भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के 54वें दीक्षांत समारोह पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
पूसा, नई दिल्ली : 05.02.2016
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1. मैं भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान जो हमारे देश में कृषि अनुसंधान,शिक्षा और विस्तार की एक अग्रणी संस्था है,के 54वें दीक्षांत समारोह पर आज आपके बीच उपस्थित होकर बहुत प्रसन्न हूं। मैं उन छात्रों को बधाई देता हूं जिन्हें आज डिग्री प्रदान की जा रही है। इस अवसर पर मैं इन छात्रों की समझ और कौशल को आकार देने के लिए संकाय के सदस्यों को भी बधाई देता हूं।
2. वर्ष 1905में स्थापित आईएआरआई ने राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली को मानव संसाधन मुहैया कराने में एक अहम भूमिका निभाई है। अब तक आईएआरआई के8000 से भी अधिक छात्रों को स्नातकोत्तर अथवा पीएचडी की डिग्री दी गई है। आईएआरआई के अनेक पूर्व छात्र भारत और विदेश में महत्वपूर्ण संस्थाओं में कृषि अनुसंधान और शिक्षा के अभियान में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं।
देवियो और सज्जनो,
3. भारत के पास विश्व भूमि संसाधन का केवल3 प्रतिशत और जल संसाधन का 5 प्रतिशत है। तथापि भारतीय कृषि प्रणाली विश्व की आबादी के18 प्रतिशत का समर्थन करती है। ‘शिप-टू-माउथ’के स्तर से एक अग्रणी खाद्यान्न निर्यातक तक का बदलाव मुख्य रूप से भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान जैसे अग्रणी संस्थान के वैज्ञानिक विकास के कारण संभव हुआ है। इस संस्थान ने हरित क्रांति में प्रवेश करने और हमारे देश में एक जीवंत कृषि क्षेत्र निर्मित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। मैं राष्ट्र के प्रति समर्पित सेवाओं के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की सराहना करता हूं।
4. आईएआरआई ने हाल ही में अनेक महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों का विकास किया है जिससे किसानों को समृद्धि मिली। भारत का बासमती चावल निर्यात में आईएआरआई की अल्पावधिक उच्च उत्पादक बासमती चावल किस्मों के कारण क्रांति आई है। इस वर्ष पूसा बासमती की किस्में निर्यात अर्जन की 30,000करोड़ रुपये के 90 प्रतिशत से भी अधिक के लिए जिम्मेदार है। इससे किसानों को दो लाख रुपये प्रति हेक्टेयर के आधिक्य का लाभ हुआ। इसी प्रकार आईएआरआई गेहूं की किस्मों से परिणामत: पिछले वर्ष में तीन मिलियन टन के अतिरिक्त गेहूं उत्पादन हुआ है।
5. किसानों द्वारा आईएआरआई के संसाधन प्रबंधन,फार्म मशीनरी और पौध संरक्षण प्रौद्योगिकियों का वृहद रूप से प्रयोग किया जा रहा है। इससे संवर्धित आधान उपयोग दक्षता,फार्म लाभ और पर्यावरणीय स्थिरीकरण के परिणाम सामने आए हैं। आईएआरआई द्वारा विकसित वाइरस की पहचान हेतु‘माइक्रोऐरेचिप’और ‘एलिसा किट्स’जैसी नैदानिक तकनीकियों और गोलकृमि और कीटों के प्रबंधन हेतु नैनोटेक्नालॉजी-आधारित रसायनिक संरक्षण से पौध संरक्षण रसायनिकों के निवेश लागत में कमी होने की उम्मीद है। धान से मीथेन प्रसारण पर आईएआरआई द्वारा जलवायु परिवर्तन और शांति अनुसंधान जलवायु परिवर्तन,उपयुक्त रणनीति के विकास और समझौतों में भारत के हितों की रक्षा करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
मित्रो,
6. कृषि स्थिरीकरण के लिए खराब मृदा स्वास्थ्य और शुद्ध पेयजल की उपलब्धता में कमी मुख्य चिंता का विषय बने हुए हैं। घटिया मृदा जैव सामग्री और उर्वरकों का असंतुलित उपयोग फसल उत्पादकता को प्रभावित कर रहे हैं।‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना’का उद्देश्य उरर्वरक उपयोग क्षमता के संवर्धन के लिए खेतवार और फसलवार उर्वरक की सिफारिश करना है। मेरे विचार से आईएआरआई प्रौद्योगिकियां जैसे‘पूसा मृदा परीक्षण और उर्वरक सिफारिश मीटर’,सुदूर संवेदन आधारित फसल और प्राकृतिक संसाधन मॉनीटरिंग और निर्णय समर्थन प्रणालियां इस मिशन में महत्वपूर्ण रूप से योगदान दे सकती हैं। फसल प्रयुक्त उर्वरक का23 प्रतिशत उपयोग शेष77प्रतिशत पर्यावरण की क्षति के लिए जिम्मेदार है। उर्वरक उपयोग की क्षमता को और अधिक बढ़ाने हेतु पोषक स्तर की पहचान और उर्वरकों की सिफारिश करने के लिए पौध उत्तक विश्लेषण पर आधारित आसान तरीकों की आवश्यकता है।
7. कृषि में जल उपयोग दक्षता संवर्धन पर भी बल दिया जा सकता है। इस संदर्भ में‘कम पानी अधिक फसल’एक मिशन है जिसका उद्देश्य जल उत्पादकता में सुधार करना है। हमें स्मार्ट जल उपयोग के लिए प्रौद्योगिकी समाधान की आवश्यकता है। यह जानना सुखद है कि अनेक जलवार प्रौद्योगिकियां जैसे कि उपयुक्त सिंचाई,पूसा हाइड्रोजेल, शून्य जोताई गेहूं प्रणाली,प्रत्यक्ष बीजदार चावल प्रणाली और अल्पावधिक फसल किस्म आईएआरआई द्वारा विकसित की गई है। वैज्ञानिकों को निरंतर जल दक्षता विकास और सूखा-सह्य किस्मों के विकास करने के लिए निरंतर प्रयास करने चाहिए।
8. अनुपयुक्त उपचार और अनियोजित कच्चे मैले जल का प्रयोग कृषि स्थिरीकरण को कुप्रभावित कर रहा है जिससे उपभोक्ता और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा हो रहा है। आईएआरआई की पर्यावरण के अनुकूल अवशिष्ट जल उपचार प्रौद्योगिकी,को पेरी शहरी कृषि के लिए सुरक्षित जल पहुचाने और मैले जल के निष्काषन की समस्या को कम करने के योग्य भी होना चाहिए।
मित्रो,
9. भारत में दालों और खाद्य तेल का उत्पादन अपर्याप्त रहा है जिससे हमें आयात पर निर्भर रहना पड़ता है। भविष्य में आंशिक रूप से इन खाद्य सामग्रियों की मांग बढ़ने की संभावना है। आईएआरआई ने गैर परंपरागत क्षेत्रों के लिए उपयुक्त सरसों की किस्म का विकास किया है जो तिलहन उत्पादन को प्रोत्साहित कर सकता है। संस्थान ने काबुली चने के अतिरिक्त समकालिक परिपक्वता अरहर,संकर और अन्य किस्मों के विकास कीभी पहल की है।मुझे विश्वास है कि ये प्रौद्योगिकियां हमारी घरेलू आवश्यकताओं को समग्र रूप से पूर्ण करने के लिए दालों और तिलहन की उत्पादकता में संवर्धन करेंगी।
10. भारत में तीन वर्ष से कम आयु के 43प्रतिशत बच्चे अल्पपोषण के शिकार हैं। एक बड़ी संख्या में बच्चे विटामिन ए की कमी के कारण भी कष्ट में हैं। बच्चों में कुपोषण,खाद्यान की कमी को पूरा करने के लिए खाद्यान्न को गुणवत्ता प्रोटीन और सूक्ष्मपोषण द्वारा पौष्टिक बनाया जाना चाहिए। मैं प्रसन्न हूं कि आईएआरआई ने गुणवत्ता प्रोटीन का,और लौह और जिंक वाले गेहूं, बाजरा और मसूर की किस्मों का विकास किया है और अनुवांशिक रूप से संशोधित प्रोविटामिन ए के साथ गोल्डन राइस का विकास किया है। इन प्रौद्योगिकियों को महिलाओं और बच्चों में कुपोषण कम करने के लिए तत्काल किसानों तक पहुंचाया जाना चाहिए।
मित्रो,
11. इतनी प्रगति होने के बावजूद,भारतीय कृषि अब भी पूर्णत: मौसम की पकड़ से बाहर है। वर्ष2013-14 जो कि एक सामान्य मॉनसून वाला वर्ष था,में 265 मिलियन टन के खाद्यान उत्पादन के रिकॉर्ड के बाद वर्ष2014-15 में उत्पादन स्तर 253 मिलियन टन नीचे गिर गया जबकि 12 प्रतिशत की वर्षा की कमी पंजीकृत की गई थी। प्रकृति इस वर्ष भी हमारे ऊपर मेहरबान नहीं रही। मॉनसून की कमी जिसके बाद फिर सूखा समय आ गया,से लगातार दूसरे वर्ष भी कृषि उत्पादन पर प्रभाव पड़ने वाला है। यह गंभीर चिंता का विषय है।
12. कुछ गंभीर प्रयास करने का समय आ गया है जैसा कि भारत में कृषि के अंतर्गत80 प्रतिशत क्षेत्र जलवायु परिस्थितियों जैसे कि सूखा,बाढ़ और चक्रवात के अधीन है। वैश्विक जलवायु परिवर्तन इन समस्याओं को और भी अधिक बढ़ा सकता है। आईएआरआई जैसे संस्थानों को टेक्नालॉजी,संशलेषित जीवविज्ञान,नैनोटेक्नोलॉजी,कंप्यूटेशनल बॉयलोजी,सिंथेटिक टेक्नालॉजी जैसे फ्रंटियर विज्ञान से इस अवसर पर फायदा उठाना चाहिए ताकि जलवायुरोधी प्रौद्योगिकी समाधानों का विकास किया जा सके। निधि आधान,विचारों का प्रेरित करके और तकनीकी सहायता के द्वारा कृषि तकनीकियों में नवान्वेषण और अभ्यास का समर्थन किया जाना चाहिए। किसानों की जोखिम उठाने की योग्यता को प्रोत्साहन मिलना चाहिए। किसानों के जोखिम को कवर करने के लिए हाल ही में लॉंच की गई फसल बीमा योजना प्रौद्योगिकी में लाभ पहुंचाएगी।
मित्रो,
13. हमारी आबादी के 50प्रतिशत से अधिक के लिए,कृषि जीविका स्रोत है। महात्मा गांधी ने एक बार कहा था, ‘धरती को खोदना और मृदा की रक्षा करना भूलने का अर्थ है अपने आप को भूलना’। तथापि कृषि की शुरुआत के लिए अधिक युवा आगे नहीं बढ़ रहे हैं। युवाओं को कृषि की ओर आकर्षित करने के लिए हमें ऐसी प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता है जो कृषि क्षेत्र को लाभकारी बना सके। कृषि संस्थानों में अनुसंधान को उत्पादन लागत कम करने,समस्त‘फील्ड टू प्लेट’खाद्य श्रृंखला में लाभ बढ़ाने और कठिन मेहनत को कम करने के लिए उच्चतर स्वचलन आरंभ करने के लिए केंद्रित होना चाहिए।
14. कृषि के वैश्वीकरण ने संसाधित खाद्य सामग्री की संभावना को कई गुणा बढ़ा दिया है। हमारे किसानों और कृषि उद्यमियों को इस अवसर का पूरा लाभ उठाना चाहिए। कृषि प्रौद्योगिकी विकास के लिए निवेश में बढ़ोतरी,ग्रामीण कृषि अवसंरचना, ऑन फार्म प्रोसेसिंग और मूल्य निर्धारण और भंडारण सुविधाओं की आवश्यकता है। कृषि विज्ञानिकों को उनके फार्मों को ऑन फॉर्म उत्पादन एवं प्रसंस्करण में परिवर्तन करने के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए। हमारी संस्थाओं में अनुसंधान से उन महत्वपूर्ण मसलों का समाधान होना चाहिए जो ग्रामीण कृषि व्यवसाय के विकास में अवरोध पैदा करते हैं। हाल ही में लॉंच किए गए‘स्टार्ट अप इंडिया’का ग्रामीण क्षेत्रों में प्रसार,कृषि आधारित उद्यमों की स्थापना में प्रोत्साहन दे सकता है। आईएआरआई का‘मेरा गांव मेरा गौरव’कार्यक्रम,जिसके अंतर्गत प्रत्येक वैज्ञानिक एक ग्राम को अपनाएगा,का उद्देश्य कृषि को निर्वाह कृषि से वाणिज्यिक कृषि उद्योग तक परिवर्तित करना होना चाहिए।
मित्रो,
15. हमारे देश में कृषि शिक्षा वैश्विक स्तर के सापेक्ष होनी चाहिए। उसके लिए हमें अत्याधुनिक अनुसंधान अवसंरचना सहित शक्तिप्रदत्त सक्षम संकाय का एक वृहताकार पूल बनाने की आवश्यकता है। शिक्षकों,शिष्यों और पेशावरों का एक मजबूत नेटवर्क,अच्छी कृषि कार्य-प्रणाली का प्रयोगशाला से कृषि मैदानों तक प्रसार में सुविधा प्रदान करेगा। यह किसानों की समस्याओं से संबंधित फीडबैक भी प्रदान करेगा जिससे हमारे संस्थानों में अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास के मार्ग खुलेंगे।
राष्ट्रपति ने कहा कि कृषि संस्थान वे केंद्र बिन्दु हैं जिनपर हमारे कृषि क्षेत्र और लोक कल्याण की सफलता निर्भर करती है। कार्यानिष्पादन का मापदंड उनके उत्पाद की गुणवत्ता है। आगामी कृषि क्रांति की अगुवाई में इन संस्थानों से योग्य,प्रतिबद्ध और उद्योगी व्यवसायिकों की आवश्यकता है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के छात्रों और पूर्व छात्रों को अवसर का लाभ उठाना चाहिए और कृषि बदलाव में योगदान देना चाहिए। मैं स्नातकोत्तर कर रहे छात्रों को उनके जीवन और करियर के लिए शुभकामनाएं देता हूं। मैं आईएआरआई के भावी परिश्रम के लिए इसकी तीव्र गति हेतु प्रार्थना करता हूं।
धन्यवाद।
जयहिन्द।