अंडमान और निकोबार जनजातीय अनुसंधान संस्थान के उद्घाटन के दौरान राष्ट्रपति ने कहा कि विकास के नाम पर संवेदनशील जनजातीय समुदायों को न परेशान किया जाए
राष्ट्रपति भवन : 12.01.2014

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (12 जनवरी, 2014) पोर्ट ब्लेयर में अंडमान और निकोबार जनजातीय अनुसंधान संस्थान का उद्घाटन किया।

इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने पिछड़े और अति संवेदनशील जनजातीय समुदायों को मुख्य धारा में जबरदस्ती शामिल न करने का पुरजोर आग्रह किया। उन्होंने कहा कि विकास के नाम पर ऐसे जनजातीय समुदायों को परेशान न किया जाए, कहीं उनके एकीकरण के प्रयासों के फलस्वरूप, जैसा पहले हुआ है, वह समाप्त न हो जाएं। कोई भी एकीकरण बाहर से आरोपित न होकर अंदरुनी होना चाहिए।

अंडमान और निकोबार जनजातीय अनुसंधान संस्थान की प्रस्तावित अनुसंधान योजनाओं की सराहना करते हुए, उन्होंने कहा कि अनुसंधान से जनजातीय लोगों के संबंध में नीति निर्माण और निर्णयों का आधार तैयार किया जाना चाहिए। अंडमान और निकोबार जनजातीय अनुसंधान संस्थान जैसी संस्थाओं को जनजातीय लोगों की प्राकृतिक प्रवृत्तियों और प्रथाओं के विरुद्ध निर्णयों से बचने के लिए नीति निर्माताओं का मार्गदर्शन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि नीतियां जड़ नहीं होनी चाहिए बल्कि परिस्थितियों के अनुसार समायोजित किया जाना चाहिए।

राष्ट्रपति ने अंडमान और निकोबार जनजातीय अनुसंधान संस्थान की अपारंपरिक संग्रहालय निर्मित करने की योजनाओं की सराहना की और कहा कि यह संग्रहालय पर्यटन या जनजातीय लोगों के शिल्पकृतियों और हस्तशिल्प के वाणिज्यक दोहन के लिए नहीं होना चाहिए। इसके बजाय, इससे जनजातीय लोगों को अपनी कहानियों का उल्लेख करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और इस प्रक्रिया की मदद से वे अपनी आवश्यकताओं और कमियों की पहचान कर पाएंगे। इससे वे अपनी कमियों को अपने आप दूर करने के लिए सशक्त बनेंगे। उन्होंने कहा कि अंडमान और निकोबार जनजातीय अनुसंधान संस्थान को यह अध्ययन करना चाहिए कि सदियों के दौरान जनजातीय परंपराएं कैसे विकसित हुई हैं, ये प्रथाएं उनके कितनी अनुकूल हैं और इस प्रकार नीति निर्माण के लिए प्रासंगिक विचार मुहैया करवाएं।

यह विज्ञप्ति 1520 बजे जारी की गई।

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