भारत की राष्ट्रपति लोकमंथन-2024 के उद्घाटन सत्र में शामिल हुईं

राष्ट्रपति भवन : 22.11.2024

भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु आज 22 नवंबर, 2024 को हैदराबाद, तेलंगाना में लोकमंथन-2024 के उद्घाटन सत्र में शामिल हुईं। इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने लोकमंथन कार्यक्रम के सभी आयोजकों की सराहना की। उन्होंने कहा कि भारत की समृद्ध संस्कृति, परम्पराओं और विरासत में एकता के सूत्रों को सुदृढ़ बनाने का यह प्रयास अत्यंत सराहनीय है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि सभी नागरिकों को भारत की सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को गहराई से समझना चाहिए तथा हमारी अमूल्य परम्पराओं को निरंतर मजबूत बनाना चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि विविधता तथा अनेकता हमारी मूलभूत एकता को इंद्रधनुषी सुंदरता प्रदान करते हैं। हम चाहें वनवासी हों, ग्रामवासी हों या नगरवासी हों, सबसे पहले हम सभी भारतवासी हैं। इस राष्ट्रीय एकता की भावना ने हमें सभी चुनौतियों के बावजूद, एक सूत्र में जोड़कर रखा है। उन्होंने कहा कि हमारे समाज को हर तरह से बांटने के और कमजोर करने के प्रयास सदियों से किए गए हैं। हमारी सहज एकता को खंडित करने के लिए कृत्रिम भेद-भाव पैदा किए गए हैं। लेकिन, भारतीयता की भावना से ओत-प्रोत देशवासियों ने राष्ट्रीय एकता की मशाल जलाए रखी है।

राष्ट्रपति ने कहा कि प्राचीनकाल से ही भारतीय विचारधारा का प्रभाव विश्व में दूर-दूर तक फैला हुआ था। भारत की धार्मिक मान्यताएं, कला, संगीत, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा-पद्धतियां, भाषा और साहित्य दुनिया भर में सराहे जाते रहे हैं। सबसे पहले, भारतीय दर्शन पद्धतियों ने ही आदर्श जीवन-मूल्यों का उपहार विश्व-समुदाय को दिया था। अपने पूर्वजों की उस गौरवशाली परंपरा को और मजबूत बनाना हमारा दायित्व है।

राष्ट्रपति ने कहा कि सदियों तक, विदेशी ताकतों ने भारत पर शासन किया। उन साम्राज्यवादी एवं उपनिवेशवादी शक्तियों ने भारत का आर्थिक दोहन तो किया ही,

हमारे सामाजिक ताने-बाने को भी छिन्न-भिन्न करने का प्रयास किया। हमारी समृद्ध बौद्धिक परंपरा के प्रति हेय दृष्टि रखने वाले शासकों ने हमारे देशवासियों में सांस्कृतिक हीन-भावना का संचार किया। ऐसी परंपराओं को हम पर थोपा गया जो हमारी एकता के लिए हानिकारक थीं। सदियों की पराधीनता के कारण हमारे देशवासी गुलामी की मानसिकता का शिकार हो गए। भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए नागरिकों के मन में ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना जागृत करना अत्यंत आवश्यक है। उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हुई कि लोकमंथन इस भावना को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहा है।ding this feeling.

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