• मुख्य सामग्री पर जाएं /
  • स्क्रीन रीडर का उपयोग

औषधीय उद्यान

  • अश्वगंधा

    अश्वगंधा

    प्रचलित नाम : अश्वगंध, असगंध

    अंग्रेजी नाम : विन्टर चेरी, इन्डियन जिनसेंग

    पौध परिचय : अश्वगंधा का झाड़ीदार पौधा, साधारणतया सीधा, शाखीय एवं 30 से 150 सेमी. तक ऊँचा होता है। इसकी पत्तियां लम्बोतरी, अण्डाकार से चौड़ी अण्डाकार, 10 से.मी. तक लम्बी तथा रोमों से ढकी होती हैं। फूलों के पास पत्तियाँ छोटी होती हैं। पीले रंग के फूल 5-5 के गुच्छों में पाए जाते हैं। इसके कच्चे फल (बेर) हरे रंग के बाह्य-दल पुंजों में अवस्थित होते हैं। फल परिपक्व पर लाल रंग के हो जाते हैं, जिसमें चपटे एवं गोलाकार पीताभ-श्वेत असंख्य बीज होते हैं।

    उपयोगी अंग : जड़

    मुख्य रासायनिक घटक : विद्रानिया सोम्नीफेरा से प्रमुखतया क्षराभ (अलोकाएड) एवं विथैनोलाइड्स नामक दो प्रमुख रासायनिक तत्त्व प्राप्त किए गए हैं, जिनके औषधीय गुणों की परख की जा चुकी है।

    औषधीय गुण एवं उपयोग : भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में अश्वगंधा एक उच्च कोटि की रसायन एवं बलवर्धक औषधि मानी जाती है। इसके अतिरिक्त इसका उपयोग आमवाल, कुष्ठ, तंत्रिका विकार, दीपन, पाचन, उन्माद एवं अपस्मार आदि व्याधियों में किया जाता है। यह लगभग 150 से भी ऊपर विभिन्न आयुर्वेदिक एवं यूनानी औषधि योगों के निर्माण में घटक द्रव्य के रूप में प्रयोग किया जाता है। शक्तिवर्धक ओर किसी भी प्रकार की कमजोरी के लिए बच्चों को एक टॉनिक के रूप में दिया जाता है।

  • बर्गामोट मिंट

    बर्गामोट मिंट

    प्रचलित नाम : विलायती पुदीना

    अंग्रेजी नाम : मार्श मिंट, बर्गामोट मिंट, वॉटर मिंट, लेमन मिंट।

    पौध परिचय : एक सीधी, शाखाओं वाला पौधा पतली और आमने-सामने, पर्णवृन्त, भालाकार, 1.5-5 सें.मी. लम्बी पत्तियां। सबसे ऊपर, ऊपरी तने की गांठों में छोटे-छोटे फूल और किनारों पर छोटे-छोटे घने कांटे।

    उपयोगी अंग : पत्तियाँ

    मुख्य रासायनिक घटक : विलायती पुदीना के तेल के प्रमुख घटक लिनालोप (50-50 प्रतिशत) और लिनालिल एसिटेट (30-35 प्रतिशत)

    औषधीय गुण एवं उपयोग : विलायती पुदीने के तेल का प्रमुख उपयोग सुगंध और सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है। तेल का उपयोग साबुन, इत्र और प्रसाधन की वस्तुओं में भी होता है।

  • भूमि आमलकी

    भूमि आमलकी

    प्रचलित नाम : तामलकी, भूई आँवला, हजारदाना

    अंग्रेजी नाम : फाइलेन्थस एमारस

    वर्षा ऋतु में, फाइलेन्थस एमारस प्राय: देश के सभी प्रांतों में प्रचुरता से उगता है। इसके एकवर्षीय शाकीय पौधे साधारणतया 10-60 से.मी. ऊँचे होते है। पौधे का मुख्य तना सरल चिकना, बेलदार, हल्का भूरा होता है। उन शाखाओं में 15-20 भालाकार पत्तियाँ होती हैं जिनकी ऊपरी सतह गाढ़ी हरी तथा निचली सतह हल्की हरी होती है। इसके फूल उभयलिंगी, तने के निकटस्थ, हमेशा खिलते रहते हैं। इसके फल सम्पुट गोल, ध्रुवों पर चपटे, हल्के भूरे एवं इनके पृष्ठ सतह पर 5-6 समानान्तर लम्बी धारियां पाई जाती हैं।

    उपयोगी अंग : सम्पूर्ण पौधा

    मुख्य रासायनिक घटक : पौधों में औषधीय गुण युक्त विभिन्न प्रकार के कार्बनिक यौगिक जैसे अलकोलाएड्स, फ्लेवोनाएड्स, लिग्नैन, कुमेरिन इत्यादि पाए जाते हैं जिनके फाइलेन्थिन एवं हाइपो फाइलेन्थिन नामक लिग्नैन प्रमुख हैं।

    औषधीय गुण एवं उपयोग : यह कसैले स्वाद का पौधा है, जिसमें कषाए, क्षुधावर्धक, मूत्रल, ज्वरहर, यकृत्तोजक एवं सूक्ष्म जीवाणुनाशक गुण पाए गए हैं। ताजे एवं शुष्क दोनों प्रकार के पौधे का उपयोग पीलिया रोग के उपचार में किया जाता है। पीलिया रोग के लिए बनाई जाने वाली विभिन्न औषधियों में इसका प्रचुर प्रयोग होता है। रासायनिक यौगिक-फिलैंथिन और हाइपोफिलैंथिन में यकृत आविषालुता रोधी प्रमुख गुणधर्म हैं।

    आरंभ में
  • ब्राह्मी

    ब्राह्मी

    प्रचलित नाम : ब्राह्मी, जल-ब्राह्मी

    अंग्रेजी नाम : थाईम-लिव्ड ग्रेटिओला

    पौध परिचय : यह नम स्थानों पर तेजी से फैलने वाला मुलायम, एवं जमीन पर रेंगने वाला छोटा पौधा है। इसके तने की गाँठों से अनेक शाखाएं निकलती हैं और पत्तियां छोटी-छोटी, अंडाकार, मांसल, एक दूसरे के विपरित तने से लगी होती हैं। इस पौधे से पूरे वर्ष हल्का नीलापन या गुलाबी रंग लिए सफेद फूल निकलते हैं।

    उपयोगी अंग : ताजा या सुखाया हुआ सम्पूर्ण पौधा

    मुख्य रासायनिक घटक : पौधे से सेपोनिन्स मोनियरिन, हरसेपोनिन तथा बेकोसाइड्स प्राप्त होते हैं।

    औषधीय गुण एवं उपयोग : इस पौधे का उपयोग मानसिक रोगों यथा मिर्गी, पागलपन तथा मन्द-बुद्घि के उपचार में किया जाता है। यह कफ एवं वात का शमन करने, स्मृति एवं बुद्घि का विकास करने, आयु एवं बलवर्धक, त्वचा रोगों एवं ज्वर, आदि में लाभकारी है। पौधों से प्राप्त बैकोसाइड्स नामक रासायनिक घटक में शोधोपरान्त स्मृति एवं बुद्घिवर्धक गुण पाया गया है।

    आरंभ में
  • सिट्रोनेला

    सिट्रोनेला

    प्रचलित नाम : जावा घास

    अंग्रेजी नाम : सिट्रोनेला घास, सिट्रोनेला जावा

    पौध परिचय : जावा घास, लम्बा पर्णयुक्त 2.5 मीटर ऊँचा पौधा है। रेखाकार तथा लम्बाग्र पत्तियां प्रारम्भिक एक मीटर तक लालहरित तथा शेष पीतहरित रंग की होती है। पुष्पगुच्छ 1 मीटर तक लम्बा अधिकांश टेढ़े-मेढ़े, दोलनाकार तथा अवृन्त स्पाइकिका (स्पाइकलेट) 5 मि.मि. लम्बा, जिसका निचला तुष (गुल्म), अधोमुख, भालाकार होता है। पुष्प वृन्त स्पाइकेका 5 मि.मि. लम्बा तथा इसका निचला तुष भालाकार और 7 तंत्रिका (नरव्ड) युक्त होता है।

    उपयोगी अंग : वायवीय भाग सुगन्धित तेल का मुख्य स्रोत है।

    मुख्य रासायनिक घटक : इस तेल का मुख्य रासायनिक घटक सिट्रोनेलाल, जिरेनियाल, सूक्ष्म घटक-लीमोनिन, अल्फाओसीमीन, लीनालूल, आइसोपालीगाल, तथा कैरियोफाइलीन आदि है।

    औषधीय गुण एवं उपयोग : सिट्रोनेलाल का तेल मुख्यत: इत्र, साबुन, धुलाई का साबुन, घरेलू शोधित्र, तकनीकी उत्पादों तथा कीटनाशक के रूप में प्रयोग होता है।

    आरंभ में
  • जिरेनियम

    जिरेनियम

    प्रचलित नाम : जिरेनियम

    अंग्रेजी नाम : जिरेनियम

    पौध परिचय : जिरेनियम की झाड़ी का, बहुवर्षीय पौधा 90 से.मी. ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ हृदयकार, दीर्णतम् पीच्छाकार (पिन्नेटी सेक्ट), 5 द्वितीयक, हस्ताकार, निकला हुआ भाग (लोब्स) होती हैं जिनके दोनों सतह रोएंदार होती हैं। इसके फूल गुलाबी, पत्ते आमने सामने, पुष्पक्षत्र में सहपत्री होते है।

    उपयोगी अंग : सम्पूर्ण पौधा सुगन्धित तेल का स्रोत है।

    मुख्य रासायनिक घटक : मुख्य घटक सिट्रोनेलाल, जिरेनियाल, अल्फा पाइनिन, बीटा पाइनिन, मायरीसीन, अल्फा फिलेन्ड्रीन, लिमोनीन आदि।

    औषधीय गुण एवं उपयोग : जिरेनियम का तेल सुगन्धित गुलाब के तेल जैसी महक देवे वाला होता है। यह तेल सुगन्ध के लिए प्रयुक्त होता है। इसे सौन्दर्य प्रसाधन एवं गन्ध द्रव्य में बाह्य प्रयोग के लिए भी उपयोग किया जाता है।

    आरंभ में
  • इवनिंग प्राइमरोज

    इवनिंग प्राइमरोज

    प्रचलित एवं अंग्र्रेजी नाम : इवनिंग प्राइमरोज

    पौध परिचय : इवनिंग प्राइमरोज का पौधा प्राय: द्विवर्षीय होता है परन्तु इसका फूल प्रथम वर्ष में ही आ जाता है। इसका तना 30-40 सेमी. ऊँचा, बहुशाखीय, हरे से लाल रंग का होता है। नीचे की पत्तियाँ पतली, भालाकार तथा ऊपर की पत्तियाँ कुछ गोलाकार होती है। फूल पीले रंग के होते है। हाईपोन्थियम लगभग 2 सेमी. लम्बा होता है। इसकी फलियों में कोणीय एवं चौरस बीस पाये जाते हैं।

    उपयोगी अंग : बीज

    मुख्य रासायनिक घटक : बीज से प्राप्त अवाष्पशील तेल में गामालिनोलेनिक एसिड प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

    औषधीय गुण एवं उपयोग : इसके बीजों से प्राप्त अवाष्पशील तेल का उपयोग विशेष तौर से भोज्य पदार्थाें के प्रतिपूरक के रूप में किया जाता है। इसके अतिरिक्त यह औषधि के रूप में त्वचा के ऊपर-एक्ज़ीमा, मासिकधर्मपूर्व संलक्षण के निदान में भी उपयोगी पाया गया है।

    Top
  • घृतकुमारी

    घृतकुमारी

    प्रचलित नाम : घीकुवार, ग्वार पाठा, घृतकुमारी, रससार-एलुआ, मुसब्वर

    अंग्रेजी नाम : एलो, ए बार्बएडनेन्सिस मिल

    पौध परिचय : घृतकुमारी का पौधा बहुवर्षीय, 30-60 से.मी. ऊँचा होता है। पत्तियों के तने पर सघन कांटे होते हैं, रूपरेखा में गोपुच्छाकार या भालाकार, मोटी, गुदेदार तथा बाहर से पुष्पध्वज निकलता है, जिस पर पीले तथा लाल रंग के पुष्प निकलते हैं।

    उपयोगी अंग : पत्तियों से प्राप्त लसीला पीला कड़ुआ द्रव्य (एलोएटिक जूस), सफेद गूदा (एलो जेल)।

    मुख्य रासायनिक घटक : घृतकुमारी का प्रमुख घटक ‘एल्वायन’ होता है, जिसमें बार्बेल्वायन, आईसोवार्वेल्वायन एवं एलोइमोडिन आदि घटक पाये जाते हैं।

    औषधीय गुण एवं उपयोग : घृतकुमारी अल्पमात्र में दीपन, पाचन, कटुपौष्टिक, यकृत उत्तेजक तथा बड़ी मात्रा में विरेचन, कृमिघ्न, रक्तशोधक, आर्त्तजनन, गुण वाली होती है। वर्तमान समय में एलोजेल का सौन्दर्य प्रसाधन में अत्यधिक उपयोग किया जा रहा है, एवं विभिन्न प्रकार के क्रीम, शैम्पू, लोशन, इत्यादि व्यावसायिक उत्पाद बाजार में उपलब्ध हैं।

    आरंभ में
  • गिलोय

    गिलोय

    प्रचलित नाम : अमृता, गुडूंची, गीडूच

    अंग्रेजी नाम : टीनोस्पोरा

    पौध परिचय : गिलोय या गुडुची, पेड़ों (नीम, आम आदि) पर चढ़ी, झाड़ीदार, बहुवर्षीय लता होती है। इसकी शाखाओं से तागे की तरह लटकती जड़ें हवा मे झूलती रहती हैं। इसका तना हरा, मांसल, पत्ती हृदयाकार, फूल गुच्छकों में, छोटे पीले, फल-छोटे मटर के समान, अल्पावस्था में हरित एवं पकने पर लाल रंग के तथा बीज सफेद मिर्च के दाने के समान छोटे होते हैं।

    उपयोगी अंग : जड़, तना, पत्ती

    मुख्य रासायनिक घटक : छालयुक्त तले के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के रासायनिक घटक पाए जाते हैं जिनमें प्रमुख हैं- तिक्त ग्लूकोसाइड- जिल्वाएन एवं अतिक्त-ग्लूकोसाइड-जिलोनिन; इसके अतिरिक्त, तीन तिक्त यौगिक यथा-टिनोस्पोरोन, टिनोस्पोरिक एसिड और टिन स्पोराल भी पाए गए हैं। अल्प मात्रा में बरबेरीन नामक तत्व भी निष्कर्षित किया गया है।

    औषधीय गुण एवं उपयोग : अमृत के समान लाभकारी अमृत या गुडुची वात; पित्त तथा कफ का शमन करती है। यह भूख बढ़ाने वाली, रक्त शोधक, ज्वर नाशक तथा हृदय के लिए लाभदायक है। यह पीलिया, मधुमेह, मलेरिया आदि रोगों में भी लाभदायक है।

    आरंभ में
  • इसबगोल

    इसबगोल

    प्रचलित नाम : ईबगोल, इसपगोल, इस्पगोल

    अंग्रेजी नाम : ब्लाण्ड सिलियम्, इस्पागुल सीड

    उपयोगी अंग : बीज (इसबगोल) एवं बीज की भूसी

    मुख्य रासायनिक घटक : इसबगोल के बीजों एवं भूसी में काफी मात्रा में म्युसिलेज पाया जाता है, जिसके अन्दर मुख्य रूप से जाईलोज, एरेविनोज रैमन्नोज और गैलेक्टोज आदि पाये जाते हैं। भूसी रहित बीज से हल्के पीले रंग का अर्ध-घन तेल (सेमीड्राइंग आयल) निकलता है, जिसमें लिनोलिक एसिड काफी मात्रा में विद्यमान रहता है।

    औषधीय गुण एवं उपयोग : इसबगोल के बीज एवं भूसी को एक औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसबगोल की भूसी पौष्टिक होने के साथ-साथ मृदुसारक भी है। दौर्बल्य एवं विवन्धयुक्त अवस्थाओं में यह एक उत्तम औषधि है। पुराने कब्ज, एमिबिक और वेसिलरी दस्त में इसबगोल बहुत ही लाभदायक है।

    आरंभ में
  • कालमेघ

    कालमेघ

    प्रचलित नाम : भूनिम्ब, कल्पानाथ, हरा चिरैयता, कालमेघ

    अंग्रेजी नाम : एन्ड्राग्राफिस, क्रियेत

    पौध परिचय : कालमेघ तिक्त गुणों वाला, एक वर्षीय-बहुवर्षीय (विशेष कृति परिस्थितियों में), शाकीय पौधा है, जो 60 से 100 से.मी. तक ऊँचा होता है। इसके काण्ड उर्ध्व, चतुष्कोणी, बहुशाखीय तथा प्राय: गाढ़े हरे रंग के होते हैं। पत्तियाँ विपरित पर्णी, आकार में भालाकार होती है। पुष्प आकार में छोटे तथा दल-चक्र (करोला) रंग में गुलाबी होते हैं। फल सामान्य स्फोटी (कैप्सूल) तथा रूपरेखा में लम्बोतर और दोनों सिरों पर क्रमश: कम चौड़ा, देखने में जौ की तरह होते हैं। प्रत्येक फल में पीजाभ-भूरे रंग के बीज होते हैं।

    उपयोगी अंग : सम्पूर्ण पौधा

    मुख्य रासायनिक घटक : कालमेघ में कई प्रकार के डाईटरपीनाएड्स पाए जाते हैं जिनमें मुख्य तिक्त एन्ड्रोग्रेफोलाइड एवं प्रमुख अतिक्त यौगिक नियो-एन्ड्रोग्रेफोलाइड है।

    औषधीय गुण एवं उपयोग : सम्पूर्ण पौधे में कषाए, दर्द निवारक, शोध प्रतिरोधिता, एम्यूनोसप्रेसिव और एलेक्सीकार्मिक गुण पाए गए हैं, यह त्वचा रोगों, अतिसार, आँव, हैजा, ज्वर, मधुमेह आदि रोगों में लाभदायक है। इस पौधे का काढ़ा रक्तशोधक, असामान्य प्लीजा, यकृत-उत्तेजक, पीलिया, चर्मरोग, डिस्पेशिया और कृमिरोग के लिए उपयुक्त होता है। इसकी जड़ का काढ़ा एक उद्दीपक, टॉनिक और मृदुरेचक है।

    आरंभ में
  • लेमनग्रास

    लेमनग्रास

    प्रचलित नाम : नीबू घास

    अंग्रेजी नाम : मालाबार ग्रास, ईस्ट इन्डियन लेमन ग्रास

    पौध परिचय : नीबू घास एक बहुवर्षीय पौधा है जो लगभग 3 मीटर ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ पतली रेखाकार एवं अन्तिम सिरा लम्बा तथा नील हरित रंग का होता है। स्पाइकिका (स्पाइकलेट) 4.5-5 मिमि लम्बा, निचला तूष (गूल्म) द्वि-नौतल (कील) व ऊपरी तूष नाव के आकार का होता है। पुष्पवृन्त स्पाइकिका नर अथवा नपुंसक होता है।

    उपयोगी अंग : वायवीय (ऊपरी) भाग सुगन्धित तेल का मुख्य स्रोत है।

    मुख्य रासायनिक घटक : पूर्वी भारत में मिलने वाली नीबू घास के तेल का मुख्य घटक सिट्राल है। सूक्ष्म घटकों में लीनालूल, जिरेनियॉल, सिट्रोनेलोल निरॉल, 1-8 सिनियाल, लिनेलिल एसिटेट इत्यादि है। पश्चिमी भारतीय नीबू घास के तेल का मुख्य घटक सिट्राल-ए और सिट्राल बी, मिरसीन व सूक्ष्म घटकों में अल्फा पाइनिन, बीटा-फिलेण्ड्रीन, सिट्रोनेलिल, सिट्रोनेलायल एसिटेट, जिरेनियॉल आदि है।

    औषधीय गुण एवं उपयोग : इसके तेल का उपयोग धुलाई के साबुन तथा दूसरे घरेलू उत्पादों को सुगन्धित बनाने में किया जाता है।

    आरंभ में
  • मेरी गोल्ड

    मेरी गोल्ड

    प्रचलित नाम : जंगली गेंदा

    अंग्रेजी नाम : वाइल्ड मेरीगोल्ड, स्टीकिंग रोगर

    पौध परिचय : जंगली गेंदा सुगंधीय एकवर्षीय पौधा है। पत्तियाँ एक दूसरे के विपरीत अथवा अगल-बगल अक्सर दोनों प्रकार की एक ही पौधे पर होती हैं। इन पत्तियों की लम्बाई 5-15 सेमी. होती है। पत्रक पतले लेन्स के आकार के तथा तीक्ष्ण दाँतेदार होते हैं। फूल पीले तथा सघन, शाखाओं के ऊपर लगे होते हैं।

    उपयोगी अंग : सम्पूर्ण पौधा

    मुख्य रासायनिक घटक : पौधे से प्राप्त सुगंधित अवाष्पीय तेल में जेड-ओसीमीन (38.77 प्रतिशत); डाइहाइड्रोटेजीटोन (9.07 प्रतिशत); टेजीटोन (7 प्रतिशत); (जेड)-वोसीमीन (7 प्रतिशत) एवं (ई)-ओसीमिनोन (13 प्रतिशत) पाए जाते हैं।

    औषधीय गुण एवं उपयोग : सम्पूर्ण पौधे का आवश्यक तेल के लिए जल-शोधन किया जाता है। पौधे से प्राप्त तेल का उपयोग सुगंध, भेषज एवं कृषि व्यवसाय में किया जाता है।

    आरंभ में
  • मेन्थाल मिन्ट

    मेन्थाल मिन्ट

    प्रचलित नाम एवं अंग्रेजी नाम : मेन्थाल मिन्ट

    पौध परिचय : बहुवर्षीय, सरीसृप या ऊपर की ओर बढ़ने वाला हर्ब (शाक) है जिसका बहुगुणन (सकर) भूमिगत जड़ों के द्वारा होता है। पत्तियाँ भालाकार व आयताकार और तीव्र दाँतेदार होती हैं। फूल धुराकार विन्यसित, पुष्पक्रम वर्टीसिलास्टर, हल्का जामुनी सफेद होता है। बीज बहुत ही कम एवं चमकदार होते है।

    उपयोगी अंग : वायवीय तना सुगन्धित तेल का स्रोत है।

    मुख्य रासायनिक घटक : मेन्थाल, मेन्थोन एवं मिथाइल ऐसीटेट।

    औषधीय गुण एवं उपयोग : मेन्थाल का उपयोग सामान्यत: स्वादयुक्त, दंतमंजन, कैण्डीज, माउथवाश, च्यूइंगम, पेय पदार्थ, खाद्य सामग्री एवं सुगन्ध उद्योग में किया जाता है। मेन्थाल का उपयोग औषधि के रूप में दर्द निवारक मलहम, दर्द निवारक क्रीम और खांसी की दवा में किया जाता है।

    आरंभ में
  • मिल्क-थिसिल

    मिल्क-थिसिल

    प्रचलित नाम : चुण्ड

    अंग्रेजी नाम : सेन्ट मेरी थिलिस, होली थिलिस, मिल्क थिलिस

    पौध परिचय : मिल्क थिलिस एक कंटीला, सीधा, वार्षिक छोटा झाड़ीदार पौधा होता है। इसकी पत्तियाँ 30 सेमी. तक लम्बी, नीचे की पत्तियाँ दीर्णपुच्छाकार (पिन्नेटीफाइड), शूलाग्री दाँतेदार एवं ऊपर की पत्तियाँँ छोटी और अवृत (सेसाइल) होती हैं। ऊपर का सिरा समपुष्पी (होमोगैमस), इनवालुक्रेल व्रेक्ट्रस, 4-6 पंक्तिबद्घ होती है। एकीनस, काला एवं शिखाग्र किनारों वाला (रिम) होता है।

    उपयोगी अंग : बीज

    मुख्य रासायनिक घटक : बीज के अन्दर, कई प्रकार के फ्लेबोनोलिग्नैन्स पाये गये हैं- जिसमें प्रमुख हैं सिलमेरिन और सिलविन।

    औषधीय गुण एवं उपयोग : सिलमेरीन, यकृत, प्लीहा आदि रोगों में प्रयुक्त होने वाला एक प्रमुख रासायनिक तत्व है। लीवर सिरोसिस एवं पीलिया रोग की चिकित्सा में प्रयुक्त होने वाले अनेक औषधि-योगों के निर्माण में सिलमेरीन का उपयोग किया जाता है।

    आरंभ में
  • पाल्मारोसा

    पाल्मारोसा

    प्रचलित नाम : रोशा घास

    अंग्रेजी नाम : पाल्मोरोसा ग्रास, जिंजर ग्रास

    पौध परिचय : दो मीटर तक की लम्बाई वाली सीधी घास। अरोमिल आच्छादित पत्ते। 50 सें.मी. लम्बे पत्ते, आधार से हृदयाकार अक्सर स्तंभलिंगी, सीधे और छोटे स्पेथेट पुष्प गुच्छ, दीर्घ वृत्तीय स्पाइकिका अवृंत।

    उपयोगी अंग : ऊपरी अंग आवश्यक तेल का स्रोत हैं।

    मुख्य रासायनिक घटक : जरानिओल, जरनियल एसिडेट, सिट्रल, सिट्रोनेलओल और लिनालोल इत्यादि आवश्यक तेल के प्रमुख घटक हैं।

    औषधीय गुण एवं उपयोग : यह तेल सुगंधशाला, प्रसाधन सामग्री और स्वाद के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले उच्च स्तरीय जरानिओल का प्रमुख स्रोत है।

    आरंभ में
  • पचौली

    पचौली

    प्रचलित नाम : पचौली

    अंग्रेजी नाम : पचौली

    पौध परिचय : पचौली सीधा खड़ा शाखायुक्त बहुवर्षीय झाड़ीदार पौधा होता है। इसकी पत्तियां दंतेदार, थोड़ी चौड़ी अथवा गोलाकार एवं दोनों सतह की तरफ रोयें होते हैं। फूल एक्जीलरी और टर्मिनल दोनों स्पाइक में होते हैं।

    उपयोगी अंग : पत्तियां

    मुख्य रासायनिक घटक : पचौली एल्कोहल, अल्फा एवं बीटा पैचूलीन, बीटा-कैरियोफाइलीन, अल्फा-बुलनीसीन, एलीमीन आदि

    औषधीय गुण एवं उपयोग : इसके तेल का उपयोग आधुनिक सुगंध एवं सौंदर्य प्रसाधन उद्योग में व्यापक रूप में हो रहा है। साथ ही इसका प्रयोग गंध एवं खाद्य उद्योग, एल्कोहल, मादक द्रव्य पदार्थ, नशारहित पेय पदार्थ, शीतित-खाद्य पदार्थ तथा दुग्ध पदार्थ, कैण्डीज और खाने वाली वस्तुओं में किया जाता है।

    आरंभ में
  • पिपरमिन्ट

    पिपरमिन्ट

    प्रचलित नाम : पिपरमिन्ट, विलायती पुदीना

    अंग्रेजी नाम : पिपरमिन्ट, ब्राण्डी मिन्ट

    पौध परिचय : विलायती पुदीने का पौधा बहुवर्षीय शाकीय, तीक्ष्ण पिपरमिन्ट-युक्त गन्ध वाला होता है। इसकी पत्तियाँ एक दूसरे के विपरीत तथा पर्णवृन्त युक्त होती है। पत्तियाँ भालाकार, आयताकार अथवा कुछ गोलाई लिये होती एवं 1.5 से 5 सेमी. लम्बी होती है। पत्तियाँ आधार से नुकीली या चपटी एवं सेसाइल होती हैं। फूल हल्का जामुनी सफेद, 2.5 से 7.5 से.मी. लम्बे टर्मीनल स्पाइक के साथ होता है।

    उपयोगी अंग : पत्तियाँ

    मुख्य रासायनिक घटक : पत्तियों में 0.40-0.50 प्रतिशत सुगन्धित तेल पाया जाता है। जिसका मुख्य घटक मेन्थाल (40-50 प्रतिशत) तथा मेन्थोन (25-30 प्रतिशत) है।

    औषधीय गुण एवं उपयोग : पिपरमिन्ट तेल का उपयोग मुख्य रूप से भेषज उत्पादों, खाद्य पदार्थाें में सुगन्ध के लिए किया जाता है। साथ ही इसका उपयोग चबाने वाले तम्बाकू, मादक द्रवों, पेय पदार्थों, सिगरेट तथा अन्य विभिन्न खाद्य उत्पादों के बनाने में किया जाता है।

    आरंभ में
  • पुदीना

    पुदीना

    प्रचलित नाम : पुदीना

    अंग्रेजी नाम : हिल मिंट

    पौध परिचय : सभी जगह पाया जाने वाला सर्पी प्रकंद बहुवार्षिक पौधा है। जगह-जगह से मुड़े हुए पत्ते, ऊपर अरोमिल, नीचे ग्रंकिल, गोल, कृश, अवरोधक, शूल, लाइलेक, लाइलैक फूल बिखरे हुए।

    उपयोगी अंग : पत्तियाँ

    मुख्य रासायनिक घटक : प्रमुख तेल से कारवोन, टरपीन्स और एल्कोहल आदि प्राप्त होते हैं।

    औषधीय गुण एवं उपयोग : च्यूइंगम, दंतमंजन, कन्फेक्शनरी और भेषज पदार्थों में इसके तेल का प्रयोग होता है।

    आरंभ में
  • क्वीनघासू

    क्वीनघासू

    प्रचलित नाम : क्वीन घासू

    अंग्रेजी नाम : स्वीट वर्मवुड

    पौध परिचय : आर्टीमीसिया एनुआ चीनी मूल का वार्षिक, सीधा 2 मीटर तक की ऊँचाई का पौधा है। इसकी पत्तियाँ 2-3 की संख्या में दीर्णपिच्छाकार (पिन्नेटोसेक्ट) या असंयुक्त, सीरेट या लोबुलेट(सपालिक) होती है। पुष

    ्पक्रम संयुक्त रेसीम तथा कैपीचुलम के साथ होता है। कैपीचुला, अस्पष्ट अर्धगोलाकार होता है। एकीन्स के ऊपर लम्बवत धारियाँ होती है तथा यह पैपस (रोम-गुच्छ) रहित होता है।

    उपयोगी अंग : पौधे के ऊपरी भाग से आर्टीमिसनीन प्राप्त होता है।

    मुख्य रासायनिक घटक : औषधीय दृष्टि से महत्वपूर्ण आर्टीमिसनीन नामक सेसक्वीटरपीन इस पौधे से प्राप्त किया जाता है। अन्य प्रमुख रासायनिक घटक जैसे- आरटीमीसीटीन, आरटीन्यून-बी एवं आर्टीमिसनीक एसिड भी इससे निकाले जाते हैं।

    औषधीय गुण एवं उपयोग : यौगिक आर्टीमिसनीन, क्लोरोक्वीन प्रतिरोधक मलेरिया एवं मस्तिष्क मलेरिया के निदान में बहुत ही उपयोगी पाया गया है। आर्टीमिसनीन से संश्लेषित दो यौगिक अल्फा/बीटा-आर्टीईथर एवं आर्टीयूनेट, चिकित्सीय प्रयोग में आर्टीमिसनीन से भी अधिक क्रियशील पाये गये है। वाष्पीय परिशोधन के बाद पौधे से प्राप्त आवश्यक तेल का उपयोग, भेषज, खाद्य पदार्थ एवं सौन्दर्य प्रसाधन आदि उद्योगों में होने लगा है।

    आरंभ में
  • सदाबहार

    सदाबहार

    प्रचलित नाम : सदफूल, सदासुहागन

    अंग्रेजी नाम : ट्रोपिकल पेरीविन्किल

    पौध परिचय : सदाबहार एक बहुवर्षीय, सीधी, बहुशाखीय झाड़ी होती है जिसकी ऊँचाई 70-80 से.मी. तक होती है। इसकी पत्तियाँ दीर्घवृत्तीय, अंडाकार अथवा गोल होती है। फूल 1-4 की संख्या में ससीमाक्ष (साइम्स) होते हैं। बाह्यदल पुंज (कैलिक्स) खण्डों में सूच्यग्री (सुबुलेट) होता है। फॉलिकिल 2-3 से.मी. लम्बी तथा सूक्ष्म रोमिल होते हैं।

    उपयोगी अंग : पत्ती एवं जड़

    मुख्य रासायनिक घटक : सदाबहार की पत्तियों एवं जड़ों से 100 से भी अधिक क्षाराभ में (एल्केल्वाएड्स) निष्कर्षित किये गये हैं। पत्तियों में विद्यमान कैंसर रोधी क्षाराभों में विनब्लास्टीन एवं विनक्रिस्टीन प्रमुख है। जड़ों से अजमेलिसीन, सर्पेन्टीन एवं रिजर्पिन नामक क्षाराभ पृथक कर औषधीय उपयोग में लाये जाते हैं।

    औषधीय गुण एवं उपयोग : विनब्लास्टीन नामक यौगिक का उपयोग स्तन, फेफड़ा, अण्डकोष एवं रक्त कैंसर की चिकित्सा के अतिरिक्त अन्य विभिन्न प्रकार के कैंसर यथा-लिम्फोसारकोमा, कोरियोकार सीनोमा, न्यूरोव्लास्टोमा इत्यादि में किया जाता है। उसी तरह विनक्रिस्टीन का उपयोग रक्तकैंसर, हाचकिन बीमारी, विलम्स ट्यूमर, न्यूरोब्लास्टोमा, रैब्डोसारकोमा और रेटिकुलम-सेल सारकोमा में किया जाता है। जड़ से प्राप्त क्षाराभों का उपयोग, हृदय एवं उच्च रक्तचाप की बीमारियों में किया जाता है।

    आरंभ में
  • शतावरी

    शतावरी

    प्रचलित नाम : शतावरी, शतमूली, सतावर

    अंग्रेजी नाम : वाइल्ड एस्पेरेगस

    पौध परिचय : शतावरी के कांटेदार एवं आरोहणशील झाड़ीनुमा क्षुप, अनेक शाखाओं द्वारा चारों ओर फैले रहते हैं। पर्णाभ काण्ड (क्लेडोड्स), लम्बे, नोंकदार, 2-6 एक साथ गुच्छाबद्ध निकलते हैं। फूल-सफेद, सुगंधयुक्त होते हैं। फल गोलाकार तथा पकने पर लाल रंग के हो जाते हैं। मूल स्तम्भ के कन्द सदृश, लम्बगोल, परन्तु दोनों सिरों पर क्रमश: पतले श्वेत मूलों का गुच्छा निकलता है।

    उपयोगी अंग : गांठदार जड़

    मुख्य रासायनिक घटक : शतावरी की जड़ से अनेक जड़ से अनेक स्ट्रिओयड ग्लाईकोसाइड्स (I-IV), एवं सारसेपोजेनिन, निष्कर्षित किए गए हैं। जड़ से एस्पराजेमाइन-एल्कलाइड भी अलग किया गया है।

    औषधीय गुण एवं उपयोग : यौन दुर्बलता के लिए एक पोषक औषधि के रूप में इसकी जड़ों का बहुत व्यापक इस्तेमाल होता है। शतावरी की जड़, भारतीय चिकित्सा पद्धतियों-आयुर्वेद एवं यूनानी में वात पित्त शामक, वल्य एवं दुग्धवर्धक रसायन द्रव्य के रूप में अत्यधिक रूप से प्रयोग में लाई जाती है। यह अतिसार, मधुमेह, पीलिया, मूत्ररोग, मिर्गी, घाव भरने तथा चेहरे की झुर्री दूर करने में विशेष रूप से लाभदायक है।

    आरंभ में
  • स्पीयर मिन्ट

    स्पीयर मिन्ट

    प्रचलित नाम : स्पीयर मिन्ट

    पौध परिचय : स्पीयर मिन्ट बहुवर्षीय शाकीय पौधा होता है। इसकी पत्तियाँ भालाकार, नुकीली एवं दाँतेदार होती है। सफेद फूल एक्सिलेरिस एवं अन्तस्थ वर्टीसिलास्टर में निकले होते हैं।

    उपयोगी अंग : ऊपरी शाखाएं सुगन्धित तेल का स्रोत हैं।

    मुख्य रासायनिक घटक : कार्बोन तथा लिमोनिन

    औषधीय गुण एवं उपयोग : खाद्य सामग्री एवं औषधियों में उपयोग होता है।

    आरंभ में
  • वच

    वच

    प्रचलित नाम : घोड़वच, वच

    अंग्रेजी नाम : स्वीट-फ्लैग, कैलेमस रूट

    पौध परिचय : वच, 60 से.मी. से 1.5 मीटर तक ऊँचा, जलाशयों के पास तथा दलदली भूमि में उगने वाला एक बहुवर्षीय पौधा है। इसका कन्द जमीन के अन्दर फैलता है। इसकी लम्बी पत्तियाँ गुच्छों में निकलती हैं और पुष्पव्यूह बाली की भाँति होता है। फल छोटे-छोटे, मांसल बेर होते हैं, जिसमें अनेक बीज होते हैं।

    उपयोगी अंग : कन्द (भौमिक काण्ड)

    मुख्य रासायनिक घटक : इसके भौमिक काण्ड (राइजोम्स) में 2-4 प्रतिशत सुगन्धित सुवाष्पी तेल पाये जाते हैं। तेल के अन्दर अल्फा एवं बीटा एसेरोन नामक तत्त्व पाये जाते हैं।

    औषधीय गुण एवं उपयोग : कफ और वात का शमन करने तथा पित्त को बढ़ाने वाली वच, वाणी एवं बुद्घि में निखार लाती है। यह मिरगी, दमा, स्मृतिनाश, बच्चों का हकलाना, भूख न लगना व पेट दर्द तथा मोटापा दूर करने में भी लाभदायक है।

    आरंभ में
  • वेटिवर

    वेटिवर

    प्रचलित नाम : खस

    अंग्रेजी नाम : वेटिवर

    पौध परिचय : ़खस एक बहुवर्षीय भूमिगत तनायुक्त, सीधी खड़ी रहने वाली घास है। इसकी पत्तियाँ लगभग 2 मीटर तक लम्बी होती हैं। फूल गुच्छ स्पाइसीफार्म असीमाक्ष (रेसीम) में होता है। पुष्पगुच्छ की शाखाएं बहुत सिकुड़ी होती है। अवृन्त स्पाइकिका किनारों से चपटी, रेखाकार व भालाकार होती है तथा पुष्पवृन्त (पेडिसेल्ड) स्पाइकिका 0.6 सेमी. लम्बी होती है।

    उपयोगी अंग : जड़, सुगन्धित तेल का मुख्य स्रोत है।

    मुख्य रासायनिक घटक : इस तेल का मुख्य रासायनिक घटक खुसीमॉल, वेटीसेलिनीनाता, वीटा यूडिसमाल, अल्फा विटिवोन तथा वेटिवेरॉल है।

    औषधीय गुण एवं उपयोग : ़खस का तेल मुख्यत: सुगन्धित द्रव तथा सुगन्ध स्थिरक व फिक्सेटीव के रूप में प्रयोग होता है। साथ ही इसे स्वादगंध और पेय पदार्थों में भी प्रयोग किया जाता है।

    आरंभ में