भारत की राष्ट्रपति आईआईटी (आईएसएम) धनबाद के दीक्षांत समारोह में शामिल हुईं
राष्ट्रपति भवन : 01.08.2025
भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु आज 01 अगस्त, 2025 को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भारतीय खनि विद्यापीठ) धनबाद, झारखंड के 45वें दीक्षांत समारोह में शामिल हुईं।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि आईआईटी (आईएसएम) धनबाद की लगभग 100 वर्षों की गौरवशाली विरासत है। इसकी स्थापना का उद्धेश्य खनन और भूविज्ञान के क्षेत्र में प्रशिक्षित विशेषज्ञ तैयार करना था। इस संस्थान ने समय के साथ अपने शैक्षणिक दायरे को बढ़ाया है और अब विभिन्न क्षेत्रों में उच्च शिक्षा और अनुसंधान का एक अग्रणी केंद्र बन गया है। इस संस्थान ने तकनीकी विकास और नवाचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आईआईटी धनबाद ने एक ऐसा इकोसिस्टम विकसित किया है जहाँ शिक्षा और नवाचार का उद्देश्य लोगों की ज़रूरतों से और देशवासियों की आकांक्षाओं के साथ जुड़ा हुआ है।
राष्ट्रपति ने कहा कि देश के समग्र विकास में आईआईटी-आईएसएम की महत्वपूर्ण भूमिका है। उत्कृष्ट इंजीनियर और शोधकर्ता तैयार करने के साथ-साथ करुणामय, संवेदनशील और उद्देश्यपूर्ण पेशेवर लोग भी इस संस्थान को तैयार करने हैं। हमारे देश का भविष्य अत्याधुनिक अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने और प्रतिभाशाली युवाओं को मार्गदर्शन देने की आईआईटी-आईएसएम जैसे संस्थानों की प्रतिबद्धता से आकार ले रहा है।
राष्ट्रपति ने कहा कि आज देश और विश्व में जलवायु परिवर्तन और संसाधनों की कमी से लेकर डिजिटल व्यवधान और सामाजिक असमानता तक अनेक जटिल और तेज़ी से बदलती हुई चुनौतियां हैं। ऐसी स्थिति में आईआईटी-आईएसएम जैसे संस्थान का मार्गदर्शन और भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने आईआईटी-आईएसएम से नए और स्थाई समाधान खोजने में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए कहा।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत की सबसे बड़ी शक्ति हमारा विशाल मानव संसाधन हैं। तकनीकी शिक्षा की बढ़ती पहुंच और डिजिटल कौशल का प्रसार भारत को तकनीकी महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर कर रहा है। भारत की शिक्षा प्रणाली को और अधिक व्यावहारिक, नवाचार-केंद्रित और उद्योग-अनुकूल बनाने से देश के युवाओं की प्रतिभा को सही दिशा मिलेगी और उन्हें वैश्विक स्तर पर आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) और स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के साथ-साथ पेटेंट संस्कृति को बढ़ावा देना होगा। शिक्षा में अंतःविषयक दृष्टिकोण अपनाना भी अत्यंत आवश्यक है, जिससे विद्यार्थी समग्र सोच विकसित कर सकें और जटिल समस्याओं के रचनात्मक समाधान खोज सकें।
राष्ट्रपति ने विद्यार्थियों को परामर्श दिया कि वे अपने ज्ञान को केवल व्यक्तिगत उन्नति तक सीमित न रहने दें, बल्कि जनहित का माध्यम बनाएँ। उन्होंने विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे अपने ज्ञान का उपयोग एक मज़बूत और अधिक न्यायपूर्ण भारत के निर्माण के लिए करें — जहाँ आगे बढ़ने के अवसर सबके लिए उपलब्ध हों। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि वे अपने ज्ञान का उपयोग एक हरित-भारत के निर्माण के लिए भी करें - जहाँ विकास प्रकृति की कीमत पर नहीं, बल्कि उसके साथ सामंजस्य बनाकर हो। उन्होंने कहा कि भविष्य में वे जो भी करें, उसमें उनकी बुद्धिमत्ता के साथ-साथ उनकी सहानुभूति और उत्कृष्टता के साथ-साथ नैतिकता भी झलकनी चाहिए। केवल नवाचार ही नहीं, करुणा से प्रेरित नवाचार, दुनिया को बेहतर बनाता है।