भारत की माननीय राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु द्वारा मद्रास विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में संबोधन।

चेन्नई : 06.08.2023

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भारत की माननीय राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु द्वारा मद्रास विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में संबोधन।

मुझे आज यहां मद्रास विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में उपस्थित होकर खुशी हो रही है। मैं, पदक विजेताओं और आज स्नातक होने वाले सभी विद्यार्थियों को बधाई देती हूं। मैं इस अवसर पर गौरवान्वित माता-पिता, अभिभावकों और संकाय सदस्यों को भी बधाई देती हूं, जो उनके लिए भी खुशी का क्षण है।

मैं, ज्ञान और शैक्षणिक उत्कृष्टता की खोज के प्रति प्रतिबद्धता के लिए मद्रास विश्वविद्यालय के पूर्व और वर्तमान संकाय सदस्यों, कर्मचारियों और अधिकारियों की सराहना करती हूं। यह क्षेत्र सभ्यता एवं संस्कृति का उद्गम स्थल रहा है। संगम साहित्य की समृद्ध परंपरा भारत की अनमोल विरासत है। तिरुक्कुरल में संरक्षित महान ज्ञान सदियों से हम सभी का मार्गदर्शन करता आ रहा है। महान काव्य भक्ति परंपरा तमिलनाडु में शुरू हुई और इसे परिव्राजक संतों द्वारा उत्तर भारत की ओर ले जाया गया। तमिलनाडु की मंदिर वास्तुकला, प्रतिमा और मूर्तियां मानव उत्कृष्टता के प्रति श्रद्धांजलि हैं। अपनी अत्यंत समृद्ध सांस्कृतिक विरासत पर गर्व करते हुए, युवा विद्यार्थियों को 21वीं सदी के ग्लोबल नॉलेज सोसाइटी का महत्वपूर्ण हिस्सा बनना होगा।

देवियो और सज्जनो,

मुझे बताया गया है कि इस विश्वविद्यालय और इससे संबद्ध महाविद्यालयों में वर्तमान में लगभग 1,85,000 छात्र पढ़ रहे हैं। इन छात्रों में 50 फीसदी से ज्यादा छात्राएं हैं। मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि आज स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले 105 विद्यार्थियों में से 70 प्रतिशत लड़कियाँ हैं। मद्रास विश्वविद्यालय महिला-पुरुष समानता का एक ज्वलंत उदाहरण है। लड़कियों की शिक्षा में निवेश करके, हम अपने देश की प्रगति में निवेश कर रहे हैं। शिक्षित महिलाएं अर्थव्यवस्था में अधिक योगदान दे सकती हैं, विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व प्रदान कर सकती हैं और समाज पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं।

प्यारे विद्यार्थियो,

वर्ष 1857 में स्थापित, आपके विश्वविद्यालय को भारत के सबसे पुराने आधुनिक विश्वविद्यालयों में से एक होने का गौरव प्राप्त है। इस विश्वविद्यालय ने ज्ञान के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह सामाजिक परिवर्तन और प्रगति का उत्प्रेरक रहा है।

165 वर्षों से अधिक की अपनी यात्रा के दौरान, आपके विश्वविद्यालय ने शिक्षा के उच्च मानकों का पालन किया है और एक ऐसा वातावरण प्रदान किया है जो बौद्धिक जिज्ञासा और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देता है। यह सीखने का उद्गम स्थल रहा है, यहाँ से अनगिनत विद्वान, नेता और दूरदर्शी व्यक्तित्व निकले हैं। उन्होंने वैश्विक संदर्भ में शैक्षिक दुनिया को भी प्रभावित किया है। आपके विश्वविद्यालय ने भारत के दक्षिणी क्षेत्र में कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों की स्थापना और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए एक प्रकाश स्तंभ के रूप में भी काम किया है।

आपके विश्वविद्यालय का, समृद्ध इतिहास है और इसकी गौरवशाली विरासत है। यह बहुत गर्व की बात है कि भारत के छह पूर्व राष्ट्रपति इस विश्वविद्यालय के विद्यार्थी थे और उन्हीं गलियारों में चले थे जिनसे आप आज गुजरते हैं।

मैं, इस विश्वविद्यालय के अपने प्रतिष्ठित पूर्ववर्तियों - डॉ. एस. राधाकृष्णन, श्री वी.वी. गिरि, श्री नीलम संजीव रेड्डी, श्री आर. वेंकटरमन, श्री के.आर. नारायणन और डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का आदरपूर्वक स्मरण करती हूँ। प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी, जिन्होंने भारत के पहले गवर्नर जनरल के रूप में भी कार्य किया, श्री चक्रवर्ती राजगोपालाचारी इसी विश्वविद्यालय में विद्यार्थी रहे हैं।

सर सी.वी. रमन और डॉ. एस. चन्द्रशेखर, नोबेल पुरस्कार विजेता और इस विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने विज्ञान की दुनिया में असाधारण योगदान दिया है। भारत के दो मुख्य न्यायाधीशों, न्यायमूर्ति एम. पतंजलि शास्त्री और न्यायमूर्ति के. सुब्बाराव ने न्यायशास्त्र के क्षेत्र को बहुत बड़ा योगदान दिया है। इस विचार मात्र से कि आपके विश्वविद्यालय में ऐसे महान व्यक्तित्व रहे हैं, आपको सीखने और राष्ट्र निर्माण में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए।

मुझे भारत कोकिला श्रीमती सरोजिनी नायडू और अदम्य साहसी श्रीमती दुर्गाबाई देशमुख की स्मृतियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए गर्व अनुभव हो रहा है। वे भी इसी विश्वविद्यालय की विद्यार्थी थीं। ये दोनों महान महिलाएँ अपने समय से बहुत आगे थीं। इन महान महिलाओं ने कई भारतीय पीढ़ियों को प्रेरणा दी है और भविष्य की पीढ़ियों को भी प्रेरणा देती रहेंगी। मद्रास विश्वविद्यालय के सभी छात्रों, विशेषकर छात्राओं को उनकी असाधारण कहानियों से विशेष प्रेरणा लेनी चाहिए।

देवियो और सज्जनो,

पिछले महीने, मैंने विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों के प्रतिष्ठित पूर्व छात्रों के एक समूह से बातचीत की, जिन्होंने शैक्षणिक संस्थानों को बड़ा अंशदान दिया है। मुझे शिक्षा और समाज के हित में योगदान देने वाले प्रमुख पूर्व छात्रों और दानदाताओं से मिलकर प्रसन्नता हुई। इस संदर्भ में, मद्रास विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों को उत्कृष्टता के वैश्विक केंद्र के रूप में इसके विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। विश्वविद्यालय ने उनकी सफलता में कई तरह से योगदान दिया है, इसलिए उन्हें अपने मातृ संस्थान को कुछ वापस देने के लिए प्रयास करना चाहिए। पूर्व छात्र युवा छात्रों को मार्गदर्शन दे सकते हैं। विश्वविद्यालय को संस्थान की बेहतरी के लिए पूर्व छात्रों से संपर्क कर उनका सहयोग लेना चाहिए।

देवियो और सज्जनो,

मद्रास विश्वविद्यालय ने अनुसंधान और अकादमिक सुगढ़ता की संस्कृति को बढ़ावा दिया है। इसने कुशल मानव संसाधनों का विकास किया है जो विभिन्न उद्योगों और क्षेत्रों को चला रहे हैं। मैं, विश्वविद्यालय से अत्याधुनिक अनुसंधान में अधिक निवेश करने, अंतर-विषयक अध्ययन को प्रोत्साहित करने और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने का आग्रह करूंगी। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग और डेटा एनालिटिक्स जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों को अपनाकर इस विश्वविद्यालय को वैश्विक प्रतिभा को आकर्षित करने वाले संस्थान के रूप में तैयार होना है। मद्रास विश्वविद्यालय को देश और दुनिया के सामने आने वाली समस्याओं का लर्निंग-बेस्ड समाधान खोजने में सबसे आगे रहना होगा।

देवियो और सज्जनो,

मैं, इस अवसर पर मेरे दिल के करीब एक मुद्दे पर फिर से जोर देना चाहती हूं जो हमारे युवा छात्रों की भलाई हो सकती है। आज के अत्यधिक प्रतिस्पर्धी माहौल में, पढ़ाई में आगे रहने का दबाव, अच्छे संस्थानों में प्रवेश न पाने का डर, प्रतिष्ठित नौकरी न पाने की चिंता और माता- पिता और समाज की अपेक्षाओं का बोझ, हमारे युवाओं में अत्यधिक मानसिक तनाव पैदा करता है। यह आवश्यक है कि हम इस मुद्दे के समाधान के लिए आगे आएँ और समाज में ऐसा वातावरण बनाएं जो हमारे विद्यार्थियों के समग्र विकास और कल्याण को बढ़ावा दे। मैं, सभी विद्यार्थियों से अपील करती हूं कि कभी भी चिंता को अपने ऊपर हावी न होने दें। हमेशा कोई न कोई विकल्प या अवसर मौजूद होता है जो कुछ समय तक दिखाई नहीं देता। अपनी क्षमताओं पर भरोसा रखें और आगे बढ़ते रहें।

माता-पिता, शैक्षणिक संस्थान और संकाय सदस्यों को, विद्यार्थियों के सामने आने वाली कई चुनौतियों से निपटने में मदद करने के लिए एक साथ आगे आना चाहिए। शैक्षणिक संस्थानों को ऐसा माहौल बनाना चाहिए जो दोतरफा संचार को बढ़ावा दे, जहां छात्र निर्णय से डरे बिना अपने डर, चिंताओं और संघर्षों पर चर्चा करने में सहज महसूस करें। हमें ऐसा माहौल तैयार करना है जिसमें हमारे युवा आत्मविश्वास और साहस के साथ चुनौतियों का सामना करने के लिए स्नेह, स्वयं को महत्वपूर्ण और सशक्त महसूस करें।

प्रिय विद्यार्थियो,

आप जब अपने जीवन के अगले चरण की शुरुआत करने जा रहे हैं, मेरा आप सब से आग्रह है कि आप अपने लक्ष्य ऊंचे रखें, लेकिन साथ ही, अपने लक्ष्यों का दबाव न लें। दृढ़ संकल्प और बिना किसी भय के अपने सपनों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करें। अपने संबोधन के अंत में, मैं महाकवि सुब्रमण्य भारती की उन कुछ अमर पंक्तियों का उल्लेख करूंगी, जिन्हें अक्सर उद्धृत किया जाता है क्योंकि वे सदा हमारे अंदर एक नई प्रेरणा का संचार करती हैं।

“मंदरम् कर्पोम्, विनय तंदरम् कर्पोम्    
वानय अलप्पोम्, कडल मीनय अलप्पोम्   
चंदिरअ मण्डलत्तु, इयल कण्डु तेलिवोम्   
संदि, तेरुपेरुक्कुम् सात्तिरम् कर्पोम्”

इसका अर्थ है:

“We will learn both scripture and science   
We will explore both heavens and oceans   
We will unravel the mysteries of the moon   
And we will sweep our streets clean too”

मुझे बहुत खुशी है कि आज शाम को मुझे महाकवि भारतियार के सम्मान में आयोजित एक समारोह में शामिल होने का अवसर प्राप्त हो रहा है।

प्रिय विद्यार्थियो,

मैं एक बार फिर आप सभी को आपके जीवन और करियर में एक प्रमुख उपलब्धि हासिल करने के लिए बधाई देती हूं। मुझे विश्वास है कि आप अपना और देश का भविष्य और उज्ज्वल करेंगे। भविष्य आपका है। मेरा आशीर्वाद आपके साथ है।

धन्यवाद,  
जय हिन्द!  
जय भारत!

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