राष्ट्रपति जी ने कहा कि भारत एशिया-प्रशांत में बड़ी भूमिका का वहन करने के लिए तत्पर है
राष्ट्रपति भवन : 10.02.2015

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने कल (9 फरवरी 2015) राष्ट्रपति भवन में सिंगापुर गणराज्य के राष्ट्रपति, महामहिम डॉ. टोनी तान केंग यम तथा श्रीमती मैरी तान का स्वागत किया।

डॉ. टोनी तान केंग यम का स्वागत करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि उनकी यह यात्रा द्विपक्षीय संबंधों के ऐसे ऐतिहासिक क्षणों में हो रही है जब भारत और सिंगापुर कूटनीतिक संबंधों की स्थापना की 50वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। भारत और सिंगापुर के बीच शानदार संबंध रहे हैं जो बहुआयामी हैं तथा जीवन के प्रत्येक पहलू से संबंधित हैं। सिंगापुर भारत का महत्वपूर्ण मित्र है। वह भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति का एक प्रमुख स्तंभ हैं। भारत आसियान के साथ अपने संबंधों की दिशा में सिंगापुर के योगदान की सराहना करता है। वह एशिया-प्रशांत में और बड़ी भूमिका वहन करने के लिए तत्पर है।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत और सिंगापुर के बीच चोलवंश के समय से ही ऐतिहासिक संबंध रहे हैं। भारत की स्वतंत्रता का एक प्रमुख अध्याय सिंगापुर में लिखा गया था। सिंगापुर में प्रवासी भारतीयों का बड़ा समुदाय दोनों देशों के बीच एक सेतु है।

राष्ट्रपति ने कहा कि सिंगापुर भारत को प्राप्त होने वाले तथा भारत से सिंगापुर जाने वाले प्रत्यक्ष विदेश निवेश के सबसे बड़े स्रोतों में से एक है। भारत सिंगापुर की कंपनियों को संयोजकता तथा अवसंरचना परियोजनाओं से जुड़ने और ‘भारत में निर्माण’, ‘डिजीटल भारत’ ‘स्वच्छ भारत’ कार्यक्रमों में सहभागिता के लिए आमंत्रित करता है। भारत ‘स्मार्ट शहर’स्थापित करने तथा शहरी पुनर्निर्माण के लिए सिंगापुर के साथ मिलकर कार्य करना चाहेगा। कौशल विकास में सिंगापुर का अनुभव भारत के लिए बहुमूल्य हो सकता है।

राष्ट्रपति मुखर्जी के उद्गारों के प्रत्युत्तर में, डॉ. टोनी तान केंग यम ने कहा कि भारत उन पहले देशों में से है जिन्होंने उसकी स्वतंत्रता पर उसे मान्यता दी थी। भारत और सिंगापुर के संबंध समस्यामुक्त हैं तथा बहुत वर्षों से जारी हैं। आर्थिक रिश्ते मजबूती से बढ़े हैं परंतु आगे बढ़ोतरी की बहुत संभावनाएं हैं। रिश्तों की यह सशक्तता आर्थिक और कूटनीतिक क्षेत्रों से कहीं आगे तक है। यह दोनों देशों की जनता तथा सरकारों के बीच मजबूत समझ को दर्शाती है। पिछले पचास वर्षों के संबंधों की आधारशिला से लाभ उठाते हुए आगे बहुत कुछ किया जा सकता है।

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने राजभोज व्याख्यान में कहा कि भारत सिंगापुर को आसियान के अपने प्रवेश द्वार के रूप में देखता है। भारत लोकतंत्र, बहु-सांस्कृतिक समाजों, कानून के शासन, स्वतंत्र उद्यम और जनता के बढ़ते हुए पारस्परिक संपर्क के माध्यम से क्षेत्रीय भूमिका तथा साझा संपर्क पर आधारित साझीदारी की परिकल्पना को साझा करता है। हम समुद्र के आर-पार के साझीदार हैं तथा एशिया-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय परिवेश के अभिन्न अंग हैं। आज दोनों देश इतिहास के ऐसे रोचक संक्राति काल में हैं जहां बड़े बदलाव दिखाई दे रहे हैं। भारत और सिंगापुर का प्रयास होगा कि हम अपने क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने तथा दोनों देशों की जनता के विकास के लिए मिल-जुलकर प्रयास करें।

राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें यह जानकर खुशी हो रही है कि सिंगापुर सरकार द्वारा सिंगापुर के भारत विरासत केन्द्र में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा स्थापित की जा रही है। जयंती वर्ष के दौरान दोनों देशों के बीच होने वाले आदान प्रदानों से दोनों देशों की जनता के लाभ के लिए तथा इस क्षेत्र में शांति और समृद्धि के लिए सहयोग को और अधिक प्रगाढ़ होने में मदद मिलेगी।

यह विज्ञप्ति 12:25 बजे जारी की गई।

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