राष्ट्रपति जी ने कहा कि भारत को शिक्षा में अपने प्राचीन गौरव को पुन: प्राप्त करना होगा।
राष्ट्रपति भवन : 05.06.2014

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने इस बात पर निराशा व्यक्त की कि एक भी वर्तमान भारतीय शैक्षणिक संस्थान विश्व के सर्वोच्च 2000 शैक्षणिक संस्थानों में शामिल नहीं है जबकि ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी से ईसा की बारहवीं शताब्दी के 1500 वर्षों की अवधि के दौरान भारत विश्व में उच्च शिक्षा के क्षेत्रों में अग्रणी था।

यद्यपि उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया कि अपने प्राचीन गौरव को वापस लाना असंभव नहीं है, ‘‘यदि हम प्रेरक शिक्षकों की रचनाशील टीमों को तैयार करके; सूचना प्रौद्योगिकी के अधिकतम प्रयोग के माध्यम से; वैश्विक शिक्षा समुदाय के साथ संयोजन स्थापित करके; अनुसंधान आदि पर बल देकर इस दिशा में आवश्यक प्रयास करें तो परिणाम अवश्य आएंगे।’’ उन्होंने कहा कि कुछ संस्थानों ने पहले ही प्रयास आरंभ कर दिए हैं तथा प्रगति दिखाई दे रही है।

राष्ट्रपति आज (5 जून, 2014) कोलकाता में राष्ट्रीय शिक्षा परिषद, बंगाल द्वारा आयोजित आचार्य सतीश चन्द्र मुखर्जी की 150वीं जन्म जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे।

आचार्य जी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, राष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि इस महान शिक्षाविद के जीवन से कुछ शिक्षा ग्रहण करके, हमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा द्वारा अपनी शैक्षिक प्रणाली में सुधार करना चाहिए। राष्ट्रपति ने कहा कि सतीश चंद्र ने शिक्षा को अपना मिशन बनाया तथा अपनी संपूर्ण ऊर्जा को देश के आदर्श विद्यार्थी तैयार करने के लिए शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना में लगा दिया। डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जो सतीश चंद्र के विद्यार्थी थे, ने अपनी आत्मकथा में अपने शिक्षक और मार्गदर्शक के प्रति अपना आभार व्यक्त किया है। राष्ट्रपति ने उम्मीद जताई कि आचार्य सतीश चंद्र मुखर्जी के 150वें जन्म जयंती समारोह उनके विचारों और उद्देश्यों के प्रचार-प्रसार के तरीके खोजने का एक उपयुक्त अवसर होगा। उन्होंने लोगों से उन कार्यों के प्रति स्वयं को पुन: समर्पित करने का आह्वान किया जिनके लिए इस शिक्षाविद, सामाजिक विचारक और संघर्षकर्ता ने अपना जीवन समर्पित कर दिया।

पृष्ठभूमि

आचार्य सतीश चन्द्र मुखर्जी स्वामी विवेकानंद और ब्रह्मबांधव उपाध्याय के समकालीन थे। वह उन विख्यात लोगों के समूह में शामिल थे जो उन्नीसवीं शताब्दी में बंगाल में पैदा हुए थे। वह एक महान शिक्षक और एक उत्कृष्ट शिक्षाविद थे। सतीश चंद्र 1906 में, राष्ट्रीय परिषद के प्रथम कॉलेज—बंगाल राष्ट्रीय कॉलेज की स्थापना के पीछे की मुख्य शक्ति थे। इससे पहले 1897 में, उन्होंने प्रसिद्ध डॉन पत्रिका का संपादन और प्रकाशन आरंभ किया था।

यह विज्ञप्ति 1950 बजे जारी की गई।

समाचार प्राप्त करें

Subscription Type
Select the newsletter(s) to which you want to subscribe.
समाचार प्राप्त करें
The subscriber's email address.