्चित रूप से समुदायों के जीवन में परिवर्तन होगा।
देवियो और सज्जनो,
भारत स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता और पवन ऊर्जा में चौथे स्थान पर है। सौर ऊर्जा उत्पादन में हम तीसरे स्थान पर है। अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में हमारी प्रगति से देश की प्रतिबद्धता और सुदृढ़ नीतिगत ढाँचे का पता चलता है। यह गर्व की बात है कि भारत की स्थापित सौर क्षमता 120 गीगावाट से ज्यादा हो गई है। यह वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म क्षमता तक पहुँचने के भारत के दीर्घकालिक लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालाँकि, हम यहीं नहीं रुक गए हैं। भारत का लक्ष्य वर्ष 2050 तक न केवल अपने स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करना है, बल्कि एक ऐसा केंद्र बनना भी है जहां वैश्विक सौर माँग आएं और हम नवाचार, विनिर्माण और ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा दें।
सतत विकास के लिए जलवायु संबंधी कार्रवाई और ग्रामीण समृद्धि के बीच तालमेल बनाकर चलना आवश्यक है। प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान से किसानों की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित होने के साथ-साथ 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से विद्युत शक्ति की स्थापित क्षमता में हिस्सेदारी को 40 प्रतिशत तक बढ़ाने की भारत की प्रतिबद्धता को भी पूरा कर रहा है।
प्रिय प्रतिनिधियो,
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन वैश्विक सौर सुविधा, लघु द्वीपीय विकासशील देश मंच, अफ्रीका के सौर मिनी-ग्रिड और उभरते डिजिटल नवाचार में उल्लेखनीय प्रगति कर चुका है। अगला चरण सबको साथ लेकर चलना होना चाहिए और यह सुनिश्चित होना चाहिए कि इस सौर क्रांति में कोई भी महिला, कोई भी किसान, कोई भी गाँव और कोई भी छोटा क्षेत्र अथवा द्वीप पीछे न छूट जाए। भारत सभी ISA सदस्य देशों के साथ मिलकर एक सौर ऊर्जा आधारित विश्व बनाने के लिए प्रतिबद्ध है—जिसमें सबसे छोटे द्वीप से लेकर सबसे बड़े महाद्वीप तक हर क्षेत्र तक समृद्धि पहुंचे।
यह सभा जैसे-जैसे विचार-विमर्श करेगी, मैं सभी सदस्य देशों से आग्रह करना चाहूंगी कि आधारभूत संरचना से आगे भी सोचने और लोगों के जीवन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। इस कार्यक्रम के दौरान एक ऐसी सामूहिक कार्य योजना तैयार की जानी चाहिए जिससे सौर ऊर्जा से रोज़गार सृजन, महिला नेतृत्व, ग्रामीण आजीविका और डिजिटल समावेशन को बढ़ावा मिले। हमारी प्रगति का आकलन केवल मेगावाट बढ़ने से नहीं बल्कि समृद्ध हुए जीवन, परिवारों की सुदृढ़ता और समाज में होने वाले परिवर्तनों की संख्या से होना चाहिए। प्रौद्योगिकी विकास और नवीनतम एवं उन्नत तकनीकों का लाभ सबको मिले इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि अधिकतम लाभ मिल सके। जैसे-जैसे हम बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा संयंत्रों का विस्तार कर रहे हैं, हमें यह सुनिश्चित करना है कि क्षेत्र का पारिस्थितिक संतुलन बना रहे क्योंकि पर्यावरण संरक्षण से ही हरित ऊर्जा को अपनाया जा सकता है।
अपने साझा भविष्य को ध्यान में रखते हुए, हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम सूर्य के प्रकाश का बुद्धिमानी से उपयोग करें और उसे समान रूप से साझा करें। हमें अपने देशों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए और केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी और अधिक समर्पण के साथ कार्य करना चाहिए। मुझे विश्वास है कि इस सभा में किए जाने वाले विचार-विमर्श और लिए जाने वाले निर्णय से सौर ऊर्जा के उत्पादन के लिए महत्पूर्ण होंगे और एक समावेशी और समतामूलक विश्व के निर्माण में योगदान देंगे। आइए, हम सब मिलकर एक उज्ज्वल, हरित और अधिक समावेशी भविष्य के निर्माण के लिए कार्य करें!
धन्यवाद,
जय हिंद!
जय भारत!
