राष्ट्रपति भवन में दो दिवसीय कुलाध्यक्ष सम्मेलन आज समाप्त हुआ

राष्ट्रपति ने एक मजबूत अकादमिक-उद्योग इंटरफेस की वकालत की

राष्ट्रपति भवन : 04.03.2025

राष्ट्रपति भवन में दो दिवसीय कुलाध्यक्ष सम्मेलन आज 04 मार्च, 2025 को समाप्त हुआ।

सम्मेलन में निम्नलिखित विषयों पर विचार-विमर्श किया गया - शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में लचीलापन, प्रवेश और निकास के कई विकल्पों वाला क्रेडिट शेयरिंग और क्रेडिट ट्रांसफर; अंतर्राष्ट्रीयकरण के प्रयास और सहयोग; अनुसंधान अथवा नवाचार को उपयोगी उत्पादों और सेवाओं में परिवर्तित करने से संबंधित अनुवाद शोध और नवाचार; एनईपी के संदर्भ में प्रभावी विद्यार्थी चयन प्रक्रिया और विद्यार्थी द्वारा दिए गए विकल्पों पर ध्यान देना; और प्रभावी आकलन और मूल्यांकन। विचार-विमर्श के परिणाम भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु के समक्ष प्रस्तुत किए गए।

अपने समापन सम्बोधन में, राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा राष्ट्रीय लक्ष्य इस सदी के  पूर्वार्ध के सम्पन्न होने के पहले भारत को एक विकसित देश बनाना है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए शिक्षण संस्थानों के सभी हितधारकों और विद्यार्थियों को वैश्विक सोच के साथ आगे बढ़ना होगा। अंतर्राष्ट्रीयकरण प्रयासों और सहयोग के मजबूत होने से युवा विद्यार्थी 21वीं सदी के विश्व में अपनी और अधिक प्रभावी पहचान बनाएंगे। हमारे उच्च शिक्षण संस्थानों में उत्कृष्ट शिक्षा की उपलब्धता से विदेश जाकर पढ़ने की प्रवृत्ति में कमी आएगी। देश की युवा प्रतिभा का राष्ट्र-निर्माण में बेहतर उपयोग हो सकेगा। 

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा देश विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। आत्मनिर्भर होना, सही अर्थों में विकसित, बड़ी तथा सुदृढ़ अर्थ- व्यवस्था की पहचान है। अनुसंधान और नवाचार पर आधारित आत्म-निर्भरता हमारे उद्यमों और अर्थ-व्यवस्था को मजबूत बनाएगी। ऐसे अनुसंधान और नवाचार को हर संभव सहायता मिलनी चाहिए। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में शिक्षा-उद्योग का इंटरफेस मजबूत दिखाई देता है। उद्योग जगत और उच्च शिक्षण संस्थानों में निरंतर आदान-प्रदान होने से शोध कार्य अर्थव्यवस्था और समाज की जरूरतों से जुड़ा रहता है। उन्होंने उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रमुखों से आग्रह किया कि वे आपसी हित में औद्योगिक संस्थानों के वरिष्ठ लोगों से निरंतर विचार-विमर्श करने के लिए संस्थागत प्रयास करें। उन्होंने कहा कि इससे शोध कार्य करने वाले शिक्षकों और विद्यार्थियों को बहुत लाभ मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षण संस्थानों की प्रयोगशालाओं को स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और वैश्विक आवश्यकताओं से जोड़ने का कार्य  उनकी प्राथमिकता होनी चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा प्रणाली व्यवस्था आधारित हो और विद्यार्थियो की विशेष प्रतिभाओं और आवश्यकताओं के अनुसार इसका लचीला होना अनिवार्य भी है और चुनौती भी। इस संदर्भ में निरंतर सचेत और सक्रिय रहने की आवश्यकता है। अनुभव के आधार पर समुचित परिवर्तन होने चाहिए। विद्यार्थियों को सशक्त बनाना ऐसे बदलावों का उद्देश्य होना चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि चरित्रवान, समझदार और योग्य युवाओं के बल पर ही कोई राष्ट्र सशक्त और विकसित बनता है। शिक्षण संस्थानों में हमारे युवा विद्यार्थियों के चरित्र, विवेक और क्षमता का निर्माण होता है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रमुख उच्च शिक्षा के उद्दात आदर्शों को अवश्य प्राप्त करेंगे और भारत माता की युवा संततियों को स्वर्णिम भविष्य का उपहार देंगे।

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