भारत की राष्ट्रपति सीएलईए-कॉमनवेल्थ अटॉर्नी और सॉलिसिटर जनरल कॉन्फ्रेंस के समापन समारोह में शामिल हुईं

राष्ट्रमंडल अपनी विविधता और विरासत से विश्व को सहयोग की भावना से साझा चिंताओं को दूर करने का रास्ता दिखा सकता है: राष्ट्रपति मुर्मु

राष्ट्रपति भवन : 04.02.2024

भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु आज 4 फरवरी, 2024 को नई दिल्ली में कॉमनवेल्थ लीगल एजुकेशन एसोसिएशन (सीएलईए) - कॉमनवेल्थ अटॉर्नी और सॉलिसिटर जनरल कॉन्फ्रेंस (सीएएसजीसी) 2024 के समापन समारोह में शामिल हुईं और उसे संबोधित किया।

इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि जो सही और उचित है वह तार्किक रूप से भी सही होता है। इन तीन गुणों से किसी समाज की नैतिक व्यवस्था परिभाषित होती है। इसीलिए क़ानूनी पेशे और न्यायपालिका से जुड़े लोग व्यवस्था बनाए रखने में मदद करते हैं। यदि इसे किसी चुनौती का सामना करना पड़ता है, तो वे वकील अथवा न्यायाधीश, कानून के विद्यार्थी अथवा शिक्षक के रूप में फिर से इसे सही राह पर लाने के लिए सबसे अधिक प्रयास करते हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संविधान की प्रस्तावना में "न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिकता" की बात कही गई है। इसलिए, जब हम 'न्याय प्रदान करने' की बात करते हैं, तो हमें सामाजिक न्याय सहित इसके सभी पहलुओं को ध्यान में रखना होता है। उन्होंने कहा कि आज जब दुनिया जलवायु परिवर्तन के खतरे का सामना कर रही है, हमें न्याय की अवधारणा के विभिन्न पहलुओं में पर्यावरणीय न्याय को भी जोड़ देना चाहिए। जैसा कि हम देखते हैं पर्यावरणीय न्याय के मुद्दे अक्सर सीमा से पार की चुनौतियां पैदा करते हैं। 'न्याय प्रदान करने में सीमा पार की चुनौतियां' इस सम्मेलन का प्रमुख विषय हैं। उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि सीएलईए ने साझा भविष्य के लिए एक रोडमैप तैयार करने की जिम्मेदारी ली है, जो सीमाओं से पार है और समानता और सम्मान पर आधारित प्राकृतिक न्याय के मौलिक सिद्धांतों पर आधारित है। उन्होंने विश्वास जताया कि राष्ट्रमंडल अपनी विविधता और विरासत से विश्व को सहयोग की भावना से साझा चिंताओं को दूर करने का रास्ता दिखा सकता है।

यह नोट करते हुए कि 'न्याय तक पहुंच: अंतराल समाप्त करना' जो सम्मेलन का एक उप-विषय था, राष्ट्रपति ने विश्वास व्यक्त किया कि सम्मेलन में विमर्श को विभिन्न संस्थानों और विश्वविद्यालयों के डीन और कुलपतियों के साथ-साथ वरिष्ठ विद्यार्थियों और विद्वानो की भागीदारी से लाभ मिला होगा। उन्होंने कहा कि युवा अधिक सोच सकते हैं और वे उन समस्याओं के लिए नवीन और आउट-ऑफ़-द-बॉक्स समाधान प्रस्तुत कर सकते हैं जिन्हें सबसे अनुभवी पेशेवर नहीं सुलझा सकें।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत वैश्विक विमर्श में एक प्रमुख हितधारक के रूप में उभरा है। जब न्याय प्रदान करने संबंधी अंतरराष्ट्रीय मुद्दों की बात होती है तो भारत बहुत कुछ समाधान दे सकता है। भारत न केवल सबसे बड़ा लोकतंत्र है, बल्कि इतिहास गवाह है कि यह सबसे पुराना लोकतंत्र भी है। इस समृद्ध और लंबी लोकतांत्रिक विरासत में हमने जो सीखा है उससे हम आधुनिक समय में न्याय प्रदान करने में मदद कर सकते हैं।

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