मिस्र अरब गणराज्य के राष्ट्रपति महामहिम डॉ. मोहम्मद मोर्सी के सम्मान में आयोजित राज-भोज में माननीय राष्ट्रपति जी का अभिभाषण
राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली : 19.03.2013
महामहिम राष्ट्रपति मोहम्मद मोर्सी, मिस्र अरब गणराज्य के राष्ट्रपति,
श्री हामिद अंसारी, भारत के उप राष्ट्रपति,
डॉ. मनमोहन सिंह, भारत के प्रधानमंत्री,
देवियो और सज्जनो,
महामहिम, भारत की प्रथम राजकीय यात्रा करने पर मुझे आपका और आपके शिष्टमंडल के विशिष्ट सदस्यों का स्वागत करके अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। मिस्र के लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति के रूप में, आज यहां आपकी उपस्थिति विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
तहरीर चौक की ऐतिहासिक घटना को 2 वर्ष से ज्यादा का समय हो चुका है। भारत में हमने बेहद सराहना और सम्मान के साथ काहिरा में युवाओं की भीड़ को सेलमिया सेलमिया (शांति से, शांति से) का घोष करते हुए और हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के शब्दों को प्रतिध्वनित करते हुए देखा था। स्वयं गांधी ने, भारत के लम्बे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उपनिवेशवाद से लड़ने के मिस्र के अनुभव से प्रेरणा प्राप्त की थी और उनके मन में साद जगलोल जैसे नेताओं के प्रति उच्च सम्मान था। 1931 में लंदन में, एक सम्मेलन से लौटते हुए, उन्हें औपनिवेशिक प्रशासन ने पोर्ट सईद पर उतरने से रोक दिया था और इसके बावजूद उन्होंने मिस्र के लोगों को अपने संघर्ष में सफलता प्राप्त करने के लिए शुभकामना संदेश जारी किया था।
महामहिम, जैसा कि आपको भंली-भांति ज्ञात है, हमारे ऐतिहासिक संबंध बहुत पुराने हैं। ‘सामान्य काल’ से बहुत पहले, सम्राट अशोक के शिलालेखों में पटोलेमी II के शासन में मिस्र के साथ संपर्क का उल्लेख मिलता है। व्यापारियों, कारीगरों और दार्शनिकों ने एक दूसरे की सामासिक संस्कृतियों को समृद्ध करने के लिए बार-बार समुद्री यात्राएं की। इसलिए वास्तव में, हमारे रिश्तों में वाणिज्यिक और सांस्कृतिक संबंधों की प्रमुखता होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि विगत 5 वर्षों के दौरान, द्विपक्षीय व्यापार 5 बिलियन अमरिकी डॉलर से अधिक हो चुका है और वैश्विक आर्थिक मंदी के बावजूद विविध सेक्टरों की भारतीय कंपनियां मिस्र की स्थिरता और भविष्य में निरंतर निवेश कर रही हैं। आपकी यहां की यात्रा के दौरान, बहुत से समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं जो विभिन्न सेक्टरों में हमारे व्यापक सहयोग का संकेत है।
महामहिम, हमारा भविष्य मुख्यत: हमारे राष्ट्रों के युवाओं द्वारा निर्धारित किया जाएगा। भारत और मिस्र की संस्कृतियां प्राचीन हो सकती हैं परंतु हमारे लोग युवा हैं और उनकी आकांक्षाएं, उम्मीदें और शिकायतें हमारी प्रगति की दिशा तय करेंगी। अधिक आर्थिक अवसरों को उपलब्ध करवाने और हिंसा और असंतोष से हटाकर अपने युवाओं की ऊर्जा को सही दिशा में ले जाने का प्रयास करते हुए, हमें यह अहसास है कि यह कार्य साधारण नहीं है। हमें अपने समाजों के अंदर और अपने देशों के बीच संबंधों के नए तरीके खोजने होंगे। लोकतंत्र समता के बिना अधूरा है। तहरीर चौक पर इतने मजबूत ढंग से व्यक्त की गई ‘रोटी, सामाजिक न्याय और समानता’ की आकांक्षा सार्वभौमिक है।
मिस्र और भारत ने, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, यह समझते हुए, मिल-जुलकर कार्य किया है कि हमारे परस्पर जुड़े हुए विश्व में, चाहे वह जलवायु परिवर्तन हो, आतंकवाद या व्यापार से संबंधित खतरे और अवसर हों, ये सभी वास्तव में अतंरराष्ट्रीय मुद्दे हैं। हमें दक्षिण-दक्षिण सहयोग, विशेषकर गुटनिरपेक्ष आंदोलन तथा 77 के समूह को पुनर्जीवित करने में आपके सहयोग और भागीदारी का भरोसा है और हम वास्तविक रूप से प्रतिनिधित्वपूर्ण वैश्विक व्यवस्था के निर्माण में आपका सक्रिय सहयोग चाहते हैं।
वर्ष 1926 में, भारतीय कवि और मानवतावादी रवींद्रनाथ टैगोर एक व्याख्यान देने के लिए काहिरा आए थे। उन्हें अरब कवियों में सबसे प्रख्यात अहमद शाकी के निवास स्थान पर ठहराया गया था और उन्हें तब सुखद आश्चर्य हुआ जब बहुत से राजनीतिक नेता एक घंटे के लिए संसद का सत्र स्थगित करके उनका स्वागत करने के लिए वहां पहुंचे। टैगोर ने अपनी डायरी में इस घटना के बारे में लिखा था, ‘यह राजनीतिज्ञों द्वारा मेरे प्रति सम्मान और ज्ञान के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का एक नया तरीका था। ऐसा केवल पूरब में ही संभव था।’ टैगोर मिस्र को पूरब का एक ऐसा प्रतीक बता रहे थे जहां अरब और इस्लामी सभ्यता की शानोशौकत तथा ताकत के अधीन ज्ञान और विद्वता पर गर्व व्यक्त किया जाता था और जहां विचारों और व्यक्तिगत अधिकारों की स्वतंत्रता हमारे वर्तमान मानवाधिकारों से सदियों पूर्व मौजूद थी।
महामहिम, हमें विश्वास है कि यही मूल्य मिस्र में आपके विचारों और आपके कार्यों को, तथा पश्चिम एशिया की अधिकतर राजनीति को, जहां आपके प्रबुद्ध परामर्श की अत्यंत आवश्यकता है, प्रेरित करेंगे। फिलिस्तीनी लोगों की न्यायोचित आकांक्षाओं के सुस्पष्ट सहयोग देने में हम आपके साथ हैं, और इस लक्ष्य को साकार करने में आपके साथ मिलकर कार्य करने की उम्मीद कर सकते हैं।
महामहिम, दो वर्ष पहले, मिस्रवासियों ने लोकतंत्र का दीर्घ तथा कठिन पथ चुना। मैंने जानबूझकर पथ की उपमा दी है क्योंकि स्वतंत्रता के 65 वर्षों के बाद हम भारतीय जानते हैं कि लोकतंत्र न तो एक गंतव्य है और न ही परम सिद्धांत है। वास्तव में यह, मानव गरिमा और स्वतंत्रता के अनिवार्य मूल्यों के प्रति सदैव वफादार रहते हुए, स्वतंत्र संस्थाओं के निरंतर निर्माण तथा सतर्कता से विभिन्न तरह के समझौते करते हुए, की जाने वाली एक यात्रा की तरह है। और जैसे कोई यात्रा साथियों की उपस्थिति से और अधिक खुशनुमा हो जाती है, वैसे ही आज हम भारत में आपके महान राष्ट्र के साथ चलने के लिए तत्पर हैं। और हम उम्मीद कर सकते हैं कि हमारे समुदायों और हमारी संस्कृतियों को, अपने महान अतीत से आगे बढ़ते हुए, अधिक आदर्श भविष्य की ओर चलने से लाभ होगा।
महामहिम, इन्हीं शब्दों के साथ, मैं एक बार फिर आपका और आपके विशिष्ट शिष्टमंडल का स्वागत करता हूं और भारत में आपके सुखद प्रवास की कामना करता हूं। मुझे विश्वास है कि आपकी यात्रा, हमारे दोनों महान राष्ट्रों के बीच और अधिक सहयोग और घनिष्ठ संबंधों के नए युग का आरंभ होगी।
महामहिम, कृपया अपनी व्यक्तिगत खुशहाली तथा मिस्र अरब गणराज्य की मैत्रीपूर्ण जनता की प्रगति और समृद्धि के लिए मेरी शुभकामनाएं भी स्वीकार करें।