राष्ट्रपति भवन : 04.02.2015
भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (4 फरवरी, 2015) राष्ट्रपति भवन में केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के सम्मेलन का उद्घाटन किया। यह राष्ट्रपति द्वारा पद ग्रहण करने के बाद आयोजित कुलपतियों का इस प्रकार का तीसरा सम्मेलन है। चालीस केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपति इस सम्मेलन में भाग ले रहे हैं, जिनके राष्ट्रपति जी कुलाध्यक्ष हैं।
इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि ऐसे उभरते हुए वैश्विक रुझानों को पहचानना जरूरी है जो दुनिया भर में उच्च शिक्षा में भारी बदलाव ला सकते हैं। उच्च शिक्षा की बढ़ती लागत तथा शिक्षार्थियों के बदलते स्वरूप तथा प्रौद्योगिकीय नवान्वेषण के कारण ज्ञान की संस्थाओं के वैकल्पिक मॉडलों का सृजन हो रहा है। केंद्रीय विश्वविद्यालयों पर भारत की उच्च शिक्षा के रूपांतर की प्रक्रिया का नेतृत्व की जिम्मेदारी है।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली से उत्तीर्ण होकर निकले हुए विद्यार्थियों को विश्व के सर्वोत्तम विद्यार्थियों से प्रतिस्पर्धा करनी होगी। युवा मस्तिष्कों में प्रतिस्पर्धात्मक भावना तथा अपनी मातृ संस्था के प्रति गर्व का ज़ज्बा भरने की जरूरत है। अंतरराष्ट्रीय दर्जे के साथ ही, विश्वविद्यालयों को राष्ट्रीय रैंकिंग फ्रेमवर्क पर रेटिंग का परीक्षण करना चाहिए, जिसे शीघ्रता से विकसित करने की जरूरत है।
राष्ट्रपति ने कहा कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में रिक्त पदों का प्रतिशत चिंताजनक रूप से ऊंचा है। ये रिक्तियां 31 मार्च, 2013 की स्थिति के अनुसार 37.3 प्रतिशत से बढ़कर 1 दिसंबर, 2014 को 38.4 प्रतिशत हो गई है। संकाय की चयन समिति में कुलाधिपति के नामिती की अनुपलब्धता के मुद्दे का समाधान कर दिया गया है। प्रत्येक केंद्रीय विश्वविद्यालय के पास अब पांच नामितों का पैनल होगा जिन्हें वर्तमान अनुदेशों के अनुसार बुलाया जा सकता है। केंद्रीय विश्वविद्यालयों के उद्योगों और पूर्व छात्रों के साथ संपर्क की दिशा में प्रयासों पर मौजूदा से और अधिक ध्यान दिए जाने तथा दिशा प्रदान किए जाने की जरूरत है। अभी तक केवल चार विश्वविद्यालयों ने उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए हैं जबकि अन्य पांच इस दिशा में प्रयासरत हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि नॉर्वे तथा फिनलैंड की अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने शिक्षाविदों तथा विशेषज्ञों से भारत आकर पढ़ाने का आह्वान किया था। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने ग्लोबल इनिशियेटिव ऑफ ऐकेडेमिक नेटवर्क्स (ज्ञान) के तहत केंद्रीय विश्वविद्यालयों से ऐसे प्रख्यात विद्वानों और अनुसंधानकर्ताओं की सूची देने के लिए कहा है जिन्हें अतिथि वक्ताओं अथवा विद्वानों के रूप में बुलाया जा सके। देश के बाहर तथा अंदर के विद्वानों को अपना ब्योरा लॉग-इन करने की सुविधा देने के लिए एक ई-प्लेटफार्म विकसित करने की जरूरत है। यह, यथासमय, भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली के लिए वैश्विक विशेषज्ञों का एक समृद्ध डाटाबेस तैयार करने में सहायक होगा। हाल ही में शुरू किया गया ‘पंडित मदन मोहन मालवीय नेशनल मिशन ऑन टीचर्स एवं टीचिंग’मानक स्थापित करेगा तथा नवान्वेषी शिक्षण के लिए विश्व स्तरीय सुविधाओं का सृजन करेगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि ‘सर्वोत्तम विश्वविद्यालय’, ‘नवान्वेषण’ तथा ‘अनुसंधान’के लिए कुलाधिपति पुरस्कार भविष्य में हमारे विश्वविद्यालयों में अनुसंधान तथा नवान्वेषण को बढ़ावा देने के लिए प्रेरक शक्ति बनेंगे। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी नेटवर्कों को कारगर उपयोग करने की तत्काल जरूरत है। उन्होंने राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क के माध्यम से तीन बार संकाय सदस्यों और विद्यार्थियों के साथ वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए संवाद किया। जब उन्होंने अपना नव-वर्ष का संदेश दिया तो 120 उच्चतर शिक्षण संस्थानों को राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क तथा अन्य 900 स्थलों को वेबकास्ट के माध्यम से जोड़ा गया। उन्होंने मंत्रालय तथा अनुसंधान और शिक्षा संस्थानों के सभी प्रमुखों को उच्च शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता के सुधार के लिए राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क को प्रयोग करने का आग्रह किया।
राष्ट्रपति ने कहा कि मूल्यांकन प्रणालियों में अंतर के कारण विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय प्रणाली में अपने प्रमाणपत्रों की स्वीकृति तथा रोजगार अवसरों को हासिल करने में कठिनाई आती है। विकल्प आधारित अंक प्रणाली की पहल से विद्यार्थियों को देश और विदेश के उच्चतर शिक्षण संस्थानों में अबाध आवागमन सुनिश्चित होगा। विद्यार्थियों द्वारा अर्जित अंक अंतरित किए जा सकते हैं तथा एक संस्था से दूसरी संस्था के लिए स्थानांतरण की आवश्यकता होने पर उनके लिए ये महत्त्वपूर्ण होंगे। 23 केंद्रीय विश्वविद्यालयों ने पहले ही विकल्प आधारित अंक प्रणाली लागू कर दी है। उन्होंने शेष विश्वविद्यालयों से आगामी अकादमिक वर्ष से इस प्रणाली को कार्यान्वित करने पर विचार करने का आग्रह किया।
राष्ट्रपति ने कहा कि विश्वविद्यालय समग्र रूप से समाज के लिए एक आदर्श होता है। इसकी प्रेरणाजनक शक्ति कक्षाओं और अध्यापन से आगे तक जाती है। इसके इस प्रभाव को अधिकाधिक हित के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए। केंद्र सरकार ने व्यापक सामाजिक-आर्थिक महत्त्व वाली अनेक पहलें की हैं। स्वच्छ भारत मिशन का लक्ष्य 2019 में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती तक भारत को स्वच्छ बनाना है। सांसद आदर्श ग्राम योजनामें समुदाय सहभागिता के जरिए चुनिंदा गांवों के समेकित विकास की परिकल्पना की गई है। उन्होंने प्रत्येक केंद्रीय विश्वविद्यालय से सांसद आदर्श ग्राम योजना के अंतर्गत कम से कम पांच गांवों को आदर्श गांवों में बदलने के लिए कार्य आरंभ करने का आग्रह किया।
राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार से प्राप्त निधि के सीमित होने के कारण, भौतिक अवसंरचना तथा शैक्षिक सुविधाओं के सृजन की लागत, ऊंची फीस के रूप में विद्यार्थियों को भुगतनी पड़ती है। विश्वविद्यालय जहां पहले नए विद्यार्थियों को शिक्षित करते थे वहीं अब उन पर संपूर्ण आजीविका के दौरान कर्मियों के प्रशिक्षण और पुन: प्रशिक्षण का दायित्व आ गया है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में अगले कुछ दशकों के दौरान 44 प्रतिशत पेशों के स्वचलन की भविष्यवाणी की गई है। नवान्वेषण कुछ रोजगारों को समाप्त कर देता है, कुछ को बदल देता है तथा कुछ नए पैदा करता है,इसलिए कार्यबल को अपने कौशल और क्षमताओं को उन्नत और परिष्कृत करने के लिए आजीवन सीखते रहना होगा। बढ़ता हुआ खर्च और गतिशील मांग की दोहरी बाध्यता का समाधान ई-सक्षम शिक्षण के व्यापक प्रयोग से किया जा सकता है। व्यापक मुक्त ऑन लाइन पाठ्यक्रमों, जो पहली बार 2008 में आरंभ हुए थे, से विद्यार्थी ऑनलाइन व्याख्यान सुन सकते हैं और पाठ्यक्रम सामग्री पढ़ सकते हैं तथा कक्षा में मिलने वाली उच्च शिक्षा की आंशिक लागत पर ही उपाधि हासिल कर सकते हैं। युवा उदीयमान प्रतिभाओं के लिए सक्रिय शिक्षण का अध्ययन वेब (स्वयं) तथा व्यापक मुक्त ऑन लाइन पाठ्यक्रमों से उच्च शिक्षा प्रणाली (मूक्स) से अध्यापन में तेजी, मांग और प्रवीणता का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय तथा उच्च शिक्षण संस्थाओं को शिक्षण हेतु प्रौद्योगिकी के प्रयोग से अधिकतम फायदा हासिल करने के लिए वातावरण तैयार करना चाहिए। समय-समय पर कक्षा परिचर्चा अथवा मिश्रित व्यापक मुक्त ऑन लाइन पाठ्यक्रमों के साथ-साथ ऑन लाइन अनुदेश पारंपरिक अध्यापन के बुनियादी तत्त्वों को बनाए रखने का समाधान प्रस्तुत कर सकते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि उच्च शिक्षण संस्थानों को हमारे विद्यार्थियों में आधारभूत मूल्यों का समावेश करने पर बल देना होगा। हमारी सभ्यता ने देशप्रेम, बहुलवाद, सहिष्णुता, ईमानदारी और अनुशासन का समर्थन किया है। हमारा लोकतंत्र इन मूल्यों पर समृद्ध हुआ है। अगली पीढ़ी को शक्ति के अंतर्निहित स्रोत के रूप में हमारी विविधता, समावेशिता तथा आत्मसात करने की क्षमताओं का सम्मान करना सीखना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि जब शिक्षित जनसमूह अपने चिंतन और विचारों की आपस में गुंथी हुई धाराओं से नवान्वेषण की एक नदी तैयार करता है तब समाज सर्जनात्मक उद्यम का रूप लेता है। अध्यापकों को अपनी जिज्ञासा शांत करने, स्थापित ज्ञान पर प्रश्न उठाने, जांच के पश्चात ही किसी कथन को स्वीकार करने तथा दक्षता प्राप्त करने के लिए विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करना चाहिए। हमारे विद्यार्थियों में ऐसी वैज्ञानिक प्रवृत्ति आवश्यक है जो उनकी कल्पना को श्रेणियों और कक्षा के दायरे से आगे ले जा सके। विशेषकर,उनके ऊर्जावान और जिज्ञासु मस्तिष्क को निखारने के लिए पुस्तकों के जरिए अध्ययन और शिक्षण की प्रवृत्ति को समाविष्ट करना होगा। पुस्तकें सामाजिक और सांस्कृतिक अवरोधों को भी तोड़ती हैं।
इस अवसर पर उपस्थित विशिष्टगण में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री, श्रीमती स्मृति ज़ुबिन ईरानी शामिल थीं।
यह विज्ञप्ति 11:05 बजे जारी की गई