भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा वीडियो कान्फ्रेंसिंग से ‘एनर्जाइजिंग द हायर एजुकेशन इंस्टीट्यूट्स इन इंडिया’ विषय पर उच्च शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों को संबोधन
नई दिल्ली : 10.08.2015
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उच्च शिक्षा संस्थानों के प्रमुख, अन्य शैक्षिक और अनुसंधान संस्थानों के अध्यक्षगण,प्यारे विद्यार्थियो,
1. इस नए शैक्षिक सत्र के आरंभ में आपके साथ संवाद करने का अवसर प्राप्त करके मुझे प्रसन्नता हुई है। मैं विश्वविद्यालयों तथा अन्य उच्च शिक्षण केंद्रों के सभी नए विद्यार्थियों का स्वागत करता हूं। आपकी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए वर्ष में दो बार संबोधित करने की परंपरा मैंने जनवरी 2014में आरंभ की थी। इस ई-मंच के माध्यम से,जिसकी क्षमता को बढ़ाकर अब दुगुना कर दिया गया है,मेरे लिए कश्मीर से कन्याकुमारी, पश्चिम से पूर्व तथा पूर्वोत्तर के और अधिक श्रोताओं से संवाद करना संभव हो गया है। इसके लिए मैं राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क तथा राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र की टीमों का धन्यवाद करना चाहूंगा।
मेरे प्यारे विद्यार्थियो,
2. मैं आपको,डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के निधन से हुई अपूरणीय क्षति के साये में संबोधित कर रहा हूं। मेरे दो प्रख्यात पूर्ववर्तियों,डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन,एक दार्शनिक शिक्षक तथा डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम,एक वैज्ञानिक शिक्षक,ने शिक्षा के क्षेत्र में मेरे विचारों पर गहरा प्रभाव डाला है। जब हम उच्च शैक्षिक संस्थानों को उर्जावान करने पर चर्चा करते हैं तो हमें डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के इस कथन से मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिए, ‘शिक्षा इस दृष्टि से प्रदान करनी चाहिए कि हम कैसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं। हम मानव गरिमा और समानता के मूल्यों पर निर्मित एक आधुनिक लोकतंत्र के लिए प्रयास कर रहे हैं। ये केवल आदर्श हैं जिन्हें हमें जीती-जागती शक्ति बनाना होगा।’
3. भारत एक शाश्वत सभ्यता है,जो विरोधाभासों की भी भूमि है। यह सच्चाई है कि हमारी26प्रतिशत जनसंख्या निरक्षर है। फिर भी हमारी शिक्षा प्रणाली ने विश्व के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों का दूसरा विशालतम भंडार पैदा किया है। आज भी,देश के बहुत से गांव स्वच्छ पेयजल से वंचित हैं। परंतु हम किसी अन्य देश की तुलना में अमरीकी सूचना प्रौद्योगिकी फर्मों के लिए बड़ी मात्रा में सॉफ्टवेयर तैयार करते हैं। इस आकर्षक और जीवंत लोकतंत्र को और अधिक ऊंचाई पर ले जाने के लिए हमें उच्च शिक्षित और कुशल युवक-युवतियों की आवश्यकता है। यह हमारी उच्च शिक्षा प्रणाली के समक्ष चुनौती है।
मेरे प्यारे विद्यार्थियो,
4. जैसा कि डॉ. कलाम ने अपनी पुस्तक ‘इंडोमिटेबल स्पिरिट’में स्पष्ट किया है, 21वीं शताब्दी की शिक्षा प्रणाली पांच अवयवों पर आधारित होनी चाहिए - अनुसंधान और जांच,रचनात्मकता और नवान्वेषण,उच्चतम प्रौद्योगिकी के प्रयोग की क्षमता,उद्यमशीलता और नैतिक नेतृत्व। समसामयिक विश्व में हम इस सूचना के समुद्र में गोता लगा रहे हैं। इस सूचना को ज्ञान में और ज्ञान को प्रज्ञा में बदलने के लिए असाधारण कौशल की आवश्यकता होती है जिसे हमें अपने विद्यार्थियों को प्रदान करना चाहिए। उन्हें आजीवन शिक्षण के लिए तत्पर रहना चाहिए जो अब डिजीटल प्रौद्योगिकी के कारण और सरल हो गया है। हमारे विद्यार्थियों में एक जिज्ञासु प्रवृत्ति तथा अनुसंधान उन्मुख दृष्टिकोण पैदा करना होगा।
5. अपने आस-पास सूचनाओं की मात्रा पर आश्चर्यचकित होना आसान है। परंतु जब सूचना को नेटवर्क में रखा जाता है तो इसकी ताकत और उपयोगिता बढ़ जाती है। वर्तमान विश्व में ज्ञान का प्रबंधन व्यक्ति की क्षमता से बाहर हो गया है। विद्यार्थियों को यह सीखना चाहिए कि ज्ञान का सामूहिक रूप से प्रबंधन कैसे किया जाए। युवा पीढ़ी के लिए यह कौशल भी सीखना जरूरी है कि अपनी शिक्षण प्रक्रिया में मदद के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकियों का प्रयोग कैसे किया जाए। विश्वविद्यालयों को समुचित हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर से युक्त ऐसा माहौल तैयार करना चाहिए, जहां‘प्रेरित शिक्षकों’का ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सके। उद्यमशीलता एक अन्य गुण है जिसका हमें बचपन से ही अपने विद्यार्थियों में समावेश करना चाहिए। उन्हें सीखना चाहिए कि व्यवसाय के नैतिक तरीकों के मानदंडों के अंदर रहते हुए बड़ी उपलब्धियों के लिए किस प्रकार नपे-तुले जोखिम लिए जा सकते हैं।
6 . नेतृत्व कौशलों के निर्माण के लिए लोकतांत्रिक शासन ढांचों और प्रणालियों की गहरी समझ से युक्त मूल्यपरक शिक्षा आवश्यक है। मिशन प्रेरित भावी नेतृत्व के लिए देश का विकास तथा मानवता की बेहतरी दिशा निर्देशक सिद्धांत होने चाहिए। हमारी भावी पीढ़ी में रचनात्मक वर्षों के दौरान ‘हम कर सकते हैं’की भावना का समावेश करना होगा। उनकी प्रवृत्ति सही कार्य करने और कार्य को सही ढंग से करनी की होनी चाहिए।
मित्रो,
7. उच्च स्तरीय संस्थानों के शैक्षिक प्रबंधन को सुधारने के तात्कालिक उपाय जरूरी हैं। शिक्षण को और प्रभावी बनाने के लिए अध्यापन को परिष्कृत किया जाना चाहिए,पाठ्यक्रम को नियमित रूप से अद्यतन बनाया जाना चाहिए तथा मूल्यांकन तंत्र में सुधार किया जाना चाहिए। उन्हें,मूल क्षमताओं की पहचान करनी चाहिए तथा उत्कृष्टता केन्द्रों का विकास करना चाहिए।
8. उच्च शिक्षा क्षेत्र में पूरे विश्व में तीव्र बदलाव आ रहे हैं। उच्च शिक्षा की बढ़ती लागत तथा प्रौद्योगिकी नवान्वेषण से युक्त शिक्षा के इच्छुक लोगों के बदलते प्रोफाइल के कारण ज्ञान प्रसार के वैकल्पिक मॉडल सामने आ रहे हैं। 2008 में पहली बार आरंभ किए गए व्यापक मुक्त ऑनलाइन पाठ्यक्रम से विद्यार्थी ऑनलाइन व्याख्यान सुन सकते हैं और पाठ्यक्रम पढ़ सकते हैं तथा पारंपरिक शिक्षा की तुलना में बहुत कम लागत पर डिग्री हासिल कर सकते हैं।
मित्रो,
9. क्या एक भी विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय के बिना विश्व शक्ति बनना संभव है?विश्वविद्यालयों की दो प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय वरीयताओं के अंतर्गत सर्वोच्च200संस्थानों में भारत की एक भी प्रविष्टि नहीं है। मैं यह नहीं मान सकता कि700से ज्यादा विश्वविद्यालयों तथा36000कॉलेजों के साथ विश्व की दूसरी सबसे विशाल उच्च शिक्षा प्रणाली होने के बावजूद हमारे पास सचमुच एक भी उल्लेखनीय संस्थान नहीं हैं।
10. त्रुटि हमारे लापरवाहीपूर्ण नजरिए में है। वरीयता प्रक्रिया को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। उच्च स्थान प्राप्त होने से शैक्षिक समुदाय का मनोबल तथा विद्यार्थियों की प्रगति और रोजगार के और अधिक अवसर बढ़ सकते हैं। इससे भारत और विदेश के सर्वोत्तम शिक्षकों को आकर्षित करने तथा निरंतर गुणवत्ता वृद्धि के लिए मानदंड उपलब्ध करवाने में मदद मिल सकती है।
11. हमारे संस्थानों की उपलब्धियों को दर्शाने के लिए ठोस कार्रवाई की आवश्यकता है। संस्थानों को आंकडों के समन्वय के लिए नोडल प्राधिकरण स्थापित करने चाहिए। कुछ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों ने वरीयता प्रक्रिया से संबंधित विशेषज्ञता प्राप्त कर ली। वे अन्य संस्थानों के ज्ञान साझीदार के तौर पर कार्य कर सकते हैं। समवेत प्रयासों के परिणामस्वरूप आज भारत के9संस्थान ब्रिक्स क्षेत्र के सर्वोच्च50संस्थानों में शामिल हैं जिसमें से भारतीय विज्ञान संस्थान,बेंगलूरू पांचवें स्थान पर है। मुझे उम्मीद है कि ब्रिक्स वरीयता जैसी ही सफलता अन्य अंतरराष्ट्रीयता वरीयताओं में भी मिलेगी।
मित्रो,
12. हमारा देश पेय जल,स्वच्छता,ऊर्जा उपलब्धता,शहरीकरण तथा गरीबी जैसी समस्याओं से ग्रस्त है,जिनके लिए नवान्वेषी समाधानों की आवश्यकता है। इन चुनौतियों पर हमारे शिक्षा संस्थानों की प्रयोगशालाओं,बरामदों और कक्षाओं में कार्य होना चाहिए। दुर्भाग्यवश,अधिकांश संस्थानों में अनुसंधान काफी हद तक उपेक्षित है। मौलिक अनुसंधान का वातावरण मौजूद नहीं है। यह सामान्य उदासीनता कुछ संकेतकों में प्रदर्शित होती है। ब्राजील के710तथा चीन के 1020की तुलना में भारत में प्रति10लाख व्यक्तियों पर अनुसंधान और विकास के160अनुसंधानकर्ता हैं। उच्च प्रौद्योगिकी निर्यात में भी भारत का प्रदर्शन अच्छा नहीं है।
13. भारत में निर्माण अभियान का लक्ष्य निवेश को सुविधाजनक बनाना,नवान्वेषण प्रोत्साहित करना,कौशल विकास को बढ़ावा देना तथा सर्वोत्तम विनिर्माण अवसंरचना स्थापित करना है। हमारे विश्वविद्यालयों तथा इंजीनियरी और अनुसंधान संस्थानों को यह चुनौती स्वीकार करते हुए भारत को प्रौद्योगिकी आधारित उत्पाद का केन्द्र बनाना चाहिए। उन्हें अनुसंधान की संस्कृति का निर्माण करना चाहिए तथा सभी स्तरों पर अनुसंधान कार्यकलापों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
मित्रो,
14. हमारे उच्च शिक्षण संस्थानों को प्रमुख भागीदारों के साथ अपने संबंधों को बढ़ाना चाहिए। भारत में शिक्षा संस्थानों को प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ साझीदारियां विकसित करनी चाहिए। संकाय का आदान-प्रदान,सहयोगात्मक अनुसंधान तथा पाठ्यक्रम सामग्री और संसाधन व्यक्तियों जैसे शैक्षणिक संसाधनों का आदान-प्रदान दोनों के लिए लाभ के तरीके हो सकते हैं। हमारे संस्थानों में उद्योग संयोजन कक्षों की स्थापना तथा संचालन ढाचों में उद्योग विशेषज्ञों की नियुक्ति से पीठों के प्रायोजन,अनुसंधान परियोजनाओं के लिए सहयोग तथा विकास केंद्रों और प्रयोगशालाओं की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
15. पूर्व विद्यार्थियों का अपनी मातृ संस्था से भावनात्मक संबंध होता है। कोई संस्थान अपने शासी निकाय के जरिए शैक्षिक प्रबंधन के लिए अपने कुछ प्रतिष्ठित पूर्व छात्रों की विशेषज्ञता और अनुभव से लाभ उठा सकता है। उन्हें व्यवसाय और परियोजना मार्गदर्शन तथा पाठ्यक्रम निर्माण के लिए भी नियुक्त किया जा सकता है।
16. एक उच्च शिक्षा संस्थान को समग्र समाज के साथ संपर्क रखना होता है। आग्रह और प्रभाव की इसकी सौम्य शक्ति कक्षाओं से बाहर भी होती है। सर्वांगीण बदलाव के लिए आसपास के कुछ गांवों को गोद लेना तथा उन्हें आदर्श गावों में परिवर्तित करना एक श्रेष्ठ शुरुआत हो सकती है।
17. अपनी बात सपाप्त करने से पूर्व मैं महात्मा गांधी की यह सलाह उद्घृत करना चाहूंगा,जिसे हमें सदैव याद रखना चाहिए:‘किताबी शिक्षा का तब तक कोई महत्व नहीं है जब तक यह मजबूत चरित्र का निर्माण नहीं करती।’मैं आप सभी को एक बार पुन: एक और सुखद और सफल शैक्षिक वर्ष के लिए शुभकामनाएं देता हूं। अपना समय उपयोगी कार्यों,सार्थक अवसरों तथा महत्वपूर्ण उपलब्धियों में लगाएं।
धन्यवाद!